अंतर -8 अति लघु कथाएँ


अंतर -8  अति लघु कथाएँ


जीवन
में अनेक बार ऐसा होता है की एक जैसी दो परिस्थितियों में स्पष्ट अंतर दिखाई देता
हैं | क्यों न हों ,कहीं न कहीं हम सब बायस्ड होते हैं | जहाँ ये अंतर चौकाता है
वहीँ कहीं न कहीं विषाद  से भर देता है| हम
सब हम सब जाने कितने अंतरों समेटे जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं | आज उन्हीं में से कुछ
अंतरों को  इंगित करती अति लघुकथाएं 


अंतर – 8  अति लघु कथाएँ 


इसपार – उसपार 
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                वो एक लेखिका हैं |थोड़ी निराश , कुंठित |  उनके कुछ काव्य व् कथा संग्रह आ चुके हैं |फिर भी वो अपनी ख़ास पहचान बनाने में असफल हैं |अक्सर वो कहा करती हैं की जिन महिला रचनाकारों को सरकारी पुरूस्कार मिलते हैं | उनकी बहुत सांठ  – गाँठ होती हैं | पुरुष संपादकों से मिलना जुलना , देर रात तक कहकहे और … 

इस साल उनके कथा संग्रह का नाम भी सरकारी पुरुस्कारों में शामिल हैं |अब वो इस पार का सच जान गयी हैं | पर सुना है उस पार बनायी जाने वाली सूची में उनका नाम भी उन महिला रचनाकारों में जोड़ दिया गया है जो सांठ – गाँठ से आगे बढ़ी हैं | 

वजन 

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पार्क के बीचों – बीच बने चबूतरे पर कामवालियां शाम को बैठ कर बतियाती थी | शराबी पति की बेवफाई के किस्से , मारपीट सास की डांट सारे दर्द  आपस में बाँटती | कभी कस के रो पड़ती तो कभी सिसकती सी आंसुओं को पोंछती | फिर कल मिलने का वादा कर चली जाती अपने – अपने घर मन से हलकी होकर |
वहीँ उसी पार्क में चारों और बने पाथवे में बड़े घरों के लोग मान -अपमान का विष पिए , गहरे राज दिल में दबाये , चेहरे पर झूठी मुस्काने चिपकाए सर पर झूठी शान बनाए रखने का भारी बोझ उठाये चक्कर पर चक्कर काटते रहते वजन घटाने के लिए |

भीगी पलकें 
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बाबूजी बेटी की शादी के लिए दहेज़ का सामन खरीद रहे थे | बजट में चलना उनकी मजबूरी थी |आगे दो छोटी बहनें और ब्याहने को बैठी थी | फिर भी हर चीज बेहतर से बेहतर लाने का प्रयास करते | सोफे को बेटी को गर्व से दिखा रहे थे | देखो बेटी तुम्हारे लिए उस दुकान से लाया हूँ जहाँ खड़े होने की हैसियत भी नहीं है मेरी |गोदरेज की तो नहीं ले सका पर  ये अलमारी खुद खड़े हो कर बनवाई है | और ये रजाई स्पेशल आर्डर दे कर बनवाई है खास जयपुर के कारीगरों से |
बेटी की पलकें  बार – बार भीग रही थी |

ससुराल में जब सामान खोला जाने लगा | तो सास का स्वर गूंजा ,” ये भी कोई रजाई है ऐसी तो हम काम वालों को भी न दें | ससुर कह रहे थे अलमारी लोकल दे दी गोदरेज की नहीं है |अरे सोफे तो किसी कबाड़ी की दूकान से उठा लाये लगता है|  न रंग है ढंग | और पलंग तो देखो …. कंगलों से पाला पड़ा है |

