वेग से बह रहा समय,
उम्र कटती जा रही है ।
विरह की बह रही नदी,
सब्र घटता जा रहा है ।
अब नहीं अंतर्मन से ,
लोगों की मिलती दुआ ।
हृदय का रस सूख कर,
स्नेह मुरझाया हुआ ।
क्या कहें शूल से हीं ,
राह पटता जा रहा है ।
वेग से बढ ……..
हैं जागें हम कि सोए
हमको पता चलता नहीं ।
मौन उर भावों को भी,
कोई अब पढता नहीं ।
इस मोहिनी संसार से ,
मन हटता जा रहा है ।
वेग से बढ ……..
कोष खाली सपनों के,
नींद कोषों दूरी पर ।
स्वर निकलते रूदन के ,
बहुत ही मजबूरी पर ।
कृष्ण पक्षी चाँद तरह
तन सिमटा जा रहा है ।
वेग से बढ ……
प्रमिला श्री तिवारी
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