पापा की वो डांट: जिन्दगी की परीक्षा में पास होने का मंत्र

                                     

पापा की वो डांट या  जिन्दगी की परीक्षा में पास होने का मंत्र

जीवन में जो सबसे कीमती चीज हमें माता -पिता देते हैं वो है जीवन मूल्य | आज अपने पिता की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए एक ऐसी ही घटना   दिमाग में बार – बार घूम रही है , जिसे मैं आप सबके साथ शेयर करना चाहती हूँ |

उन दिनों गाँव से शहर आ कर बसे परिवार गाँव तो छोड़ आये थे पर अन्धविश्वास अपने साथ लेकर आये थे | आखिरी रोटी बड़ी होनी चाहिए उससे परिवार बढ़ता है , रात को सिल और बटना पास – पास नहीं रखना चाहिए नहीं तो लड़के दूर रहते हैं , घर से निकलते समय टोंकते नहीं हैं या दूध , हल्दी आदि का नाम नहीं लेते हैं और भी न जाने क्या -क्या ? पर उन सब लोगों के विपरीत पापा जो खुद गाँव से आकर बसे थे , इन सारे  अंधविश्वासों के खिलाफ थे और उन्होंने हमें बचपन इन बातों  को पता भी नहीं चलने दिया | जाहिर सी बात है हम इन सब से दूर थे | हालांकि बड़े होने पर मुझे पता चला कि अंधविश्वास  केवल वही नहीं होते जो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं कई बार हम अपने कुछ नए अन्धविश्वास स्वयं गढ़ लेते हैं | अपनी जीवन में घटने वाली घटनाओं के कारण शुभ -अशुभ  अच्छा बुरा का हमारा एक निजी घेरा भी न चाहते हुए बनने  लगता है, हम जिसकी कैद में आने लगते हैं | इससे निकलने के लिए आत्मबल की जरूरत होती है |

जब पापा की डांट बनी   जिन्दगी की परीक्षा में पास होने का मंत्र 

                                             बात उन दिनों की है जब मैं B.Sc पार्ट वन में पढ़ती थी |  हमारे एग्जाम चल रहे थे | उस दिन केमिस्ट्री का फर्स्ट पेपर था|  जब मैं कॉलेज पहुंची तो सब सहेलियाँ पढने में लगी थी , मैं भी अपनी किताब खोल कर पढने लगी| तभी मेरी एक सहेली स्वाति  आई | ( आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि स्वाति हमारे कलास  की वो लड़की थी जो सबके हाथ देख कर भविष्य बताती थी , कुंडली देखने का भी उसको ज्ञान था और सिक्का खिसका कर भूतों से बात करने का भी, स्वाति लड़कियों से घिरी रहती, मेरी उससे कोई खास दोस्ती नहीं थी , फिर भी हम क्लास मेट थे तो बात तो होती ही थी ) स्वाति मेरे पास आ कर  मुझसे बोली ,  ” यार , वंदना आज का तुम्हारा पेपर बहुत अच्छा होगा|  इससे पहले की मैं कुछ कह पाती , सभी सहेलियां कहने लगीं हाँ, इसने बहुत पढाई की है |  स्वाति बोली , पढाई तो की ही होगी, पर आज इसने जो येलो कलर का सूट पहना है वो इसके लिए बहुत लकी है | मैंने आश्चर्य से उसकी तरह देखा | उसने मुस्करा कर अपनी बात सिद्ध करते हुए कहा ,

” देखो तूने ये सूट साइंस क्विज में पहना था , तो हमारे कॉलेज को फर्स्ट प्राइज़  मिला |
फिर तुमने केमिस्ट्री प्रैक्टिकल में ये सूट पहना था , क्या वायवा गया था तुम्हारा |
और तब भी जब हम सब लोग क्लास में शोर मचा रहे थे तो दिव्या मैम की डांट तुम्हें छोड़ कर हम सब को पड़ी , मानो न मानो तुम्हें दिव्या मैम की  डांट से इस सूट ने बचाया |”

                            मैं उसकी बात पर हँस कर बोली , ” क्या फ़ालतू सोंचती रहती है , इतने ध्यान से सबके सूट मत देखा करो |” | उस दिन का मेरा पेपर बहुत अच्छा गया | कॉलेज से निकलते समय स्वाति बोली , ” देखा मैंने कहा था ना ‘|  अन्धविश्वास का एक बीज उसने मेरे मन की माटी  में रोप दिया था|

