हमारे धर्म ग्रंथों में बहुत सारी प्रेरक कथाएँ सम्मलित हैं | जो आहिस्ता से किसी बड़ी शिक्षा को हमें समझा देती हैं | ऐसी ही एक प्रेरक कथा मैं आप के सामने प्रतुत करने जा रही हूँ | कथा महाभारत के समय की है |
जैसा की सब को पता है की महाभारत के युद्ध में धर्म और अधर्म के बीच लड़ाई हुई थी | बहुत रक्तपात हुआ | अंत में धर्म यानी पांडवों की विजय व् अधर्म यानी कौरवों की हार हुई | इसी युद्ध में इच्छा मृत्यु प्राप्त भीष्म पितामह अर्जुन के हाथों मृत प्राय होकर शर शैया पर गिर पड़े | उन्होंने अपने किसी पिछले जन्म के कर्म का चक्र पूरा करने के लिए स्वयं ऐसी मृत्यु चुनी थी |
युद्ध समाप्ति के बाद भी सूरज के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते हुए वो उसी शर शैया पर ही लेटे रहे |
एक दिन का प्रसंग है कि पांचों भाई और द्रौपदी उनसे मिलने गए | सब उनके चारो तरफ बैठे गए और पितामह उन्हें धर्म का उपदेश दे रहे थे। सभी श्रद्धापूर्वक उनके उपदेशों को सुन रहे थे कि अचानक द्रौपदी खिलखिलाकर कर हंस पड़ी।
दौपदी तो प्रिय बहु थी |पितामह उसकी इस हरकत से बहुत आहत हो गए और उपदेश देना बंद कर दिया। पांचों पांडवों भी द्रौपदी के इस व्य्वहार से आश्चर्यचकित थे। सभी बिलकुल शांत हो गए। कुछ क्षणोपरांत पितामह बोले ,
” पुत्री, तुम एक सभ्रांत कुल की बहु हो , क्या मैं तुम्हारी इस हंसी का कारण जान सकता हूँ ?”
सच में जो जैसा अन्न खाता है उसका मन वैसा ही होता है |
मित्रों आज भी ये शिक्षा बदली नहीं है | इसी लिए कहते हैं धन कमाओ पर धर्म न गंवाओं | क्योंकि अगर धन सही तरीके से कमाया गया है | तभी उस घर में अच्छे संस्कार आते हैं | अच्छे संस्कार अच्छे भाग्य में परिवर्तित होते हैं | जो धन लूटपाट , घूसखोरी व् दूसरों का हक़ मार कर कमाया जाता है | वहां बीमारी , कष्ट , चोट – चपेट में धन व्यर्थ चला जाता है | उस घर के बच्चे कुसंस्कारी निकलते हैं जो धन को व्यर्थ की ऐशो – आराम में गंवा देते हैं | इसलिए नेक कामों से व् नेक लोगों के हाथ बनया भोजन करे व् सात्विक और धर्म के मार्ग पर चलें |
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