saja kisko motivational story in hindi
सुधीर ११ वीं का छात्र है । अपना सामान बेतरतीब से रखना वो अपना धर्म समझता है । माँ को कितनी मुश्किल होती होगी इस सब को संभालने में उसे कोई मतलब नहीं ।
रोज सुबह उसका चिल्लाना … मेरा रुमाल कहाँ है , मोजा कहाँ है , वगैरह वगैरह बदस्तूर जारी रहता । माँ आटे से सने हाथ लिए दौड़ -दौड़ कर उसका सामान जुटाती ।
माँ उसको रोज समझाती ‘ बेटा अपना सामान सही जगह पर रखा करो … मुझे बहुत परेशानी होती है ‘। पर सुधीर उल्टा माँ पर ही इल्जाम लगा देता ” तुम जो करीने से सब रखती हो उससे ही सब बिगड़ जाता है ‘।
आज माँ दूसरे ही मूड में थी … उन्होंने सुधीर को अल्टीमेटम दे दिया … अगर आज अपना कमरा ठीक नहीं किया तो मैं तुम्हें स्कूल नहीं जाने दूँगी, ये तुम्हारी सजा है ।
आज वाद -विवाद प्रतियोगिता में सुधीर प्रतिभागी था । सो गुस्से में तमतमाते हुए उसने कमरा तो ठीक कर दिया पर बडबडाता रहा …
ये माँ है या तानाशाह इसकी मर्ज़ी से ही घर चले । अगर इनका हुक्म ना बजाओ तो सजा । what a rubbish !
गुस्से के कारण ना तो सुधीर ने नाश्ता किया और ना ही लंच बॉक्स बैग में रखा । माँ पीछे से पुकारती ही रही । स्कूल जाते ही दोस्तों ने कैंटीन में उसे गरमागरम समोसे खिला दिए । गुस्सा शांत हो गया । प्रतियोगिता आरम्भ हुई … और उसमें सुधीर विजयी हुआ । देर तक कार्यक्रम चला । सब प्रतियोगियों को स्कूल की तरफ से खाना खिलाया गया ।
शाम को जब सुधीर घर आया, घर कुछ बेतरतीब सा दिखा । किचन में पानी पीने गया । पर ये क्या एक भी गिलास धुला हुआ नहीं है … और तो और पानी की बाल्टी भी नहीं भरी है ।
किचन से बाहर निकला तो पास वाले कमरे से डॉक्टर की माँ से बात करने की आवाज़ आ रही थी ।
‘ जब आपको पता है कि इन्सुलिन लेने के बाद अगर कुछ ना खाओ तो डायबिटीज का मरीज़ कोमा में भी जा सकता है तब आपने ऐसा क्यों किया । ये तो अच्छा हुआ की आपकी पड़ोसन आपसे मिलने आ गयीं वर्ना आप तो बड़ी मुश्किल में पड जातीं ‘।
माँ टूटी आवाज़ में बोलीं ‘ क्या करूं डॉक्टर साहब … आज बेटा गुस्से में भूखा ही चला गया था, जब भी खाना ले कर बैठती बेटे का चेहरा याद आ जाता … खाना अंदर धंसा ही नहीं ‘।
दरवाज़े पर खड़ा सुधीर सोंच रहा था … सजा माँ ने उसे दी …. या उसने माँ को ।
बच्चों , हम सब की माँ सारा दिन हमारे लिए मेहनत करती हैं | उनकी सारी दुआएं बच्चों के लिए ही होतीहैं | ऐसे में अगर आप की माँ आप को कुछ डांट दे तो ये उसका प्यार ही है | इस प्यार को समझने के लिए दिल की जरूरत है न की दिमाग की जो सजा पर अटक जाता है | अन्तत : ये समझना मुश्किल हो जाता है की सजा किसको मिली है
वंदना बाजपेयी
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माँ की ममता अनमोल हैं। बच्चो की भलाई के लिए वो बच्चों को सजा तो देती हैं लेकिन बच्चे से ज्यादा दुखी वह स्वयं होती हैं। सुंदर प्रस्तुति।
धन्यवाद ज्योति जी