में अनेक बार ऐसा होता है की एक जैसी दो परिस्थितियों में स्पष्ट अंतर दिखाई देता
हैं | क्यों न हों ,कहीं न कहीं हम सब बायस्ड होते हैं | जहाँ ये अंतर चौकाता है
वहीँ कहीं न कहीं विषाद से भर देता है| हम
सब हम सब जाने कितने अंतरों समेटे जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं | आज उन्हीं में से कुछ
अंतरों को इंगित करती अति लघुकथाएं
अंतर – 8 अति लघु कथाएँ
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पार्क के बीचों – बीच बने चबूतरे पर कामवालियां शाम को बैठ कर बतियाती थी | शराबी पति की बेवफाई के किस्से , मारपीट सास की डांट सारे दर्द आपस में बाँटती | कभी कस के रो पड़ती तो कभी सिसकती सी आंसुओं को पोंछती | फिर कल मिलने का वादा कर चली जाती अपने – अपने घर मन से हलकी होकर |
वहीँ उसी पार्क में चारों और बने पाथवे में बड़े घरों के लोग मान -अपमान का विष पिए , गहरे राज दिल में दबाये , चेहरे पर झूठी मुस्काने चिपकाए सर पर झूठी शान बनाए रखने का भारी बोझ उठाये चक्कर पर चक्कर काटते रहते वजन घटाने के लिए |
भीगी पलकें
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बाबूजी बेटी की शादी के लिए दहेज़ का सामन खरीद रहे थे | बजट में चलना उनकी मजबूरी थी |आगे दो छोटी बहनें और ब्याहने को बैठी थी | फिर भी हर चीज बेहतर से बेहतर लाने का प्रयास करते | सोफे को बेटी को गर्व से दिखा रहे थे | देखो बेटी तुम्हारे लिए उस दुकान से लाया हूँ जहाँ खड़े होने की हैसियत भी नहीं है मेरी |गोदरेज की तो नहीं ले सका पर ये अलमारी खुद खड़े हो कर बनवाई है | और ये रजाई स्पेशल आर्डर दे कर बनवाई है खास जयपुर के कारीगरों से |
बेटी की पलकें बार – बार भीग रही थी |
ससुराल में जब सामान खोला जाने लगा | तो सास का स्वर गूंजा ,” ये भी कोई रजाई है ऐसी तो हम काम वालों को भी न दें | ससुर कह रहे थे अलमारी लोकल दे दी गोदरेज की नहीं है |अरे सोफे तो किसी कबाड़ी की दूकान से उठा लाये लगता है| न रंग है ढंग | और पलंग तो देखो …. कंगलों से पाला पड़ा है |
बेटी की पलकें बार – बार भीग रही थी |
घर
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गरीब का छोटा सा घर था | उसी में सास – ससुर , देवरानी जिठानी नन्द बच्चे सब एक साथ रहते थे |एक छोटे से घर में पूरी दुनिया को समेटे हुए
पास में अमीर का घर का था |चार लोग ६ कमरे | चारों अपने लैप टॉप, मोबाइल , फोन में व्यस्त अलग – अलग कमरों में अपनी- अपनी दुनिया में सिमटे हुए |
विश्वास
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एक पति को जब पता चला की उसकी पत्नी का शादी से पहले कोइ दोस्त था तो उसे सख्त नागवार गुज़रा | उसने पत्नी से बातचीत बंद कर दी अब उस पर विश्वास कैसे किया जाए |हैरान – परेशांन सा हो अक्सर वो ऑफिस में सहकर्मी महिलाओं के पास जा कर अपनी पत्नी की बेवफाई के किस्से सुनाता | महिलाएं उस पर तरस खाती | उसके आंसुओं को पोंछती | धीरे – धीरे उसकी कई शादी शुदा महिलाओं से दोस्ती हो गयी | उसे विश्वास है की वो कुछ गलत नहीं कर रहा है जिसके कारण उन महिलाओं के पतियों को अविश्वास हो |
विस्थापन
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सभी कथाए एक से बढ़ कर एक हैं।
Nice post. Thanks for sharing.