                         अगले पेपर  ओरगेनिक केमिस्ट्री का था | तीन दिन का गैप था|  मैंने अच्छी तैयारी  की थी | पर पता नहीं क्यों कुछ कमी से लग  रही थी | लग रहा था कि पेपर देखते ही बेंजीन रिंग्स आपस में रिंगा-रिंगा रोजेज खेलते हुए मिक्स न हो जाएँ | खैर मैं पेपर देने जाने के लिए तैयार होने लगी | कपड़ों की अलमारी खोलते ही वो पीला सूट दिख गया | एक ख्याल आया ट्राई करने में हर्ज ही क्या है , चलो इसे ही पहन लेते हैं | इस बार जानबूझ कर पीला सूट पहना | स्वाति द्वारा रोप गए बीज में अंकुर फूटने लगे थे |

                  अपनी आदत के अनुसार पापा मुझे एग्जाम के दिनों में खुद कॉलेज छोड़ने जाते थे |  उन्होंने गाडी निकाल ली थी , मैं जा कर बैठ गयी | पापा ने गाडी स्टार्ट की और हमेशा की तरह मेरी प्रेपरेशन के बारे में बात करने लगे | बातों  ही बातों में मैंने उन्हें कह दिया ,  ” पापा आप जानते हैं आज मैंने वही सूट पहना है जो फर्स्ट पेपर में पहना था , वो अच्छा गया , तो ये भी अच्छा ही जाएगा |”

                           इतना सुनते ही पापा ने गाडी में ब्रेक लागाया और बैक कर घर की ओर जाने लगे | पापा का कठोर  चेहरा देख कर मेरी उनसे पूंछने की हिम्मत नहीं पड़ी | मुझे लगा पापा शायद गाडी के पेपर घर में भूल आये हैं | मन ही मन बुदबुदा रही थी , ‘ओह पापा , एग्जाम में ही आपको गाडी के पेपर भूलने थे ?”

      घर आकर पापा ने गाडी रोक दी | फिर बहुत गंभीर आवाज़ में मुझसे कहा , ” जाओ सूट बदल के आओ “|पापा की आवाज़ इतनी सख्त थी कि मेरी उनसे प्रश्न करने की हिम्मत ही नहीं हुई | मैं चुपचाप घर के अंदर  जा कर सूट बदल कर आ गयी | पापा ने मुझे कॉलेज छोड़ दिया और “आल दी बेस्ट” कहते हुए वापस चले गए |

                                 मेरा मूड बहुत खराब था , पापा को एग्जाम के दिन ऐसा नहीं करना चाहिए था | अरे एक दिन वही सूट पहन लेती तो क्या हर्ज था | खैर मैंने अपने मन को संयत किया |

 उस दिन का मेरा पेपर पहले वाले पेपर से भी ज्यादा अच्छा हुआ | आशा के विपरीत उस दिन पापा मुझे लेने भी आये | पेपर अच्छा होने के कारण मेरा मन खुश था , पर पापा को देखते ही मुझे सुबह की बात याद आ गयी | थोड़ी नाराजगी में मैं गाडी में बैठ गयी | पापा ने ही बात करना शुरू किया | मेरा पेपर  अच्छा हुआ है ये जानकार वो बहुत खुश हुए | उन्होंने कहा कि मुझे पता था , तुमने बहुत मेहनत  की है  तुम्हारा पेपर अच्छा होगा | इसीलिये मैंने तुमसे सूट बदलने को कहा था | ताकि अन्धविश्वास  का ये पौधा जड़ न  पकड़े |  इसको जितना जल्दी हो काट देना चाहिए | हमेशा अपनी मेहनत  पर भरोसा हो , किसी लकी चार्म पर नहीं |

लेकिन पापा मेरा मूड खराब होने से अगर मेरा पेपर बिगड़ जाता तो ?मैं फेल हो जाती तो ? मैंने तर्क करते हुए कहा |

” अगर तुम इस एग्जाम में फेल भी हो जाती तो जिंदगी के एग्जाम में फेल होने से बच जाती |” पापा ने द्रणता पूर्वक कहा |

                      पापा की बात से मैं निरुत्तर हो गयी | उसके बाद से  सिर्फ और सिर्फ अपनी मेहनत पर भरोसा किया | पापा की दी हुई ये सीख आज भी मेरे जीवन की अमूल्य निधि है |  अपने या अपने परिवार के किसी हित पर जब मन कमजोर पड़  कर किसी लकी चार्म की ओर की और खिंचता है तो मुझे यही बात याद आ जाती है |

          और मैं जिंदगी के परीक्षा में पास हो जाती हूँ |

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2 thoughts on “पापा की वो डांट: जिन्दगी की परीक्षा में पास होने का मंत्र”

  1. अंध विश्वास से मुक्त होने के लिए एक बहुत ही सुन्दर अनुभव को खूबसूरत अंदाज में साझा किया आपने…. साधुवाद आपको वंदना जी!

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  2. वंदना जी, काश ऐसी ही सीख हर माँ बाप अपने बच्चों को दे तो हमारे देश में ये जो अंधविश्वास फैला हुआ हैं वो खत्म हो सके।

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