बच्चों के एग्जाम और मम्मी का टेंशन

बच्चों के एग्जाम और मम्मी का टेंशन

बच्चों के एग्जाम शुरू हो गए हैं |एग्जाम के
दिन यानी सपने ,  पढ़ाई , मेहनत और टेंशन के
दिन | मुझे अभी भी याद आता है वो दिन जब मेरे 
बेटे का मैथ्स का एग्जाम था |  उसे
रात दो बजे तक पढ़ाने के बाद सुबह से उसे स्कूल भेजने की तैयारी में लग गयी थी | मन
में उलझन सी थी बार –बार उसके वो सवाल याद आ रहे थे जिन्हें समझने में उसे थोड़ी
ज्यादा देर लगी थी | चलते फिरते उसे उनके फार्मूले  याद करवा रही थी |आल दा बेस्ट कह कर बेटे को
भेज तो दिया पर मन में खिच –खिच सी होती रही | क्या वो सारे सवाल हल कर पायेगा ?
क्या वो अच्छे नंबर ला पायेगा ? न जाने कितने सवाल बार –बार दिमाग को घेर रहे थे |
इंजायटी बढती जा रही थी |खैर पेपर हो गया | पर जब –जब बच्चों के एग्जाम होते हैं
मेरी ही तरह सब माएं टेंशन से घिर जाती हैं | 

                   ऐसा ही टेंशन का एक किस्सा
शर्मा अंकल सुनाते हैं, “ 
पिछले दिनों
मैं सविता के घर गया। शाम को घूमने और मूड़ फ्रेश करने का समय होता है। इस समय
सविता और उनके बच्चों को कमरे में देखकर मुझे बेहद आश्चर्य हुआ। आज भी उस दिन का
दृश्य मुझे याद है-बच्चे कमरे में पुस्तक लिये पढ़ने का अभिनय कर रहे थे और सविता
बाहर बरामदे में बैठी थी
, जैसे चौकीदारी कर रही हो। मुझे यह सब देखकर
बड़ा विचित्र लगा था। उस दिन बातें औपचारिक ही हो पायी। मुझे ज्यादा जोर से बोलने
पर मना करती हुई कहने लगी
जरा धीरे बोलिये, बच्चे पढ़ रहे हैं  अगले महीने से उन लोगों
की परीक्षा शुरू होने वाली है।
                       मीता जी का
किस्सा  भी इससे अलग नहीं है | मीता   जी
कहती हैं कि शाम पांच से आठ और सुबह चार से छः का
समय
पढ़ाने के लिए इसलिये मैंने
निर्धारित किया है
, क्योंकि रात आठ बजे के बाद बच्चे ऊंघने
लगते
है  और जल्दी खाना दिया  तो सो जाते हैं । वैसे, सुबह चार बजे पढ़ने से जल्दी याद होता है, फिर छः बजे के बाद मैं घर के दूसरे कार्यो में
व्यस्त हो जाती हूं।

आखिर क्यों 100 % के टेंशन में पिस रहे हैं बच्चे

                          मैं हूँ , सविता हो या मीता  यह समस्या आज हर घर में स्पष्ट देखने को मिलती
है।
,
पढाई और एग्जाम  का प्रेशर  बच्चों पर तो होता ही हैं बच्चों के साथ-साथ
मम्मी की भी दिनचर्या बदल जाती है। कहीं आना-जाना नहीं
, पिक्चर
देखना बंद
,टी वी बंद ,  बच्चों के ऊपर सारा दिन निगरानी में ही निकल
जाता है
, कोई मिलने आये तो औपचारिक बातें करना, ज्यादा जोर से बातें करने से मना करना आदि।कुल मिला कर पूरा तनाव का
वातावरण तैयार हो जाता है |  गौर किया जाए
तो कहीं न कहीं पापा-मम्मी उनके परीक्षा फल को अपना प्रेस्टिज ईशु बना लेते हैं।
फलां के बच्चे हमेशा मेरिट में आते हैं  उनके
पापा-मम्मी उनका कितना ध्यान रखते हैं
, आदि बातें सोचकर लोग
ऐसा करते हैं। 



