नीलेश और दिया की शादी को १० साल हो गए हैं | उनके कोई संतान नहीं है | संतान के न होने के खालीपन को भरने के लिए दोनों ने अपना – अपना तरीका खोज निकाला है | जहाँ दिया जरूरत से ज्यादा घर को व्यस्त रखने लगी है | वही नीलेश जरूरत से ज्यादा अस्त – व्यस्त रखने लगा है | और यही उनके बीच लड़ाई का सबसे बड़ा मुद्दा है |
जब भी दिया नीलेश को चीजे ठीक से रखने को कहती है | नीलेश झगड़ना शुरू कर देता है | झगडा किसी भी बात पर हो | इस झगडे में उसका एक जुमला आम है ,” तुम जाओ तो कभी , तुम्हारे बिना मैं बहुत आराम से रह लूंगा | ये सुनते ही दिया की आँखों में आँसू आ जाते हैं और दोनों की बातचीत बंद हो जाती है | गोया की दोनों की बातचीत केवल झगड़ने के लिए ही होती है | हर झगड़े के बाद हफ़्तों के लिए फिर शांति |
इस शांति में नीलेश को एक बात बहुत खलती है की हर चीज करीने से क्यों रखी है | वाशबेसिन पर हाथ धोने जाओ तो चमचम करता | किचन में सब बर्तन साफ़ – सुथरे | घर का सारा सामान यथावत | एक झूठा कप भी १० मिनट डाईनिंग टेबल पर आराम नहीं कर पाता | इधर चाय पी के रखा उधर महारानी सिंक में डाल देती हैं | लिहाजा वो पूरी कोशिश करता है की सामान बिखेरे | घर – घर सा लगे | कोई शो रूम नहीं | अब दिया है की मानती ही नहीं बात चाहे न करे पर काम टाइम पर ही कर के देगी | ऐसी बीबी से तो भगवान् बचाए |
पर दिया तो दिया इधर बातचीत बंद हुई और उधर उसने अपना काम दुगना तिगुना बढ़ा दिया | आखिरकार एक दिन नीलेश से ही नहीं रहा गया | उसने देखा की कल ही बेड शीट बदली थी आज फिर बदल दी | धोने में मेहनत ही नहीं साबुन भी लगता है | उसने आव – देखा न तव चिल्लाना शुरू कर दिया | साबुन कोई तुम्हारे पिताजी नहीं दे गए थे | दिन भर खटता हूँ तब जा कर मुट्ठी भर पैसे आते हैं | उसे यूँ ही उड़ा देती हो | पिंड छोड़ो मेरा तुम्हारे बिना ये घर स्वर्ग हो जाएगा | जो चाहूँगा करूँगा | जैसे चाहूँगा जियूँगा | दिया भी कहाँ चुप होने वाली थी | आज रोई नहीं बस फट पड़ी किसी प्रेशर कुकर की तरह | ठीक है , ठीक है , चली जाउंगी मैं | किसी आश्रम में पड़ी रहूंगी | पर अब तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी | कहते हो ना तुम्हारे बिना अच्छा लगेगा | अब रहना मेरे बिना |
ये झगडा तो रोज की बात थी | झगडा हुआ और हमेशा की तरह बातचीत बंद हो गयी | सुबह नीलेश ऑफिस चले गए | जब लौटे तो गेट में ताला लगा हुआ था | पड़ोसन ने चाभी दी | पूंछने पर बस इतना बताया भाभी जी दे गयी हैं | नीलेश को थोडा अजीब सा लगा | ऐसे तो कभी नहीं किया उसने | आज अचानक क्यों | ताला खोलते ही अन्दर का दृश्य उससे भी ज्यादा अजीब था | पूरा घर बिखरा पड़ा था | सोफे के कुशन कल रात की तरह ही बिखरे थे | डाईनिग टेबल पर सुबह के नाश्ते की प्लेटे थी | बेडशीट में हज़ारों सिलवटें थी | कैसे कोई सो सकता है इसमें | किचन का सिंक बर्तनों से बजबजा रहा था |उसे उबकाई सी आई | और बाथरूम … वो तो बुरी तह से महक रहा था | उफ़ , इतनी बदबू तो पहले कभी नहीं आई | ये … ये दिया आखिर हैं कहाँ ?
नीलेश ने इधर – उधर देखा | मेज पर एक पर्चा सा दिखाई दिया | नीलेश ने दौड़ कर परचा उठाया | दिया ने ही लिखा था |
नीलेश तुम हमेशा कहते हो न , तुम्हारे बिना मैं बहुत सुखी रहूंगा | लो आज मैं जा रही हूँ | अब आराम से रहो मेरे बिना | मैं अब लौट कर नहीं आउंगी | मुझे खोजने की कोशिश मत करना | मैं चाहे आश्रम में रह लूँ पर रहूंगी तुम्हारे बिना ही |
नीलेश दिया के शब्द पढ़ कर रोने लगा | दिया मेरी दिया कहाँ हो तुम | देखो आज तुम्हारा घर कितना बेतरतीब पड़ा है | तुम कितनी मेहनत करती थी इसे संवारने में | मेरी हर चीज का ख़याल रखती थी | मैं तो यूँ ही झगड़ता था | मैं कैसे रह पाऊंगा तुम्हारे बिना |
तभी नीलेश को अपने कंधे पर एक हाथ महसूस हुआ | दिया खड़ी थी | उसकी आँखें भी नम थी | नीलेश के गले से लग कर बोली मैं भी नहीं रह पाऊँगी तुम्हारे बिना | वो तो पड़ोसन ने मुझे ऐसा करने को कहा था | ताकि मैं तुम्हारे रोज – रोज के तानों से बच सकूँ | चलों मैं जल्दी से घर साफ़ कर के तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ |
डेढ़ घंटे की मेहनत के बाद दिया चाय का कप ले कर आई | नीलेश ने हँसते हुए लिया | आज उसे साफ़ घर और साफ़ कप की अहमियत महसूस हो रही थी | कप में थोड़ी से चाय बची थी वो पलंग पर कप ले कर चला गया | और अखबार पढने लगा | कप उठाना चाहा तो पलट गया | नयी बिछी चादर चाय की चुस्की लेने लगी | तभी दिया वहां आई | ये देखते ही उसका पारा सातवे आसमान पर पहुँच गया | नीलेश का हाथ खींच कर उसे उठाया , बेडशीट बदलते हुए बड बडाती जा रही थी | एक काम भी करना तुम्हे ठीक से नहीं आता | कितना करूँ मैं | दिन भर खटती हूँ | और तुम ……….
नीलेश भी कहाँ चुप रहने वाले थे | उफ़ सफाई , सफाई , सफाई … कब छोडोगी मुझे | तुम्हारे बिना स्वर्ग बन जाएगा ये घर …..
दोनों की बातचीत फिर बंद है |
नीलम गुप्ता
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बहुत सुन्दर…