चढ़े हाशिये
पर
सम्बोधन
ठहरी
शब्द-नदी।।
पर
सम्बोधन
ठहरी
शब्द-नदी।।
चुप्पी साधे पड़े हुए हैं
कितने ही
प्रतिमान यहाँ
अर्थहीन
हो चुकी समीक्षा
सोई चादर
तान यहाँ।
कितने ही
प्रतिमान यहाँ
अर्थहीन
हो चुकी समीक्षा
सोई चादर
तान यहाँ।
ढूंढ रहे
चित्रित
सम्वेदन
छवियाँ
नई नई।।
चित्रित
सम्वेदन
छवियाँ
नई नई।।
अपशब्दों की भीड़ बढ़ी है
आज
विशेषण के आँगन में,
सर्वनाम
रावण हो बैठा
संज्ञा
शिष्ट नहीं है मन में।
आज
विशेषण के आँगन में,
सर्वनाम
रावण हो बैठा
संज्ञा
शिष्ट नहीं है मन में।
संवादों
की अर्थी
लेकर
आई नई
सदी।।
की अर्थी
लेकर
आई नई
सदी।।
अक्षर-अक्षर आयासित है
स्वर के
पाँव नहीं उठते हैं
छलते
संधि-समास सदा ही
रस के गाँव
नहीं बसते हैं।
स्वर के
पाँव नहीं उठते हैं
छलते
संधि-समास सदा ही
रस के गाँव
नहीं बसते हैं।
अलंकार
की टीस
लिए
ही कविता
रूठ गई।
की टीस
लिए
ही कविता
रूठ गई।
अवनीश त्रिपाठी
गरएं
सुलतानपुर
गरएं
सुलतानपुर
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