भोजन की थाली

           

भोजन की थाली

कहते है जब इंसान भूखा होता है तो उसको सिर्फ एक चीज ही दिखाई देती है , वो है रोटी | भूखा व्यक्ति तो चाँद को भी रोटी समझता है | फिर वो तो बच्चे थे | कडकडाती ठंड के दिन , जब बड़े घरों के लोग चार -चार स्वेटर , कोट मफलर व् मोजों में पैक हो कर भी काँप रहे थे | तो एक छोटी सी कम्बली में तीन प्राणी कहाँ समाते | पेट की भूख सोने भी नहीं देती | कभी  दो साल की गुडिया कहती अम्मा रोटी ,तो कभी तीन साल का पप्पू माँ से रोटी की गुहार लगाता |

लाचार बुखार से तपती विधवा माँ उठकर खाली बर्तन में पानी भर कर चमचे  से चलाती | बच्चों को दिलासा देती , सो जाओं अभी दाल पक रही है |

पर ये खेल ज्यादा देर तक नहीं चल सका बिलबिलाते बच्चों की भूख से दिल का ताप इतना बढ़ा कि देह ठंडी पड़ गयी |

लोगों ने पैसा जमा कर  क्रियाकर्म की व्यवस्था की | उन्हीं जमा पैसों से  तेरहवीं के खाने की व्यवस्था की | विडम्बना है कि जो लोग जीते पर पैसे इकट्ठे कर के दो रोटी न दे सके , वो तेरहवीं का भोज खिलवा  रहे थे | जिन्दा से मरे का भय इंसान को ज्यादा होता है , फिर आखिर छोटे बच्चों को छोड़ कर गयी थी , आत्मा तो भटक ही रही होगी | गुडिया और , पप्पू की फिकर किसी को नहीं थी , वो तो तो यूँ ही अगल -बगल में खेलते -खाते बड़े हो ही जायेंगे |

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तेरहवीं का भोज सज चुका  था | गुडिया और पप्पू अंगुलियाँ चाट -चाट कर खाए जा रहे थे | उन्हें माँ से ज्यादा इस समय रोटी की जरूरत थी |

किसी ने पूड़ी हाथ में ले दौड़ती गुडिया को टोंका , माँ मरी है और बच्ची को देखो कैसे चटखारे ले ले कर खा रही है |

एक पल को गुडिया सहम गयी , हाथ रुक गए , धीरे से बोलने वाले के पास जा कर कहने लगी , काकी त्या अब पूली पप्पू ते मरने पर मिलेगी |

मैं पप्पू ते कहूँगी जल्दी मर जाओ , मुझे दोबारा पूली खानी है |

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                                   दोस्तों ये गुडिया नहीं उसकी भूख बोल रही थी | दरसल ये एक कहानी नहीं सन्देश है , जो खाना आप बर्बाद कर देते हैं उसकी किसी को कितनी आवश्यकता है | कहते हैं जितना खाना अमेरिका में फेंका जाता है उससे पूरे सोमालिया का पेट भर जाए | प्लेट में खाना छोड़ना भले ही पैसे वालों का शौक हो , पर   भूखे के लिए वो जीवन है | प्लेट में उतना ही खाना लें जितना जरूरी हो अपनी  क्षमता भर अन्न जरूरत मंदों को बाँटे

दीप्ति दुबे

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2 thoughts on “भोजन की थाली”

  1. जो लोग भूके होते हैं उनको भोजन का महत्व होता हैं, हम शादी या कोई भी समारोह में इतना खर्च करते हैं उतना अगर गरीबों को खाना खिलाये तो हम से ज्यादा पुण्यवान कोई भी नहीं होंगा, सारे तीर्थ करने वाले भी.

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