कैसे दूर करें बच्चों के एग्जाम और मम्मी का टेंशन 


                            
परीक्षा के दिनों में अधिकतर माताएं  बच्चों को लेकर इस कदर परेशान होती  हैं
, जैसे बच्चे उनके लिये
समस्या हो। बच्चे तो पहले से ही एग्जाम टेंशन झेल रहे होते हैं | इस भयग्रस्त वातावरण
का बच्चों के स्वास्थ्य
, मानसिक स्थिति और पढ़ाई पर बुरा
प्रभाव पड़ता है
,
परीक्षा के दौरान बच्चों और पेरेंट्स पर बेहतर रिजल्ट को
लेकर मानसिक दबाव जबरदस्त होता है। ऐसे समय में कई बार बच्चों को कुछ मनोवैज्ञानिक
समस्याए हो जाती है। वे
एंजाइटीके शिकार तक हो जाते है और अवसाद में चले
जाते है
, जो कि काफी गंभीर है। परीक्षा के इस तनाव से कैसे
निपटा जाए
, आइए जानते है

बच्चे को लगे वो सब भूल जाएगा 

 सबसे पहली बात है कि बच्चों कि उम्र
के हिसाब से उनके कोर्स 
डिजाईन होते है। जो बच्चे रोजाना पूरे  साल पढाई करते है, उन्हें
इस तरह की  समस्या नहीं
आती है। इसके अलावा पढाई के दौरान समय-समय पर माँक टेस्ट  और फीडबेक लेते रहे, उससे भी
तनाव कम होता है। रोजाना एक्सरसाइज और ध्यान करने से भी बेस लाइन एंजाइटी (जिसमें नर्वसनेस
बहुत जल्दी आ जाती है।) बहुत कम हो जाती है। इसके अलावा बच्चो को रोजाना अच्छी
नींद लेना भी जरुरी है। पढाई के दौरान बच्चे अपने को क्रॉस चेक बिलकुल न 
करे, क्योंकि इस कारण से भी उनके अंदर एंजाइटी
बढ़ सकती है। पढ़ते वक्त रटने के बजाय 
पॉइंट्स और कांसेप्ट क्लियर करें और हर चेप्टर के मुख्य पॉइंट्स को
नोट जरुर करते 
रहे।
              परीक्षा के दौरान माँ  को यह चाहिए कि वो बच्चों के खान-पान पर विशेष
ध्यान दे। दिमाग को उत्तेजित करने वाले पदार्थ जैसे चाय
, कॉफ़ी को बच्चों को
ज्यादा न दे। फ़ास्ट फूड्स कि जगह हेल्थी डाइट दें। उनकी नींद का ख्याल रखे। सोशल
फंक्शन जैसे शादी वगैरह  में भी उन्हें न  ले जाएं और जितना हो सके पढाई का माहौल  घर में बनाएं।

त्यौहार और
परीक्षा के बीच बच्चे कैसे बनाएं संतुलन 

 फाइनल एग्जाम त्यौहार के सीजन में होते हैं , एक तरह से ये  मन और इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखने की भी परीक्षा होती है । ऐसे में बच्चो को  चाहिए कि वो
त्यौहार के चक्कर में अपने करियर  और पढाई
से समझौता  ना करें। पढाई उनका प्राथमिक
लक्ष्य है
,जिसे लेकर वे हमेशा गंभीर रहे। त्यौहार उनका ध्यान
पढाई से हटा सकते है। इसलिए उनपर ध्यान देने के बयाय वो पढाई पर ज्यादा ध्यान दें।
            माँ  को चाहिए
त्यौहार के सीजन में भी जितना हो सके
,घर माहौल  पढाई वाला बनाये
रखे
, ताकि बच्चों का मन ना भटके। बच्चो का कमरा ऐसी जगह होना चाहिए जहा महमानों कि आवाजाही ना हो, ताकि
बच्चे शांति से पढाई के सके।



