कुछ रचनाएँ बीनू भटनागर जी के काव्य संग्रह ” मैं सागर में एक बूँद सही” से



कुछ रचनाएँ बीनू भटनागर जी के काव्य संग्रह " मैं सागर में एक बूँद सही"  से







बीनू भटनागर  जी  की कवितायें  भावनाओं का सतत प्रवाह है |  किसी नदी की भांति यह अपना  आकार स्वयं  गढ़  लेती हैं |बीनू जी यथार्थ  को यथार्थ की तरह रखती हैं वह उसे अनावश्यक बिम्बों का जामा नहीं पहनाती | इसीलिए पाठक किसी मानसिक  द्वंद से गुज़रे बिना  उन कविताओं से सीधे जुड़  जाता है | कहीं कहीं कविताओं  में लयात्मकता भी दृष्टिगोचर होती है | जो कविताओं को और अधिक प्रभावशाली बना देती है | बीनू जी का यह प्रथम काव्य संग्रह  है | जो उनकी शब्दों और भावों पर पकड़  के कारण  अनुपम बन गया है |इसमें उन्होंने दर्शन और आध्यात्म,पीड़ा,प्रकृति और प्रदूषण, पर्यटन,ऋतुचक्र,हास्य और व्यंग्य,समाचारों की प्रतिक्रिया आदि अनेकों विषयों को अपनी सजग लेखनी से कलमबद्ध किया है | कुछ रचनाएँ उनके काव्य संग्रह ” मैं सागर में एक बूँद सही ” से 




कुछ रचनाएँ बीनू भटनागर जी के काव्य संग्रह 

” मैं सागर में एक बूँद सही”  से 









मै सपनो मे नहीं जीती
        मै सपनो मे नहीं जीती
        सपने मुझमे जीते हैं।
           मेरी कविता भी,
        कल्पना मे नहीं जीती,
           ये वो नदी है जो,
        यथार्थ मे ही बहती है।
         कल्पना का आँचल,
        यथार्थ ने पकड़ा हो,
         तभी कविता मेरी,
          आकार लेती है।
        निराशा और आशा से,
         बनती है कहानी भी,
          कहानी मे भले ही,
         संघर्ष और दुख हों,
          हौसले नहीं टूटेंगे,
          घरौंदे नहीं छूटेंगे,
        उम्मीद से बंधे होंगे,
          किरदार सब मेरे।
        जब मै लेख लिखूँगी,
        जीवन को दिशा दूँगी,
      मिथ्या और अंधविश्वास से,
        निरंतर लड़ूगी मै,
    सामाजिकधार्मिक कुरीतियों का,
       विरोध करती रहूँगी मै।


कोशिश



कुछ अनचाहा सा,
कुछ अनसोचा सा,
कुछ अनदेखा सा,
कुछ अप्रिय सा,
जब घट जाता है,
तो मन कहता है नहीं
ये नहीं हो सकता,
दर्द और टीस का कोहरा,
छा जाता है सब ओर।
पर नियति है
स्वीकारना तो होगा
थोड़ा मुश्किल है,
पर करना तो होगा..
ये स्वीकारना ही एक ऐलान
है
,
उस अनचाहे से लड़ने का,
अपनी शक्ति समेटने का,
फिर विजयी होने की
संभावना के साथ जीना
,
पल पल हर पल,
विजय मिले या आधी अधूरी
ही मिले
,
पर कोशिश पूरी है,नहीं आधी अधूरी है।


कुछ रचनाएँ बीनू भटनागर जी के काव्य संग्रह " मैं सागर में एक बूँद सही"  से




वो चला आयेगा   
                             
 मन से
पुकारो
,
  वो चला आयेगा।
 राह मे कोई
  मिल जायेगा,
 जब वो उजाले
 मे ले
जायेगा
,
 तब सब साफ़
 नज़र आयेगा।
 पहचानो,  
 भगवान नज़र
आयेगा
,
 क्योंकि,
 वह नीचे आता
है
  कभी  ,नहीं
 ज़रिया
बनाकर
 भेजता है,
 इन्सान को
ही।
 वो होगा
इन्सान ही
,
 कुछ समय के
लियें
,
 तुम्हारे ही
लियें
,
 थोड़ा ऊपर
उठ जायेगा।
 वो मित्र, शिक्षक, चिकित्सक,
 या कोई और भी हो सकता है।
 तुमसे
तुम्हारी
,
 पहचान वो
करायेगा
,
 मन की
खिड़कयाँ खोलो
,
 धूल की पर्त
को धोलो
,
 वो  सहारा देगा,,,
 पर सहारा
नहीं बनेगा
,
 तुम्हे  राह दिखाकर,

 भीड़ मे खो
जयेगा।


दीवाली 



बहुरंगी रंगोली सजाई,
चौबारे पर दिये जलाये,
लक्ष्मी पूजन आरती वंदन,
 कार्तिक मास अमावस आई।
मन मयूर सा नाच उठा जब,
साजन घानी चूनर लाये,
 घानी चूनर जड़े सितारे,
दीप दिवाली के या तारे
खील बताशे पकवान,
और मिष्ठान निराले,
अपनो के उपहार अनोखे,
स्नेह संदेशालेकर आये 
फुलझड़ी  अनार चलाये,
बंम रौकिट का शोर  करके,
फूलों से सजावट करके,
दीवाली त्योहार मनाये।

 नदिया

हिम से जन्मी,
पर्वत ने पाली,
इक नदिया।
साथ लिये फिरती वो,
बचपन की सहेलियाँ,
घाटीघाटीझरनेझरने,
करतीवोअठखेलियां।
बचपन बीताआई जवानी,
मैदानों मे पंहुची,
कितनी ज़िम्मेदारियां,
फ़सल सींची, प्यास बुझाई,
हुई प्रदूषित उसकी काया।
धीरेधीरे ढली जवानी,
मंद पड़ीअंगड़ाइयाँ।
शाँत हुई,नहीं रुकी फिर भी,
धीरेधीरे बहती गई,
सागर से मिलकर ,
बढ गईं गहराइयां।
मानव जीवन की भी कुछ,
ऐसी ही हैं कहानियाँ।
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