समय का चक्र |
अमावस्या की घनेरी रात, चमकते जुगनुओं और टिमटिमाते तारों के कारण आंशिक ज्योतिर्मयी सी थी । झींगुरों के बेसुरे स्वर रात्रि की मौन तपस्या को तोड़ने का भरसक प्रयास कर रहे थे । इसी चंद्र विहीन नभ तले, विभा अस्पताल के बगीचे में गहन विचारशीलता में तल्लीन थी क्योंकि कुशाल ऑपरेशन थियेटर में ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहा था ।
उसकी आँखों के आगे भूतकाल के दृश्य तैरने लगे…
“कितना कुछ बदल गया इन बीते सालों में..कुशाल का उससे किनारा कर, चारुलता से विवाह कर लेना ,शीघ्र ही उसका विदेश गमन..वह और नन्हा सक्षम नितांत अकेले रह गए थे ।. दुखों का जैसे पहाड़ टूट पड़ा था दोनों पर..ज्यादा पढ़ी लिखी भी न थी..कि कोई अच्छी नौकरी मिल सके..जैसे तैसे आँगन बाड़ी में ,एक छोटी सी नौकरी मिली..फिर आगे की पढ़ाई भी आरंभ की..
ईश्वर की कृपा से ऊँचे पद आसीन हो गयी और सक्षम बन गया एक कुशल चिकित्सक.. ।
सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि कल अचानक चारुलता से भेंट हो गयी..इतने वर्षों बाद देखा था उसे.. वो ग़ुरूर, रूप लावण्य सब कुछ ढ़ल सा गया था । बातचीत के दौरान पता चला विदेश में व्यापार पूर्ण नष्ट हो गया ..और..कुशाल पीड़ित थे केंसर से ।चारुलता को सांत्वना दे, वहाँ से तो चली तो आई परन्तु मन वहीं अटक सा गया था..न जाने क्यों..सक्षम ने चिंतित देख कारण पूछा था.. भावावेश में सब कह गयी…कुशाल का इलाज करने के लिए दवाब भी दे डाला ।
एक बार तो बहुत भड़क गया था वह ..किंतु नेह- मनुहार में पगी वाणी ने कठोर हृदयी पुत्र को एक जिम्मेदार पुत्र में परिवर्तित कर दिया था ।” तभी पास रखे फोन ने उसकी गहन विचारशीलता को भंग कर दिया
“‘हेल्लो माँ ! कहाँ हो आप..जल्दी यहाँ आइए…”
वह ऑपरेशन थियेटर की ओर दौड़ी. नर्स उसे देखते ही बोली ” घबराइए नहीं मैडम,ऑपरेशन सफल हो गया है..आइए सभी आप को बुला रहे हैं..”
उसने गहराई से देखा..डॉक्टर्स, नर्सों और चारुलता से घिरे कुशाल की उनींदी आँखों के नीचे लुढ़कती बूँदें ,कुशाल के प्रायश्चित्त की कहानी बयान कर रही थीं।
अनन्या गौड़
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बढ़िया कहानी।