बच्चों के मन से परीक्षा का डर कैसे दूर करें  

जब बच्चा स्ट्रेस में खाना -पीना , सोना कम कर दे 

             स्ट्रेस को दूर करने के लिए सबसे
अच्छा तरीका है कि बच्चे पर्याप्त नींद ले। पढाई के बीच  में दो से तीन  घंटे में कुछ न कुछ खाते रहे। परीक्षा के दौरान
नई चीज बिलकुल न पढ़े
, बल्की जो पहले पढ़ चुके है, उन्हें अच्छे से दोहरायें
               आप  बच्चो पर किसी तरह का दबाव न डालें। उन्हें पढाई के लिए प्रोत्साहित
करें कि कैसे वो अच्छे से पढाई कर सकते है। उन्हें पढाई के लिए इजी ट्रिक्स बताये।

कैसा हो आपका बच्चों के साथ व्यवहार 

           चूँकि परीक्षा का दबाव बच्चो के साथ
पेरेंट्स को भी होता है।
इसलिए बच्चो को चाहिए कि अगर पेरेंट्स उन्हें कुछ कह भी देते है तो
उस बात को दिल 
से ना लगाकर अपनी पढाई में पूरा ध्यान लगाए।
                       माँ को समझना  यह चाहिए कि बच्चों के अंदर जितनी क्षमता है,
उसके अनुरूप ही उनसे अपेक्षाए रखे। पेरेंट्स अपनी अधूरी इच्छाए
बच्चो के जरिये पूरा 
करने की कोशिश ना करें।

जब बच्चा बहुत निराश हो 

अगर बच्चे
को लग रहा है की वो पास नही हो पायेगा तो वो निराशा में डूब जाता है | ऐसे में
बच्चा कम खाता है , एकांत में रहना पसंद करता है , सुस्त दिखाई देता है | ऐसे में
बच्चे को खुलकर अपनी समस्या माता –पिता को बतानी चाहिए |
                 बच्चा अगर निराश दिखाई दे तो उसे अकेला
न छोड़े | उसके साथ समय बिताएं | उसकी बात को ध्यान से सुनें | तुरंत उत्तर न देने
लगें | अगर आप को भी लग रहा है की कहीं बच्चा वास्तव में फेल हो सकता है तो भी उसे
प्रोत्साहित करें | अगर उसकी निराशा ज्यादा है तो मनोचिक्त्सक की सलाह लें |

सामजिक दवाब से बच्चे को कैसे बचाएं 


                  अरे आप का बिट्टू तो टॉप
करेगा ही , या फलां बच्चा ज्यादा होशियार है | ये दोनों बातें बच्चे के मन पर
सामाजिक दवाब को बढ़ाती हैं | जिससे बच्चा नर्वस होने लगता है | ऐसे में बच्चों को
इस प्रकार के लोगों से बचना चाहिए जो उनके आगे हाई स्टैण्डर्ड रखते हैं या फ़ालतू
तुलना से उनका मनोबल तोड़ते हैं |
               भूल कर भी अपने बच्चे की
तुलना दूसरे बच्चों से न करें | अगर घर आया कोई व्यक्ति ऐसा कर रहा है तो उसके
सामने ही अपने बच्चे के पोजिटिव पॉइंट्स बोले | इससे बच्चे का मनोबल बढेगा |
             तो ये थे कुछ टिप्स जिन्हें एग्जाम
के दिनों में इस्तेमाल कर बच्चो का अपना टेंशन दूर कर सकते हैं | जिससे एग्जाम भी
स्ट्रेस फ्री निपट जायेंगे व् रिजल्ट  भी मन माफिक आएगा |
सरिता जैन

                         

लेखिका

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