कभी बचपन में साँप – सीढ़ी का खेल खेला है |बड़ा ही रोमांचक खेल है | हम पासा फेंकते हैं और आगे बढ़ते हैं | आगे एक से सौ तक के रास्ते में सांप और सीढियां हैं | जब गोटी साँप के मुँह पर आती है तो साँप काट लेता है | और गोटी साँप पूँछ की नोक तक पीछे हो जाती है | वहीँ कभी कोई सीढ़ी मिल जाती है तो खिलाड़ी झटपट उसे चढ़ कर आगे बढ़ जाता है | आगे बढ़ना किसे ख़ुशी नहीं देता और पीछे आना किसे दुःख नहीं देता | फिर भी खेल चलता रहता है | इस खेल में एक ख़ास बात है की जो पीछे चल रहा है पता नहीं कब उसे सीढ़ी मिल जाए और वो आगे बढ़ जाए | या फिर जो आगे है पता नहीं कब उसे साँप काट ले और वो पीछे हो जाए | जो हारता लग रहा है अगले पल वो जीत भी सकता है | खेल का रोमांच यही है |
कभी -कभी तो 99 पर बैठा साँप काट कर सीधा 2 पर पहुँचा देता है | हताशा तो बहुत होती है पर हम पासे फेंकना नहीं छोड़ते हैं | कई बार अगली ही चाल पर अचानक से फिर सीढयाँ मिलती जाती हैं और जीत भी जाते हैं |
हार भी गए तो गम नहीं क्योंकि असली मजा तो खेलने में है … जीत हार में नहीं | क्या यही बात जीवन पर लागू नहीं होती |
यह जीवन साँप – सीढ़ी के खेल की तरह ही है
मीता और सुधा दो पक्की सहेलियां थी | दोनों का खाना पीना , पढना लिखना , खेलना कूदना साथ – साथ होता था | दोनों सिंगर बनना चाहती थी | इसके लिए बचपन से ही वो पास के स्कूल में संगीत सीखने जाया करती थीं | दोनों अच्छा गाती भी थी | दोनों ने ही भविष्य की प्ले बैक सिंगर बनने का ख्वाब भी पाल लिया |और इसके लिए जी तोड़ मेहनत करने लगीं |
उन दोनों को स्कूल के वार्षिक समारोह में पहला मौका मिला | मीता और सुधा दोनों की सोलो परफोर्मेंस थी | सुधा स्टेज पर जाते ही घबरा गयी | उसके सुर कहीं के कहीं लग रहे थे | सारा हॉल हँसी के ठहाकों से भर गया |सुधा स्टेज से नीचे आ कर रोने लगी | वहीँ मीता का गायन ठीक-ठाक था | सामान्य आवाज़ में बिना उतार चढाव के उसने गाना गा दिया | उसी सिर्फ इक्का – दुक्का तालियाँ मिलीं | मीता को भी बहुत हताशा थी |उसे बहुत अच्छे परफोर्मेंस की आशा थी | वो सुधा के पास दुःख बांटने गयी | तब तक सुधा शांत हो चुकी थी | तभी प्रिंसिपल मैंम आयीं | उन्होंने सुधा से कहा ,” गायन तुम्हारे बस की बात नहीं है | तुम इसे छोड़ दो | यही बेहतर होगा | उन्होंने मीता से भी कहा कि तुम्हें अभी बहुत रियाज़ की जरूरत है | अगर बहुत मेहनत करोगी तो शायद तुम्हें सफलता मिल जाए |
मीता को प्रिंसिपल मैंम की बातों से कुछ संबल तो मिला |फिर उसके अन्दर सुधा से जीत का भाव भी था |उसने अगली परफोर्मेंस के लिए उसने सुधा से बहुत मेहनत करने को कहा | स्वयं भी उसने बहुत मेहनत करने का मन बनाया | पर अगली परफोर्मेंस भी वैसी ही रही | लगातार तीन परफोर्मेंस के बाद भी नतीजा वही रहा | इससे निराश हो कर मीता ने मन बना लिया कि वो गायन छोड़ देगी | पर सुधा ने गायन न छोड़ने व् निरंतर अभ्यास करने का मन बनाया |
जहाँ एक तरफ मीता सुधा से बेहतर तीन परफोर्मेंस करने के बाद भी गायन छोड़ चुकी थी | वहीँ सुधा चौतरफा दवाब व् हतोत्साहन झेलते हुए भी लगातार रियाज़ कर रही थी | वो अनेकों बार असफल हुई | पर एक दिन वो मौका आया जब उसकी परफोर्मेंस बहुत उम्दा हुई | जिसे वहां मौजूद मुख्य अतिथि मशहूर फिल्म संगीतकार के एस राव ने भी बहुत पसंद किया | उन्होंने उसे अपनी फिल्म में कुछ पंक्तियाँ गाने को दी | सुधा ने उन्हें ठीक से गा दिया उसका नाम और आवाज़ लोगों की निगाह में आने लगी | धीरे – धीरे उसे काम मिलने लगा |
आज सुधा एक मशहूर प्ले बैक सिंगर है | और मीता एक होम मेकर | मीता जो पहली परफोर्मेंस में सुधा से बेहतर थी | पर वो असफलताओं का सामना नहीं कर पायी | उसने खेल का मैदान ही छोड़ दिया | जिससे वो बिना खेले ही हार गयी | हो सकता है वो मेहनत करती तब भी उसे सुधा जैसी सफलता न मिलती | पर कुछ सफलता तो मिलती या कम से कम अपने पहले प्यार गायन से दूर तो न होती | वो गायन जो उसकी रग -रग में भरा था | उससे दूर रह कर वो कभी खुश रह सकी होगी ?
खेल कर हारने से बिना खेले हारना ज्यादा दुखद है
असली मजा खेलने में है
सुधा और मीता की हो या हमारी – आपकी ,ये जिन्दगी साँप -सीधी के खेल जैसी है | यहाँ असफलता के साँप और सफलता की सीढियां हैं | कभी असफलताओं का साँप काटता है तो कभी अचानक से सीढ़ी मिल जाती है और शुरू हो जाता है सफलताओं का दौर | लेकिन जिंदगी के खेल में जब भी साँप काटता है हम निराश हो जाते हैं | कई बार अवसाद में जा कर खेल खेलना ही छोड़ देते हैं | खेल खेलना ही छोड़ दिया तो हार निश्चित है | जब साँप सीढ़ी के खेल में हम पासे फेंकना नहीं छोड़ते तो जिंदगी में क्यों हम हताश होकर पासा फेंकना क्यों छोड़ देते हैं ?
पासे फेंकते रहे , क्या पता कब सीढ़ी मिल जाए | और सफलताओं का सिलसिला शुरू हो जाए | वैसे भी असली मजा तो खेलने में है |
दोस्तों अपनी जिंदगी को वैसे ही लें जैसे साँप सीढ़ी के खेल को लेते है |राजा हो या भिखारी जब अंत सबका एक सा है तो क्यों न सिर्फ और सिर्फ खेल का आनंद लें |
वंदना बाजपेयी
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