सेठानी के गुस्से की कोई सीमा ही नहीं थी। वह बड़बड़ाये जा रही थी “अब कंगले भिखरियों की भी इतनी औकात हो गई कि हमारे राजकुमार का रिश्ता ठुकरा दे। बेटी कॉलेज क्या पढ़ गई , इतने भाव बढ़ गए। ”
सेठजी गरजे “तुम्हारा राजकुमार क्या दूध का धुला है। न पढ़ने में रूचि न धंधे का शऊर ; सारा दिन आवारागर्दी करता फिरता है, तिस पर रंग भी काला।”
सेठानी के तन-बदन में आग लग गई। तुरंत नौकर को दौड़ाया कि संजोग मैरिज ब्यूरो वाले कमल बिहारी को बुला लाये। पचास हजार की गड्डी बिहारी के आगे रखकर बोली “ये पेशगी है। इस कार्तिक मास तक मुझे घर में गौरवर्णी बहू चाहिए ,जात चाहे जो हो। आगे जो मांगोगे मिलेगा। ” कमल बिहारी ने झुककर नमस्कार किया। चार लाख में बात तय रही। क्या ठाठ से राजकुमार की बारात सजी। सबकी आँखे दुल्हन के सुंदर चेहरे पर टिकी थी। शादी के आठवें दिन मेहमानों को विदा करके सेठानी ने नई बहू को हलवा बनाने को कहा। पहली बार बहू ससुराल में खाना बनाएगी सो नेग में देने को हीरे की अंगूठी तिजोरी से निकाली। दो घंटे बीत गए खाने का अता -पता नहीं। महराजिन ने बताया बहूजी तो कमरे में टी वी देख रही है।सेठानी ने बहू से कड़ककर पूछा कि कभी हलवा नहीं बनाया।
बहू ने रूखा -सा नकारात्मक उत्तर दिया “हलवा कौन बड़ी बात रही। त्यौहार पर दस -बीस घर मेंढोल बजाव हमार अम्मा ढेरों मिठाई यूं ही ले आवत रही। “
हीरे की अंगूठी पर सेठानी की मुठ्ठी कस गई।
रचना व्यास
एम ए (अंग्रेजी साहित्य एवं दर्शनशास्त्र), एल एल
बी , एम बी ए
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बढ़िया लघुकथा।
धन्यवाद ज्योति जी
वाह्ह्ह…👌
धन्यवाद स्वेता जी