कर्ण और कुंती दो पात्रो पर लिखी ये महज़ कविता नही अपितु बेगुनाह कर्ण के वे आँसू है जो बिना किसी अपराध के आज भी आँख से अपनी कुंती जैसी माँ से अपना अपराध जानना चाहता है?
पढ़िए बेहद मार्मिक कविता “बेगुनाह कर्ण “
आज भी विवाह पूर्व जने बच्चे को——-
कुंती कचरे मे फेक रही है!
नियति का पहिया घुम रहा है,
कचरे का कर्ण——–
फिर बेइज़्ज़त और अपमानित होगा,
अपने दंम्भ और जाती का आँचल बचाने की खातिर,
आज की कुंती भी———
कहाँ झेप रही है।
अट्टहास कर रहा कहकहे लगा रहा अमीरो का महल,
तमाम घिनौने कृत्यो को समेटे,
लेकिन मौन है?
कर्ण के उस कचरे के डिब्बे के रुदन से,
नही पिघल रही कुंती,
क्योंकि आज की कामांध कुंती के,
कामातुर मसले स्तन,
किसी कर्ण के होंठ से नही लगेंगे,
क्योंकि इस धरती पे हर कर्ण,
एक गाली था,गाली है और गाली रहेगा!
वे देखो घने अँधेरे मे चली आ रही फिर कोई कुंती,
कचरे के डिब्बे में फेकने—–
एक बेगुनाह कर्ण।
@@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर।
कर्ण अपने कर्मों के कारण व्यथित रहा …
पर आपकी इस बात से मैं सहमत हूँ की नन्हे बच्चे का कोई दोष नहीं और शायद माता का भी नहीं … ये समाज का दोष जरूर है … जिसे हम आप ही बनाते हैं …