याद आती है वो हैं कहानियां | कभी दादी की कभी नानी की ,कभी माँ की कहानियां | पुराने
समय से जो एक परंपरा चली आ रही है कहानी सुनने और सुनाने की वो आज भी यथावत
कायम है | इतना जरूर हो गया है कि बच्चे अब कहानियों के लिए सिर्फ दादी ,नानी पर निर्भर नहीं रह गए हैं कुछ हद तक वो अपनी भूख बाल उपन्यासों व् टी वी सीरियल्स से भी शांत कर लेते हैं | ये कहानियां बच्चों के विकास के लिए बहुत जरूरी हैं
क्योंकि इनके माध्यम से हम उनकी जिज्ञासा शांत कर सकते हैं ,उन्हें बहुत कुछ सिखा
सकते हैं|
दोनों बच्चों को अच्छे संभाल सके | दिन भर की थकान से चूर वह रात्रि में विश्राम करना चाहती , मगर बच्चे हैं कि खेलने में मस्त, और बिना
बच्चों को सुलाये वह सोये भी कैसे……?
हौवा निकलता है ,जो दस फूट लंबा है सर पर सींग हैं ,और दांत तो इतने बड़े की एक
दीवाल के पास खड़ा हो तो दूसरी दीवाल पर
टकराते हैं ,वो बच्चों की गर्दन में दांत घुसा कर खून पीता है बच्चे डर गए और तुरंत सो गए | तब उसकी मम्मी बच्चों
को काल्पनिक हौवा का भय दिखाकर सुलाती है।अब बच्चे भी डर के कारण जल्दी सो जाते हैं मगर यहीं
पर हम भूल कर बैठते हैं। हमारी इस छोटी सी भूल के कारण बच्चे अनजाने में उस
काल्पनिक हौवा का शिकार हो जाते हैं जो उन्हें बाद में अंदर ही अंदर खाये जाता है।
झाड़ियों में जगमगाते जुगनुओं को देखकर उसने अपनी मम्मी से पूछा- ‘मम्मी ये चमकदार
चीजें क्या हैं ?’ … ये नन्ही नन्ही लालटेन उठाये
परियां हैं जो रात में तुम्हारी
रक्षा करने आती है। रात भर तुम्हारे बिस्तर के पास पहरा देती है और सुबह चली जाती
है।’ मम्मी ने
दिलचस्प बनाते हुये कहा। तृप्ति जिज्ञासा से भर उठी। वह पूछने लगी-’क्या ये परियां रोज
आती है ?’ हां ! मम्मी
ने कहा। सुमी परियों की कल्पना करके एक सुखद
आश्चर्य से भर गयी | मगर दूसरे दिन शाम को बगीचे में उसकी
मम्मी ने उसे रोते पाया। पूछने पर वह कहने लगी-’मम्मी मैं
परी को पकड़ना चाहती थी। पकड़ने के लिये झाड़ियों के पास गई और एक को पकड़ भी
लिया, मगर यह तो
गंदी मक्खी है…..।’ और वह सुबक सुबक कर रोने लगी। बहुत समझाने के बाद भी वह अपनी
मम्मी की बातों पर विश्वास नहीं कर पायी। यहां यह बात सोचने योग्य है कि क्या सुमी की मम्मी को बात को इस कदर बढ़ा –चढ़ा
कर पेश करना चाहिए था | क्या वो बच्चे को सच नहीं बता सकती थी|
सुनाती कि कैसे भगवान् से प्रार्थना कने से हर मांगी हुई वस्तु मिल जाती है | अपने
बच्चे के सामने अपनी बात को सच सिद्द करने के लिए उसने नियम बना लिया कि बच्चा जब
कुछ भी मांगता वो कहती” बेटा जाओ मंदिर
में भगवान् जी से प्रार्थना करो | शाम तक वो वह चीज स्वयं लाकर मंदिर में रख देती
| बच्चा खुश हो कर सोचता भगवान् जी ने दिया है | पर इसका परिणाम आगे चल कर यह हुआ
