नवगीत-ठहरी शब्द नदी

नवगीत-ठहरी शब्द नदी
चढ़े हाशिये 
पर
सम्बोधन

ठहरी
शब्द-नदी।।
चुप्पी साधे पड़े हुए हैं
कितने ही
प्रतिमान यहाँ

अर्थहीन
हो चुकी समीक्षा

सोई चादर
तान यहाँ।
ढूंढ रहे 
चित्रित
सम्वेदन

छवियाँ
नई नई।।

अपशब्दों की भीड़ बढ़ी है
आज
विशेषण के आँगन में
,
सर्वनाम
रावण हो बैठा

संज्ञा
शिष्ट नहीं है मन में।
संवादों 
की अर्थी
लेकर

आई नई
सदी।।

अक्षर-अक्षर आयासित है
स्वर के
पाँव नहीं उठते हैं

छलते
संधि-समास सदा ही

रस के गाँव
नहीं बसते हैं।
अलंकार
की टीस
लिए

ही कविता
रूठ गई।


अवनीश त्रिपाठी
गरएं
सुलतानपुर

kavi


काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें

आपको  कविता  ..नवगीत-ठहरी शब्द नदी  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

Leave a Comment