चाय की दुकान पे———-
सुट-बूट वाले साहब के,
अधरो पे सुलगते सिगरेट का कश है,
उस फैले धुँऐ में तेरह साल का बच्चा,
जूठे कप-प्लेट उठाता है,
जरा सा उसके मैले हाथो का श्पर्श
और माँ की गाली!
मासूम गालो पर——
बाल पकड़कर चंद चाटे,
देख रोटी——-
इतनी कम उम्र में इस बच्चे की भूख,
तेरी खातिर कितना विवश है!
इस मासूम को———
अपनी पिड़ाओ की दुनिया से बाहर,
ये भी पता नही कि———
कल तमाम देश के बच्चो के चाचा नेहरु का जन्मदिन,
यानी की बाल दिवस है।
रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।
बहुत मर्मस्पर्शी कविता👌