गुनगुनी धूप में——————
खुले बाल तेरा छत पे टहलना,
एक खूबसूरत एहसास है।
मै तकता हू एकटक तुम्हे चोर नज़र,
पता ही नही चलता कि————-
तेरे पाँव तले छत की ज़मी है,
याकि मखमली घास है।
गुनगुनी धूप में————
खुले बाल तेरा छत पे टहलना,
एक खूबसूरत एहसास है।
ये उजले से दाँत,गुलाबी से होठ,आँखो मे शर्म
और हवा से बिखरे बालो का,
अपनी नर्म-नाज़ुक सी अँगुलियो से हटाना,
ये महज चेहरा नही———-
एक खूबसूरत चाँद है।
गुनगुनी धूप में———
खुले बाल तेरा छत पे टहलना,
एक खूबसूरत एहसास है।
हर्फ-दर-हर्फ मेरे अंदर समा रही,
ये तेरी उजली ओढ़नी और सफेद सलवार,
महज तेरे बदन से लिपटी,
शरारत करती कोई सहेली नही,
बलकि मेरी गज़ल और उसके बहर की—-
एक खूबसूरत लिबास है।
गुनगुनी धूप में————-
खुले बाल तेरा छत पे टहलना,
एक खूबसूरत एहसास है।
@@@कलके रोमांटिक धूप की रोमांटिक याद जो शायद आप सबो को अच्छी लगे।
रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर।
प्रेमरस से सराबोर मन को सुबासित करती सुंदर रचना। बधाई।
बहुत ख़ूब …
प्रेम का काजोल बैन जाए तो सब नज़ारे प्रेम का मौसम बन जते हैं …
बहुत खूबसूरत रचना…वाह्ह्ह👌👌
अहसास की परतें खुलती हैं