कि बच्चे को लगने लगा हर चीज भगवान् जी दे देते है तो मेहनत करने की क्या जरूरत है
| सरला केवल अपने बेटे को धार्मिक बनाना चाहती थी पर उसने आलसी बना दिया |
बच्चों पर कहानियाँ का होता है गहरा असर
आज आप ५ से १२ साल तक के किसी मासूम बच्चे से उसके सपनों के बारे
में बात करके देखिये | आपको एक सपना कॉमन
मिलेगा ……… वो की किसी दिन हैरी पॉटर की तरह उनके एक खास बर्थडे पर उनके लिए
भी तिलिस्मी ,जादुई दुनिया से पत्र आएगा और वो भी उस स्कूल में पढने जायेंगे
…..जहाँ उनकी जिंदगी बदल जाएगी | कुछ बच्चो ने झाड़ू पर बैठ कर उड़ने की भी कोशिश
की व् चोट खायी | एक टीवी सीरियल शक्तिमान को देखकर कई बच्चे छत से ये सोंचकर
कूदे कि शक्तिमान उन्हें बचा लेगा | कहीं
न कहीं यह सिद्ध करता है कि बच्चे कहानी में बताई गयी हर चीज को सच मान लेते हैं |
देखी होगी जिसमें नायिका एक मानसिक रोग की
शिकार हो जाती है | मनो चिकित्सक कारण पता
करने पर कहता है कि बचपन की दादी की
कहानियों के असर से उसकी बुद्धि पर यह प्रभाव पड़ा कि बुराई पर अच्छाई की विजय के लिए वो अपने मूल रूप को
त्याग काल्पनिक रूप रख लेती थी |
आप बच्चों को कहानियों के माध्यम से दे सकते हैं नैतिक शिक्षा
कहानियों का गहरा असर होता है और वो बच्चे के जीवन की दिशा दे सकती हैं | हमसे
ज्यादा कहीं यह बात हमारे पूर्वज समझते थे इसीलिए पंच तंत्र ,हितोपदेश ,नीति कथाएँ
आदि की रचना बच्चो के लिए की गयी | पहले स्कूलों में भी नैतिक शिक्षा का विषय
होता था जिसमें कहानियों के माध्यम से बच्चों को नैतिक शिक्षा दी जाती थी | चाहते
न चाहते बार –बार दोहराए जाने से अच्छे संस्कार उनके मन में बैठ जाते थे | आज जो
समाज का नैतिक पतन हो रहा है उसके पीछे कहीं न कही स्कूलों में नैतिक शिक्षा विषय का न होना व् जयादातर
घरों में एकल परिवार होने की वजह से माता –पिता द्वारा बच्चों को टी वी के भरोसे
छोड़ देना प्रमुख है | बच्चे टी वी में जो कुछ भी देखते हैं उसी को सच मान लेते हैं
| कार्टून चैनलों में भी बच्चों को लड़ाई –झगडे वाले या व्यस्क भाषा से संबद्ध
कार्टून ज्यादा देखने को मिलते हैं जो न केवल उनकी मासूमियत अपतु संस्कार भी छीन लेते हैं |
|हमें बच्चों को अच्छी प्रेरक प्रसंगों वाली किताबें ला कर देनी होगी | जिससे उनका
चारित्रिक विकास हो | उनमें केवल कल्पना
लोक की उड़ान ही न हो कर्म की श्रेष्ठता की
भी अलख जगे | बेहतर होगा
कि आप अपने बच्चे को जब सुबह उठा ती हैं तो मोर्निंग ग्रीटिंग्स के साथ कोई
प्रेरक विचार मुस्कुरा कर कहे जैसे “ जो
जूनून के साथ काम में जुटता है वही सफल होता है “या बच्चे की स्टडी टेबल के पास बेबी ब्लैक बोर्ड रख कर
उसमें रोज एक नीति वचन लिख दे | बच्चा उसे
