ईश्वर हैं की नहीं हैं | हम इस पर कभी न् खत्म होने वाली बहस कर सकते हैं | पक्ष और विपक्ष में
तरह – तरह की दलीले दे सकते हैं | पर जिसे दिल महसूस करता है उसे दिमाग तर्क से न
कभी समझ पाया है न समझ पायेगा | ईश्वर , जो नहीं हो कर भी हैं , और हो कर भी नहीं
हैं | उनके होने के अहसास को जिसने महसूस किया है | उसके सामने दिमाग के तमाम तर्क
बेमानी हो जाते हैं
तरह – तरह की दलीले दे सकते हैं | पर जिसे दिल महसूस करता है उसे दिमाग तर्क से न
कभी समझ पाया है न समझ पायेगा | ईश्वर , जो नहीं हो कर भी हैं , और हो कर भी नहीं
हैं | उनके होने के अहसास को जिसने महसूस किया है | उसके सामने दिमाग के तमाम तर्क
बेमानी हो जाते हैं
बचपन में माँ के मुँह से अक्सर एक भजन सुना करतीं थी। ……
“जहाँ
गीध -निषाद का आदर है
जहाँ
व्याधि अजामिल का घर है
उस
घर मे वेश बदल कर के
जा
ठहरेंगे वो कभी न कभी “
बालसुलभ
कौतूहलता से माँ से पूँछती “माँ क्या ऐसा होता है ,क्या भगवान आते है ,माँ स्नेह से मेरे सिर
पर हाथ फेरते हुए कहती ,भगवन
वेश बदल कर आते है किसी को माध्यम बना कर आते है | पर
आते है ,इसी
आस्था विश्वास के साथ मैं बड़ी होने लगी।जीवन में कुछ ऐसी घटनाऐ हुयी जिनसे मेरे इस
विश्वास को बल मिला। उन्ही में से एक घटना मैं साझा कर रही हूँ।
आज
से करीब पाँच साल पहले की बात है ………वो रविवार की एक आम
सुबह थी ,मै
हमेशा की तरह घर की विशेष सफाई के मूड मे थी क्योंकि सप्ताह के बाकि दिनों मे इतना
समय नही मिलता और मेरे पति कुछ सामान लेने बाहर गये हुए थे,तभी अचानक फोन की घंटी
बजी। …………उधर से आवाज आई ,आप श्रीमती बाजपेयी बोल रही है ,”जी” मैने कहा, उधर से स्वर सुनाई दिया
“आप के पति का एक्सीडेंट हो गया है वो इस अस्पताल मे है आप जल्दी आ
जाइये”। ,उसके
बाद उन्होने क्या कहा मुझे सुनाई नहीं दिया ,मेरी चीख निकल गई , दिमाग ने काम करना बन्द
कर दिया,जल्दी
-जल्दी में बस इतना समझ आया कि अस्पताल जाना है | जितने पैसे मेरी पर्स मे आ सकते थे ड़ालकर , तमाम आशंकाओ से ग्रस्त
मन के साथ ईश्वर के नाम का जप करते हुए
अस्पताल पहुँची।
मैंने
सुना था ,यह
दिल साथ देना छोड़ देता है ,उस
दिन पहली बार महसूस किया। मैं जो किसी दूसरे को दर्द तकलीफ मे नही देख पाती ,आपने पति को इस हलत मे
देख कर बिल्कुल टूट गयी, मेरे
दिल की धड़कने 150 /मिनट तक पहुँच गयी ,पसीना आने लगा ,आखों के आगे अंधेरा
छाने लगा ,मै
पति को क्या संभालती मैँ तो खुद खड़ी होने की स्थिति मे नही रह गयी। मैं वही फर्श पर बैठ गयी।
तभी वो तीन लड़के
(उम्र करीब 20 ,21 साल ) जो मेरे पति को अस्पताल ले कर आये थे , उनकी नजर मुझ पर गयी ,उन्होने तुरन्त डॉक्टर
को बुलाया , डॉक्टर
ने पल्पिटेशन देख कर एंटी एंग्जाइटी , बीटा ब्लॉकर्स की टैबलेट्स देकर
मुझे आराम करने को कहा ,मैं
इस हालत मे नही थी कि किसी को फ़ोन कर के बुलाऊ ,वही तीनो लड़के जो मध्यम
वर्ग के लग रहे थे , मेरे पति के साथ लगे रहे , उनको X
-RAY रूम
तक ले जाना , जूते
मोज़े उतारना, सारी
दौड़ भाग करीब चार घंटे तक करते रहे। तब तक
मेरी हालत थोड़ी ठीक हुईं मैंने अपने परिचितों को फोन कर के बुला लिया।
(उम्र करीब 20 ,21 साल ) जो मेरे पति को अस्पताल ले कर आये थे , उनकी नजर मुझ पर गयी ,उन्होने तुरन्त डॉक्टर
को बुलाया , डॉक्टर
ने पल्पिटेशन देख कर एंटी एंग्जाइटी , बीटा ब्लॉकर्स की टैबलेट्स देकर
