“प्रीत की पाती” , जैसा की नाम से ही स्पष्ट है ये प्रीत की मधुर भावनाओं से ओत-प्रोत प्रेम पत्र हैं जो प्रेयसी अपने प्रियतम को लिखती है, पर नाम से जो नहीं समझा जा सकता वो है प्रेम की वो बेचैनी वो छटपटाहट जो ” प्रीत की पाती” लिखने को विवश करती है|
भारतीय समाज की विडंबना ही कही जायेगी कि एक 18 वर्षीय किशोरी , जिसकी आँखों में सपने हैं, जो अपने कॉलेज में होने वाले हर अन्याय के खिलाफ बोलती है ,जो समाज को बदलना चाहती है वो अपने पिता द्वारा विवाह की बात करने पर गुहार लगाती है
बाबा मोहे दान मत दीजिये
जीती जागती साँस लेती हुई
संतान आपकी मैं भी हूँ
स्वप्न हमारे भी हैं कुछ
सोंचती समझती मैं भी हूँ
जब भी घुटन हो पीहर मैं
नैहर का कोना मेरा दीजिये
बाबा मोहे …
पिता के उत्तरदायित्व के आगे हार मान कर दुनिया को बदलने की चाह रखने वाली किशोरी पिया के घर में जा कर खुद बदल जाती है| सृजन यहाँ भी रुकता नहीं है … मांग सिंदूर , चूड़ी , कंगन और आलते में रचती है अपने घर का संसार | पर वो कहते है ना ,कि सपने मरते नहीं हैं , वो तो बस दब जाते हैं | यहाँ भी ठीक ऐसा ही हुआ | पर यही दबे हुए सपने बच्चों के बड़े होते ही फिर खाली समय की गीली मिटटी पा कर पनप गए और उन्होंने रचना करवाई “ प्रीत की पाती ” की | परन्तु ये “प्रीत की पाती” किसी किसी किशोरी के अनगढ़ प्रेम पत्र नहीं एक साहित्यिक कृति बन जाती है |
किसी भी रचनाकार की कृति उसके व्यक्तित्व का आइना होती है | ” प्रीत की पाती” को पढ़ते हुए किरण सिंह जी के उस व्यक्तित्व को आसानी से पढ़ा जा सकता है , जो प्रेम , करुणा , दया और ममता आदि गुणों से भरा हुआ है |
प्रीत की पाती में 53 प्रेम रस से भीगे पत्र है , चार घनाक्षरी व् कुछ मुक्तक सवैया दोहा आदि हैं | पत्र लिखने का कारण बेचैनी है , आकुलता है , जो पहले ही पत्र में स्पष्ट हो जाती है |
अक्षर-अक्षर शब्द-शब्द से रस की गगरी छलक रही है|
सच तो ये हैं व्यथा हमारी नेह-नयन से झलक रही है ||
व्यथा तो है पर प्रीत का बहुत पुनीत रूप है , जहाँ प्रीत उन्मुक्तता का प्रतीक नहीं , एक सुहागन नारी का समर्पण है | तभी तो प्रियतम को याद दिलाती हैं …
सिंदूर का ये नाता गहरा बहुत होता है ,
भर मान प्रीत रंग से अपना बना लेता है |
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लिखकर उर के पन्नों पर अधरों को मैंने सी लिया,
तुम तो समझते हो मुझे मैं न कहूँ या हां कहूँ |
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टूट जाती है तन्द्रा पग थाप से
ह्रदय का है नाता मेरा आपसे
प्रेम तो है पर प्रेम का उलाहना भी है, …
मान लिया मैंने तुमको बहुत काम हैं मगर ,
कैसे तुम्हें मेरी याद नहीं आई |
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कभी शब्दों के तीर चलाते
कभी चलाते गोली
आज तुम्हारी काहे प्रीतम
मीठी हो गयी बोली ..