पढेगा और धीरे धीरे यह अच्छे विचार उसके चरित्र का अभिन्न अंग बन जायेंगे | प्रेरक
कहानियां , महापुरुषों की जीवनी बच्चों को पढने को दे और उसके बाद उसपर विचार विनिमय
करे जिससे वो पढ़े गए तथ्य को आत्मसात कर सके | इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता
आज का युग समस्याओं का युग है और छोटे बच्चे भी इन से अछूते नहीं हैं | उनकी
समस्याओ पर अगर आप सीधे कुछ समझाने लगेंगी
तो उन्हें उपदेश लगेगे | इसलिए बच्चों की
समस्याओं पर कोई कहानी बना कर सुनाते हुए
उसकी समस्या सुलझा दे | जैसा की नीतिका ने किया |
कहानियों के माध्यम से करें बच्चों की समस्या का हल
के समय घर के सब लोग ६ साल की सुधि को मज़ाक में चिढ़ा कर कहते “ अब आ जायेगा तेरा
प्यार बांटने वाला ,अभी ले लो माँ का लाड ,फिर तो वो छोटे भैया में ही लगी रहेंगी
| नन्ही सुधि सहम जाती उसे अपनी माँ का प्यार कम होता दिखता | अनजाने में ही उसे
आने वाले भाई –बहन से चिढ हो गयी | नीतिका न तो घर में सब को यह कहने से रोक सकती
थी नही नन्ही सुधि को समझा सकती थी कि ऐसा नहीं होता | अंतत : उसने समाधान निकाला
वो रोज रात को सुधि को कहानी सुनाती कि एक माँ अपनी बच्ची से इतना प्यार करती थी
कि जब भगवान् जी ने जब उसे दूसरा बच्चा
दिया तो वो उसका कोई काम नहीं करती | बड़ी बच्ची तो खुद से नहाने लगी थी ,खाने लगी
थी पर छोटी बच्ची तो बैठ भी नहीं सकती थी ,गीले में ही पड़ी रहती ,भूखी रोती रहती, बुखार् में तपती रहती पर मम्मी ध्यान
नहीं देती | सुधि रोज सुनती रहती कि कैसे छोटी बहन मम्मी के धयान न देने से बस्तर से गिर
पड़ी , कैसे पलट कर गर्म प्रेस से जल गयी |
कैसे न नहलाने से उसके बालों में
जुए पड गए | एक दिन कहानी सुनते –सुनते
सुधि सुबक पड़ी “ नहीं मम्मी वो बहुत गन्दी मम्मी थी आप वैसी मत बनना छोटे बच्चे को माँ के
समय की ज्यादा जरूरत होती है | जब मेरा भाई या बहन बड़ा हो जाएगा फिर तो वो मेरे
साथ खेलेगा | निकिता की समस्या कहानियों से दूर हो गयी |
असर डालेंगी ही | तो क्या आप अपने बच्चो
को जीवन के इतने महत्वपूर्ण पक्ष की अनदेखी करके उन्हें यूँ ही टी वी के भरोसे छोड़
सकते हैं | अगर आप जिम्मेदार माता –पिता हैं तो अपने बच्चे को प्रेरणादायी
कहानियाँ सुनाइए जिससे उनका चारित्रिक विकार हो , जीवन जीने की सही कला सीखे साथ
ही उनकी छोटी –मोटी समस्याओं का समाधान भी
हो |
किशोर बच्चों में अपराधिक मानसिकता जिम्मेदार कौन
आखिर क्यों 100 %के टेंशन में पिस रहे हैं बच्चे
माता – पिता के झगडे और बाल मन
जानकारी से भरपूर, सुंदर रचना।
धन्यवाद
आपकी रचना में नैतिक शिक्षा के साथ-साथ ज्ञान का भंडार झलकता है! ऐसे ही लिखते रहें, हमारी शुभकामनाए आपके साथ है
धन्यवाद