जानिये एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम को

जानिये एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम को
एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम, यानि की खाली घोंसला और सिंड्रोम मतलब लक्षणों का समूह|  जैसा की नाम से ही स्पष्ट है यह उन लक्षणों का समूह है जो बच्चों द्वारा हॉस्टल या नौकरी पर घ से चले जाने से माता- पिता खासकर माँ में उत्पन्न होता है |आइये जानते हैं इसके बारे में …

नए ज़माने की बिमारी एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम

       आज सुधा जी के घर गयी| सोफे पर उदास सी बैठी थी| मेरे लिए पहचानना मुश्किल
था यह वही  सुधा जी हैं जिन्हें कभी शांति
से बैठे नहीं देखा| एक हाथ बेसन में सने बेटे के लिए पकौड़ियाँ तल रही होती दूसरे
हाथ से एक्वागार्ड ओन कर पानी भर रही होती और मुंह जुबानी बेटी के गणित के सवालों
से जूझ रही होती| अक्सर मुस्करा कर कहा करती तुम आ जाया करो ,मेरे पास तो फुर्सत
नहीं है| मेरी तो हालत यह है कि अगर यमराज भी आ जाए तो मैं कहूँगी अभी ठहर जाओ
पहले ये काम खत्म कर लूँ| मैं मुस्कुरा कर कहती करिए ,करिए ,ये समय भी हमेशा नहीं
रहेगा|

 पर आज …. मैंने उनके कंधे पर हाथ रख कर पूंछा “ क्या हुआ?
उनकी आँखों से आँसू की धारा बह चली| सुबुकते हुए बोली “ कितना चाहती थी मैं की
बच्चे कुछ बन जाए, जीवन में सफल हो जाए …उनको समय पर हेल्दी खाना , डांस
क्लासेज, ट्युशन ले जाना ,पढाना, हर समय उन्हीं के चारों ओर घूमती रहती| अब जब
की दोनों का मनपसंद कॉलेज में चयन हो गया है और मुझसे दूर चले गए हैं …. घर जैसे
काट खाने को दौड़ता है| अब कौन है जिसको मेरी जरूरत है, खाना बनाऊ  तो किसके लिए, कौन बात –बात पर कहेगा “ आप
दुनियाँ की सर्वश्रेष्ठ मॉम हो| कहकर वो फिर रोने लगी |


                 
ये समस्या सिर्फ सुधा जी की नहीं है| इससे एकल परिवार में रहने वाली
ज्यादातर महिलाएं व् कुछ हद तक पुरुष भी जूझ
रहे हैं| वो बच्चे जो माँ के जीवन की
धुरी होते हैं जब अचानक से हॉस्टल चले जाते हैं तो माँ का जीवन एकदम खाली हो जाता
है| २४ घंटे व्यस्त रहने वाली स्त्री को लगता है जैसे उसके पास कोई काम ही नहीं
हैं| यही वो समय होता है जब उनके पति अपने –अपने विभाग में ज्यादा जिम्मेदारियों
में व्यस्त होते हैं| एकाकीपन और महत्वहीन होने की भावना स्त्री को जकड लेती है| मनो चिकित्सीय भाषा में इसे एम्प्टी नेस्ट
सिंड्रोम कहते है|

क्या है एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम


               



शाब्दिक अर्थ देखे तो ,एक चिड़िया द्वारा तिनके –तिनके को जोड़कर घोसला बनाना
फिर चूजे के पर लगते ही उसका खाली हो जाना|
देखा जाए तो एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कोई शारीरिक बीमारी नहीं है|  ये उस खालीपन का अहसास है
जो बच्चों के घर के बाहर चले जाने से उत्पन्न हो जाता है| ये अहसास 
अब बच्चों को मेरी जरूरत नहीं रही| या मुझे अब २४ घंटे बच्चों का साथ नहीं
 मिलेगा| साथ ही बच्चों की जरूरत से
ज्यादा चिंता … वो ठीक से तो होगा , सुरक्षित होगा , खाया होगा या नहीं| यदि
किसी का एक ही बच्चा है और उसने जरूरत से ज्यादा अपने को बच्चे में व्यस्त कर रखा
है तो उसकी पीड़ा भी ज्यादा होगी| 

एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम के लक्षण 

           इस के शिकार पेरेंट्स ऐसी वेदना से गुजरते हैं जैसे उनका बहुत कुछ खो गया है |
इसके अतिरिक्त उनमें 
हर समय होने वाले सर
दर्द ,
 आइडेंटिटी क्राइसिस , और 
वैवाहिक झगड़ों व् 
अवसाद के भी लक्षण दिखाई देते
हैं |

एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम में क्या करे


          जाहिर है यह मानसिक अवस्था है ,इसलिए इसकी तैयारी भी मानसिक ही होगी | जब आपके
बच्चे दूर रह रहे हों तब  अपने टाइम टेबल
के हिसाब से उनका टाइम टेबल सेट करना छोड़ दीजिये ,बल्कि इस बात पर ध्यान देने की
कोशिश करिए की आप अपने बच्चे की सफलता में अब  क्या योगदान दे सकते हैं|  फोन ,विडिओ कालिंग या वहां जा कर उनसे टच बनायें
रखिये | जितना हो सके सकरात्मक रहिये| अगर आप फिर भी अवसाद महसूस कर रहे हैं तो
दोस्तों ,रिश्तेदारों की मदद लीजिये व् अगर जरूरत समझे तो डॉक्टर को दिखाने में
देर न करिए| इस समय का उपयोग अपने जीवन साथी के साथ झगड़ने में नहीं रिश्ते
सुधारने में करिए| क्योंकि अब आप आराम से एक दूसरे को वक्त दे सकते हैं, कैंडल
लाइट डिनर कर सकते हैं |ताजमहल घूमने जा सकते हैं | 
  

एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम से बचने की तैयारी

  

आपको पता है कि बच्चो को अपना भविष्य बनाने के लिए
आपसे दूर जाना ही है तो उसकी तैयारी पहले से करिए | कोई रचनात्मक स्किल में रूचि
लीजिये |कोई एन जी .ओ ज्वाइन कीजिये |  घर
के अन्दर और बाहर कोई बड़ी जिम्मेदारी लीजिये |कुछ भी ऐसा कीजिये जिसमें  आप अपनी पूरी शक्ति झोक सके और आप को उस खालीपन
का अहसास न हो जो बच्चों के घर से दूर जाने की वजह से उत्पन्न हुआ है | 

नीलम गुप्ता 

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