एक कार एक दुकान के आगे आकर रूकती है | उसमें से एक ६ या ७ सात साल का बच्चा अपने पिता की अँगुली पकड़ कर दुकान में घुसता है | उसे एक प्यारा सा पिल्ला ( पपी) चाहिए जो उसके साथ खेल सके |
दुकानदार एक से बढ़कर एक पल्ले दिखाता है , पर बच्चे की नज़र बार -बार उस पिल्ले की तरफ जाती है जो दुकानदार के बगल में कुर्सी पर बैठा होता है | वो पिल्ला बहुत छोटा सा , सुन्दर सा क्यूट सा होता है |
बच्चा उसी पिल्ले की ओर अँगुली करके कहता है कि उसे वो पल्ला पसंद है, वह उसी को लेना चाहता है |
दुकानदार ने कहा कि वो उसका है वो बेचने के लिए नहीं है | दुकानदार फिर उस बच्चे से कहता है, ” आइये , मैं आपको और बहुत सारे प्यारे -प्यारे पिल्ले दिखाता हूँ | ” बच्चा देखता है उसे कोई पसंद नहीं आता| उसके मन में वही पल्ला बसा हुआ है जो दुकानदार के पास बैठा है |जिसे दुकानदार बेचने को तैयार नहीं है |
अंत में बच्चा अपने पापा के साथ वापस जाने लगता है तो दुकानदार उसे रोक कर कहता है कि , ” मैं जानता हूँ तुम्हें ये पिल्ला पसंद हैं पर मैं उसे जानबूझकर नहीं दे रहा हूँ क्योंकि उसके एक टांग नहीं है , वो तुम्हारे से दौड़ कर खेल नहीं पायेगा |
उसकी बात सुनकर बच्चा पलटता है और अपनी एक टांग से पेंट खिसका कर कहता है कि , ” देखिये मेरी भी एक टांग नहीं है , मैं वही पिल्ला लेना चाहता हूँ | क्योंकि मैं चाहता हूँ कीस दुनिया में कोई तो हो जो मुझे समझ सके |
दोस्तों , कहीं न कहीं हम सब ढूंढते हैं एक ऐसे इंसान को जो हमें समझ सके | दर्द की भाषा नहीं होती , सिर्फ अहसास होता है | इसीलिए खोज होती है ,पर क्या ये खोज पूरी हो पाती है ?मुश्किल है … पर असंभव नहीं |खोज जारी रहती है … ढूंढना जारी रहता है | कहीं न कहीं , किसी न किसी मोड़ पर ऐसा कोइमिल ही जाता है जो हमें पूरी तरह से समझता है | जीवन का आनन्द वहीँ से शुरू होता है |
टीम ABC
यह भी पढ़ें …
केवल स्त्री ही चरित्र हीन क्यों