बेटी की पलकें बार – बार भीग रही थी |

घर 
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गरीब का छोटा सा घर था | उसी में सास – ससुर , देवरानी जिठानी नन्द बच्चे सब एक साथ रहते थे |एक छोटे से घर में पूरी दुनिया को समेटे हुए
पास में अमीर का घर का था |चार लोग ६ कमरे | चारों अपने लैप टॉप, मोबाइल , फोन में व्यस्त  अलग – अलग कमरों में अपनी- अपनी  दुनिया में सिमटे हुए |

विश्वास
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एक पति को जब पता चला की उसकी पत्नी का शादी से पहले कोइ दोस्त था तो उसे सख्त नागवार गुज़रा | उसने पत्नी से बातचीत बंद कर दी अब उस पर विश्वास कैसे किया जाए |हैरान – परेशांन  सा हो अक्सर वो ऑफिस में सहकर्मी महिलाओं के पास जा कर अपनी पत्नी की बेवफाई के किस्से सुनाता | महिलाएं उस पर तरस खाती | उसके आंसुओं को पोंछती | धीरे – धीरे उसकी कई शादी शुदा महिलाओं से दोस्ती हो गयी |  उसे विश्वास है की वो कुछ गलत नहीं कर रहा है जिसके कारण उन महिलाओं के पतियों को अविश्वास  हो  |

बोझ 
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बड़ा बेटा अच्छी नौकरी से लग गया |और छोटे की कहीं नौकरी ही नहीं लग रहीथी | पिताजी हर किसी से कहते फिरते बड़ा तो सही है अपनी फैमली के साथ खा कमा  रहा है | ये छोटा तो हमारे  सर आन पड़ा  बोझ है | 
समय बदला | पिताजी को लकवा मार गया |वो बिस्तर पर पड़ गए |  बड़े बेटे ने नौकरी के कारण सेवा करने में असमर्थता व्यक्त कर दी | सेवा की जिम्मेदारी छोटे बेटे पर पड़ी | 
सुना है छोटा बेटा लोगों से कहता है ,” क्या करें करना तो पड़ेगा ही |हम तो बच नहीं सकते | ये बोझ हमारे सर जो आन पड़ा है | 
समय ने एक बोझ के अपना बोझ उतारने की व्यवस्था कर दी थी | 

विस्थापन 

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निम्मी तो सारा घर सर पर उठा लेती अगर उसकी मेज पर कोई किताब रख दे | उसकी कपड़ों की अलमारी में कोई हाथ लगा दे या उसकी प्रिय किताबे कोई उससे बिना पूंछे कोई छू ले | और जब कॉलेज फंक्शन में उसकी स्पीच होती तो भाई को डपट कर बोलती अगर तुम नहीं आओगे तो मैं स्पीच तो दूँगी ही नहीं तुमसे बोलूंगी ही नहीं | 
विवाह के दो महीने बाद जब निम्मी  मायके ( घर नहीं )आती हैं तो उडती नज़र से देखती है की कपड़ों की अलमारी में भाभी के कपडे  रखे हैं | मेज पर भतीजे की किताबें फैली हैं | और उसकी प्रिय किताबें  मुद तुद गयी हैं शायद नन्हे छोटे भतीजे ने पढने की कोशिश की है | 
चलते समय निम्मी धीरे से भाई से कहती है ,” कल मेरी स्पीच है भैया , समय मिले तो  जरूर आना | 
तब्दील 
बेटे को पिता की हर बात बुरी लगती | क्यों थाली में झूठा न छोड़ा जाए , क्यों समय पर घर लौटा जाए |क्यों खर्च  करते समय एक – एक पैसे  का हिसाब रखा जाए | अक्सर बाप बेटे में इसी बात पर बहस होती | पर बहस के बाद कभी एक राय न बनती |
पिता के देहांत के बाद से  बेटे ने वो सब कुछ करना शुरू कर दिया जो पिताजी कहा करते थे | समय पर घर लौटना , थाली में झूंठा न छोड़ना व् खर्च करते समय एक – एक पैसे का हिसाब रखना उसकी आदत में शुमार हो गया | 
घर वालों ने महसूस किया बेटा धीरे – धीरे पिता में तब्दील हो गया |
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