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छल कपट भरे इस जगत में
तुम भी तो प्रिय छली हो गए
प्रेम में रूठना मनाना न हो यह तो संभव ही नहीं , परन्तु एक स्त्री कभी उस तरह से नहीं रूठ सकती जैसे पुरुष रूठते हैं , उसके रूठना में भी कोमलता होती है |-
क्यों इस दिल को यूँ सताते हैं
आप क्यों मुझसे रूठ जाते हैं
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मांग रही हूँ उत्तर तुझसे ,
क्यों रूठे हो प्रिय तुम मुझसे
कह दो तो दिन को रात कहूँ
मैं कैसे अपनी बात कहूँ
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छोड़ देती मैं भी , बात करना मगर,
मुझे रूठ जाने की , आदत नहीं है |
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और जैसा कि सदा से होता आया है , प्रेम की अभिव्यक्ति है , प्रतीक्षा है ,ताने -उलाहने हैं, रूठना मानना है , फिर अंत में समर्पण … जहाँ इस बात की स्वीकारोक्ति है कि रूठे हो , सताते हो छलिया हो कुछ भी हो पर मेरे हो , मैं सदा तुमसे प्रेम करुँगी , तुम्हारी प्रतीक्षा करुँगी क्योंकि मैं तुम्हारे बिना जी न सकूँगी …
नैन बसी जो मूरत सजना , तोरी सूरत
बार -बार लिखने को मुझी से कह जात है
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तुम आओ या ना आओ
यह तो तेरी है इच्छा
मैं तो करुँगी प्रतीक्षा
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प्रिय तुम रह न सकोगे मुझ बिन ,
मैं भी तुम बिन रह न सकूँगी
छोड़ो यह सब झगडा -रगडा
अब यह सब मैं सह न सकूँगी |
यह उदाहरण प्रेम की विशालता , उसका समर्पण उसकी गहनता व् उसके हर रूप गहरी पकड को दर्शाते हैं | किसी साहित्य सुधि पाठक द्वारा इन्हें सहज ही सराहा जा सकता है | प्रेम रस में सराबोर होने के बाद अब कुछ उदाहरण साहित्यिक विधा घनाक्षरी , सवैया , दोहा से ..
बुझी मन की दीपिका, फिर से जलने लगी है !
काव्य चेतना चन्द्रिका , छिटकने लगी है !
वर्ण अक्षर आपस में संधि करने लगे ,
और छन्द गीतिका , निखरने लगी है !
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खिल जाती हैं जैसे ही किरने , निशा सुंदरी हारती है ,
सागर हो कितना भी गहरा पर गंगा ही तारती है |
हो प्रशंसा या कि आलोचना अभिनन्दन करती हूँ ,
प्रशंसा हमें संवारती है तो आलोचना निखरती है ||
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जुड़ते हैं जब प्रेम से , दो हृदयों के तार |
उठे तरंग एक में, दूजे में झंकार ||
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साथ सजन के मैं चली , बन कर आधा अंग |
जैसे सूरज के किरण , रहती हरदम संग ||
आज के समय में जब अतुकांत कवितायें ज्यादा लिखी जा रही हैं उस समय ” प्रीत की पाती “जैसी छंदबद्ध रचनाएँ लिखना हमारी साहित्यिक विरासत को पुनर्जीवित करने जैसा है , किरण जी ने इस दिशा में जो कदम उठाया है , उसके लिए वो बधाई की पात्र हैं | उनके इस काम के लिए साहित्य जगत को उनसे बहुत आशाएं हैं | जिन लोगों ने भी काव्य सम्मेलनों में शिरकत की है वो इस बात को भली भांति जानते होंगें कि भले ही आज अतुकांत कवितायें लिखी जा रही हैं पर आम पाठक व् श्रोता छंदबद्ध ,लयबद्ध रचनाएँ ज्यादा पसंद करते हैं | अगर आप भी कोमल भावनाओं से लिपटी साहितिक रचनाओं को पढने के मुरीद हैं तो ” प्रीत की पाती” आप के लिए एक श्रेष्ठ विकल्प है | 130 पेज की इस पुस्तक को “वातायन प्रकाशन” द्वारा प्रकाशित किया गया है | यह अमेजन पर भी उपलब्द्ध है | इसके लिए आप किरण सिंह जी से भी संपर्क कर सकते हैं |
किरण सिंह जी को “प्रीत की पाती” के लिए हार्दिक बधाई व् शुभकामनाएं
वंदना बाजपेयी
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बहुत सुंदर पाती।
धन्यवाद ज्योति जी
Preet ke sabhi tarah ke rangoin se sarabor
Uproktt panktiyan, jo ki “preet ki paati” ke prati meri uttsukta ko aur saghan kar rahein hain
Shubhkaamnayein evam Bahut dhanybad “atoot bandhan” n preet ki paati se sammbandhit sabhi ka
Preet ke alag alag rangoin se sarabor uprokt panktiyan “preet ki paati” ke prati meri uttsukta ko saghan kar rahi hain
Isse jude hue sabhi ko many wishes
बहुत बहुत धन्यावाद आपको 😊
अत्यंत सुन्दर समीक्षा ।बेहद खूबसूरत रचना