मुझे आराम करने को कहा ,मैं
इस हालत मे नही थी कि किसी को फ़ोन कर के बुलाऊ ,वही तीनो लड़के जो मध्यम
वर्ग के लग रहे थे , मेरे पति के साथ लगे रहे , उनको X
-RAY रूम
तक ले जाना , जूते
मोज़े उतारना, सारी
दौड़ भाग करीब चार घंटे तक करते रहे। तब तक
मेरी हालत थोड़ी ठीक हुईं मैंने अपने परिचितों को फोन कर के बुला लिया।
फिर वो
तीनों मेरे पास आ कर बोले “आंटी अब हम जा रहे है , मैंने उनसे उनके बारे
में पूंछा तो उन्होंने बताया की वो CA की
कोचिंग कर रहे हैं | एक्सीडेंट के समय कोचिंग ही जा रहे थे | उन्होंने
कोचिंग का नाम व् घर का पता बताया | मैंने भी अपने घर का पता ,अपना परिचय , पति का कार्ड देकर कभी
घऱ आने को कहा।” फिर वो चले गए।
तीनों मेरे पास आ कर बोले “आंटी अब हम जा रहे है , मैंने उनसे उनके बारे
में पूंछा तो उन्होंने बताया की वो CA की
कोचिंग कर रहे हैं | एक्सीडेंट के समय कोचिंग ही जा रहे थे | उन्होंने
कोचिंग का नाम व् घर का पता बताया | मैंने भी अपने घर का पता ,अपना परिचय , पति का कार्ड देकर कभी
घऱ आने को कहा।” फिर वो चले गए।
अस्पताल
से डिस्चार्ज होते समय जब मैं काउंटर पर बिल देने गयी तब पता चला , अस्पताल में एडमिट करने
में करीब 1500 का बिल वो लड़के भर गए हैँ।
मुझे आश्चर्य हुआ की उन्होंने मुझसे चलते
समय अपने रूपये क्यों नहीं मांगे .। उस समय मैंने सोचा शायद घर आएं ,पता तो उनके पास् हैं. ,और मैं पति के साथ घर
वापस आ गयी।
समय अपने रूपये क्यों नहीं मांगे .। उस समय मैंने सोचा शायद घर आएं ,पता तो उनके पास् हैं. ,और मैं पति के साथ घर
वापस आ गयी।
करीब
पांच महीने का वो समय बहुत कठिन था ,एक पत्नी के रूप में शायद मेरे
धैर्य ,सेँवा
ओर सहनशक्ति की परीक्षा का समय थ।कामों के बोझ से दबी मैं हर ऱोज उनकी आने की
प्रतीक्षा करती,हर
ऱोज सोचतीं शायद आज आये ,कम
से कम अपने पैसे तो ले जाये।मन पर भारी बोझ था | पर वो नहीं आये।
जब
पति ठीक हो गये तो उनके साथ उस मुहल्ले में गयी ,उस पते पर कोई दूसरे
लोग रहते थे , कोचिंग
सेंटर गयी वहां पता चला इस नाम क़े लडके तो यहॉँ कभी पढेँ ही नहीं। बहुत खोज बीन की
,आज के समय में ऐसा कौन हो सक़ता है ,जो अपने रूपये छोड़ दे | जबकि दो –
दो रूपये के लिए लोग रिश्तेदारों को मारने
– काटने दौड़ते हैं | मन खुद से ही प्रश्न
करता वो क्यों नहीं आये जबकी उनके पास घऱ
का पता था ।
अन्तत : बड़े दुखी मन से हमने वो रूपये मंदिर में चढ़ा
दिए।
दिए।
मंदिर
से लौट कर मैं अन्मयस्क सी घर की सीढियाँ चढ़ती जा रही थी और सोचती जा रही थी ,हे प्रभु …. उस समय
जब मुझे मदद की बहुत जरूरत थीं | ,हे ईश्वर क्या वेश बदल कर आने वाले वो तुम थे। …. क्या वो तुम थे।
घर के अन्दर से
सासु माँ के भजन की आवाज़ आ रही थी।
सासु माँ के भजन की आवाज़ आ रही थी।
“गिरने
से जो प्रहलाद को तुम थाम न लेते
भूले
से कभी भक्त तेरा नाम न लेते “
और मेरा सर उस परमपिता के आगे श्रद्धा से झुक गया | अब मुझे किसी से पूँछने की जरूरत नहीं थी कि हे ईश्वर क्या वो तुम थे |
मृत्यु सिखाती है कर्तव्य का पाठ
आस्थाएं -तर्क से तय नहीं होती
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बहुत ही प्यारी कहानी, इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। ऐसी प्रेरणाप्रद कहानियां जीवन को जीवंतता प्रदान करती हैं। आभार।