किस्सा बदचलन औरत का

किस्सा बदचलन औरत का



बदचलन ! इसी नाम से पुकारते
थे उसे सब । मेरे पिताजी ने भी तो माँ को बताया था उसके बारे में । माँ ने भी जब
से सुना उसके बारे में
, उसे फूटी आँख न सुहाती थी वह  । वह थी
संध्या
, हमारी नयी पड़ोसन जो कि
मुंबई से आई थी  । देखने में अत्यंत
खूबसूरत
, छरहरी काया , गोरा रंग, सुनहरी बाल, मुस्कुराहट तो उसके होठों
पर सजी ही रहती । आते-जाते सबसे हेलो
, हाई, हाउ आर यू ? बोल ही देती 
और अगर दूर से किसी को देखती तो हाथ हिला देती जिसे अँग्रेज़ी में वेव करना
कहते हैं । शायद यह तरीका था उसका यह दिखाने का कि हाँ मैंने आप को पहचान लिया ।
मोहल्ले में सभी  औरतों व मर्दों से बात
करती ।


 जीन्स पहन कर जब वह जाती मोहल्ले के सभी मर्दों
की नज़रें  उस पर टिक ही जातीं । मुझे वह
बड़ी अच्छी लगती । लेकिन औरतें ! सब सामने तो उससे अच्छी बोलतीं लेकिन पीठ पीछे
लगी रहतीं उसकी चुगली करने ।मेरी माँ भी उसके बारे में कुछ सुन कर आती तो पिताजी को
ज़रूर बताती  । माँ कहतीं
पति तो इसका यहाँ रहता नहीं , लगी रहती है ,नैन मटक्का करने दूसरे
मर्दों से
। मुझे भी हिदायत देतीं,
कहतीं ” दूर  रहना उस
से
, ना जाने क्या पट्टी पढ़ादेगी
?” 

 भगवान जाने कैसी औरत है ?
मैं भी माँ से बराबर विवाद करती। कहती ” माँ अच्छी तो है
, क्या बुराई है उस में ? हँसमुख है , सब से बात करती है बस ! 



माँ
कहती जाने दे तू ना समझेगी
, मर्दों से कुछ ज़्यादा ही बात करती है । मैं कहती हाँ माँ ” तुम औरतों से
बात करे तो व्यवहार और अगर पड़ौसी के नाते मर्दों से बोले तो ” बदचलन ”
। माँ मेरे विवाद का जवाब कभी न दे पाती । सो चुप हो जाती
, कहती ” जाने दे , तू तेरे काम में मन लगा ।उसकी
बातों में व्यर्थ समय मत गँवा ।

 मेरी भी नयी -नयी नौकरी थी , काम कुछ एसा था कि अंजान लोगों
को फ़ेसबुक पर संदेश देने होते और ई-मेल भी भेजने पड़ते और दूसरों के संदेशों का
जवाब भी देना पड़ता । इसी सिलसिले में कई लोग मुझे फ्रेंड्स रिक्वेस्ट भी भेज देते
और कई अंजान लोग तरह-तरह के संदेश भी देने लगे । जिनके जवाब देना मुझे अच्छा न
लगता । कई लोगों को जवाब दे भी देती किंतु फिर वे अपनी सीमा लाँघने की कोशिश करते
। उनसे मुझे कन्नी भी काटनी पड़ती । जिससे वे चिढ़ जाते और ऊट-पटांग मेसेज भी देने
लगते । 


इन सब हरकतों से मैं थोड़ा परेशान रहने लगी , सोचा माँ को बताऊं , लेकिन माँ मेरी क्या मदद
करेगी
? जाने दो, नहीं बताती हूँ एसा सोचती
मैं ।फ़ेसबुक पर होने के कारण कई बार वे संदेश रिश्तेदारों एवं पिताजी के मित्रों
ने भी पढ़े । पिताजी को तो किसी से यहाँ तक सुनने को मिला कि उनकी बेटी बड़े ग़लत
कार्यों में फँसी है । यह सुनते ही पिताजी तो आग बाबूला हो गये । मुझे सख़्त
हिदायत मिल गयी नौकरी छोड़ने एवं फ़ेसबुक बंद करने की । मैंने अपने  पिताजीव माँ को बड़ी मुश्किल से समझाया कि मैंने
कुछ ग़लत नहीं किया है
, लेकिन लोगों के सोचने का तरीका ही कुछ एसा है । 

पिताजी को बात कुछ समझ में आई
। माँ भी समझ गयी कि किस तरह से मुझे झूठा बदनाम किया जा रहा था । माँ व पिताजी
शांत हो चुके थे ।

 अगली बार जैसे ही माँ ने संध्या के बारे में कुछ
बोलना चाहा मैंने उन्हें वहीं टोक दिया । बस करो माँ
, और कितना बदनाम करोगी उसे ।
मोहल्ले की औरतों के साथ तुम भी फालतू की बातें बनाती रहती हो । इस बार माँ चुप हो
गयी
, कहने लगी ठीक ही कहती हो
तुम
,संध्या तो अच्छी ही है व्यवहार
एवं रूप-रंग दोनों में । 

फिर मैंने उन्हें समझाया, उसके पति यहाँ रहते नहीं, पड़ौसी होने के नाते सभी
औरतों और मर्दों से बात कर लेती है
, सभी से एक समान व्यवहार करती है । लेकिन उसके
रूप-रंग एवं पहनावे के कारण शायद सभी उसे ग़लत नज़रों से देखते एवं कुछ तो अपनी
सीमा लाँघने की कोशिश भी करते
, जब वे अपने मकसद में कामयाब नही हो पाते तो उसे बदनाम करते और खाम्ख्वाह ही
औरतों ने उसे संग्या दे दी थी बदचलन !
अब माँ का नज़रिया संध्या
के लिए बिल्कुल बदल गया था  । वह समझ गयी
थी कि अकेली या बेसहारा औरत को तो लोग उस अंगूर की बेल की तरह समझते हैं जिसका कोई
भी मालिक नहीं । कोई भी आए
, अंगूर
तोड़े और खा ले । अगर अंगूर ना खा पाए तो कह दे ” अंगूर खट्टे हैं ” ।
यही हो रहा था संध्या के साथ । अब माँ ने बीड़ा उठा लिया था मोहल्ले की दूसरी
औरतों को समझाने का और संध्या के साथ हिल-मिल कर रहने का ।

     रोचिका शर्मा,चेन्नई  
 
डाइरेक्टर,सूपर गॅन ट्रेडर अकॅडमी
     (www.tradingsecret.c

लेखिका



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