राहुल बंबई में पैदा हुआ और
उस समय उसके पिता किसी निजी कंपनी में कार्य करते हुए अपना नया काम भी शुरू कर रहे
थे । उसने बड़े होतेहुए अपने पिता को हमेशा अपने काम में व्यस्त ही पाया । राहुल
की माँ जैसे उसे अकेले ही पाल रही थी । जहाँ छुट्टी के दिन सारे बच्चे अपने पिता के साथ
घूमने ,फिरने जाते राहुल अपनी माँ
के साथ अपार्टमेंट में अकेले ही सायकिल चला रहा होता या फिर कभी-कभी उसकी माँ उसे
आस-पास के बगीचों में या पार्क में ले कर
जाती ।
उस समय उसके पिता किसी निजी कंपनी में कार्य करते हुए अपना नया काम भी शुरू कर रहे
थे । उसने बड़े होतेहुए अपने पिता को हमेशा अपने काम में व्यस्त ही पाया । राहुल
की माँ जैसे उसे अकेले ही पाल रही थी । जहाँ छुट्टी के दिन सारे बच्चे अपने पिता के साथ
घूमने ,फिरने जाते राहुल अपनी माँ
के साथ अपार्टमेंट में अकेले ही सायकिल चला रहा होता या फिर कभी-कभी उसकी माँ उसे
आस-पास के बगीचों में या पार्क में ले कर
जाती ।
स्कूल के कार्यक्रमों में भी उसकी माँ
ही जाती उसके पिता कभी भी मौजूद न होते । घर में भी उसके पिता अपने काम में व्यस्त रहते ,माँ काम करती तो वह बेचारा
अकेले टी. वी. ही देखता रहता । कई बार उसे अपने पिता की कमी खलती किंतु पिता जी की
काम की लगन के कारण माँ उसे समझा देती और कहती मैं हूँ ना तुम को जो काम है मुझ से
कहो और वह उदास हो जाता । यहाँ तक कि उसके जन्मदिन पर माँ हर वर्ष पार्टी रखती ,किंतु पिताजी के पास उस दिन
भी दो घंटों का वक़्त न होता ।
ही जाती उसके पिता कभी भी मौजूद न होते । घर में भी उसके पिता अपने काम में व्यस्त रहते ,माँ काम करती तो वह बेचारा
अकेले टी. वी. ही देखता रहता । कई बार उसे अपने पिता की कमी खलती किंतु पिता जी की
काम की लगन के कारण माँ उसे समझा देती और कहती मैं हूँ ना तुम को जो काम है मुझ से
कहो और वह उदास हो जाता । यहाँ तक कि उसके जन्मदिन पर माँ हर वर्ष पार्टी रखती ,किंतु पिताजी के पास उस दिन
भी दो घंटों का वक़्त न होता ।
कई बार तो उसकी माँ भी बहुत उदास हो जाती ,एसा मालूम होता था कि बस परिवार में माँ और बेटा ही थे ।
पिता तो बस वहाँ खाने और सोने के लिए ही आते । एसा करते -करते कब सात वर्ष बीत गये
मालूम ही न पड़ा और उसके घर में एक बहन भी आ गयी । अब तो माँ जैसे दो बच्चों में
पिस ही गयी । पिता तो अभी भी व्यस्त ही थे । कई बार बच्चों को लेकर उनके घर में
झगड़ा भी होता । लेकिन पिता अपने बच्चों के लिए फ़ुर्सत न निकाल पाए ।
पिता तो बस वहाँ खाने और सोने के लिए ही आते । एसा करते -करते कब सात वर्ष बीत गये
मालूम ही न पड़ा और उसके घर में एक बहन भी आ गयी । अब तो माँ जैसे दो बच्चों में
पिस ही गयी । पिता तो अभी भी व्यस्त ही थे । कई बार बच्चों को लेकर उनके घर में
झगड़ा भी होता । लेकिन पिता अपने बच्चों के लिए फ़ुर्सत न निकाल पाए ।
एक दिन राहुल स्कूल में
एक्टिविटी पीरियड में खेलते-खेलते गिर पड़ा और उसके हाथ में फ्रॅक्चर हो गया । जैसे ही स्कूल से फोन आया पिताजी
भागे-भागे स्कूल पहुँचे और उसे अस्पताल लेकर गये । वहाँ उसके हाथ का ऑपरेशन करना
पड़ा । घर में छोटी बहिन होने के कारण माँ
तो अस्पताल भी न पहुँच पाई । और पिता ही अस्पताल में शाम तक उसकी सार -संभाल करते
रहे । शाम को माँ उसकी बहिन को ले अस्पताल पहुँची और पिता को बोली कि वे बाहर जा कर कुछ खा लें लेकिन राहुल के पिता उसके पास से
एक पल को न हिले। सारा दिन भूखे ही बैठे रहे ।
एक्टिविटी पीरियड में खेलते-खेलते गिर पड़ा और उसके हाथ में फ्रॅक्चर हो गया । जैसे ही स्कूल से फोन आया पिताजी
भागे-भागे स्कूल पहुँचे और उसे अस्पताल लेकर गये । वहाँ उसके हाथ का ऑपरेशन करना
पड़ा । घर में छोटी बहिन होने के कारण माँ
तो अस्पताल भी न पहुँच पाई । और पिता ही अस्पताल में शाम तक उसकी सार -संभाल करते
रहे । शाम को माँ उसकी बहिन को ले अस्पताल पहुँची और पिता को बोली कि वे बाहर जा कर कुछ खा लें लेकिन राहुल के पिता उसके पास से
एक पल को न हिले। सारा दिन भूखे ही बैठे रहे ।
उस दिन राहुल को समझ आया कि उसके
पिता उसे कितना प्यार करते हैं और इतने सालों वह पिता के लिए जो कमी महसूस करता
रहा वहआज पूरी हो गयी । वह तो सोचता था बस
माँ ही उसे प्यार करती है । लेकिन आज उसे समझ आया कि पिता दोहरा काम भी तो उसी के
लिए करते रहे ताकि बड़ा होकर उसे भी उसके
पिता की तरह नौकरी के लिए दर-दर ठोकरें न खानी पड़े । उसके पास अपना व्यवसाय हो तो
चिंता थोड़ी कम रहेगी ।अब उसे अपने पिता से कोई शिकायत न थी। इस फ्रॅक्चर के बादउन
दोनों का रिश्ता अटूट बंधन बन गया था ।अब
उसे पिता के हृदय में छुपे प्यार का एहसास हो गया था।
पिता उसे कितना प्यार करते हैं और इतने सालों वह पिता के लिए जो कमी महसूस करता
रहा वहआज पूरी हो गयी । वह तो सोचता था बस
माँ ही उसे प्यार करती है । लेकिन आज उसे समझ आया कि पिता दोहरा काम भी तो उसी के
लिए करते रहे ताकि बड़ा होकर उसे भी उसके
पिता की तरह नौकरी के लिए दर-दर ठोकरें न खानी पड़े । उसके पास अपना व्यवसाय हो तो
चिंता थोड़ी कम रहेगी ।अब उसे अपने पिता से कोई शिकायत न थी। इस फ्रॅक्चर के बादउन
दोनों का रिश्ता अटूट बंधन बन गया था ।अब
उसे पिता के हृदय में छुपे प्यार का एहसास हो गया था।
पार्थ शर्मा , चेन्नई
स्टूडेंट , वेल्स बिल्लेबोंग हाई स्कूल
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