दो मेंढक एक ऐसी प्रेरक कथा है हमें बहुत कुछ सोंचने पर विवश कर देती हैं | यकीनन मेंढक को प्रतीक बना कर कर कही गयी ये कथा हमारी दुविधा को कम कर के सफलता का रास्ता दिखाती है | |
Motivational story-Two frogs(in Hindi)
दो मेंढक थे वो बहुत अच्छे दोस्त थे | हर जगह साथ- साथ जाते | साथ -साथ घुमते फिरते , खेलते कूदते , खाते -पीते| एक बार की बात है वो एक कुए के ऊपर से गुज़र रहे थे | कुआं ज्यादा गहरा नहीं था , पर उसमें काई बहुत थी | कुए के ऊपर भी काई थी | उनका पैर फिसला और वो कुंए में गिर पड़े |
कुए में गिरते ही वो दोनों बचाओ -बचाओ चिल्लाने लगे , साथ ही बाहर निकलने की कोशिश करने लगे | | आसपास के मेंढक कुए की जगत पर इकट्ठे हो गए | ये दोनों मेंढक जितनी कोशिश करते उतनी बार ही वापस कुए में गिर जाते |
जो मेंढक बाहर इकट्ठे थे , जब उन्होंने यह दृश्य देखा तो जोर -जोर से चिल्लाने लगे , ” कोशिश बेकार है तुम लोग नहीं निकल पाओगे , हाथ पैर मत चलाओ , होनी को स्वीकार कर लो |
अब उनमें से एक मेंढक तो उनकी बात मान गया और निराश हो कर हाथ पैर चलने बंद कर दिए , वो ईश्वर को याद करने लगा | क्योंकि अगर मदद करेंगे तो वो ही करेंगे और नहीं करेंगे तो अंत समय भगवान् का नाम लेने से अच्छा ही रहेगा |
परन्तु दूसरा मेंढक कोशिश करता रहा | लोग चिल्लाते रहे मत करो , कोशिश बेकार है पर उसने एक न मानी वो कोशिश करता रहा | यहाँ तक की वो लहु लुहान हो गया , फिर भी बाहर निकलने की कोशिश करता रहा |
अंत में उसने एक ऐसी छलांग लगायी कि वो बाहर आ गया पर उसका दोस्त कुए में डूब कर मर चूका था |
आप जानते हैं कि वो मेंढक कैसे निकला … क्योंकि वो मेंढक बहरा था |
मित्रों ये केवल प्रतीक हैं | जब भी हम कुछ काम शुरू करते हैं दस लोग आ जाते हैं जो हमें डीमोटीवेट करते हैं , रहने दो तुमसे नहीं होगा , जाने दो , छोड़ दो … ये बातें हमारे आत्मबल को कम करती हैं | और हम में से ज्यादातर लोग काम को छोड़ देते हैं | परन्तु जो लोग इन बैटन को अनसुना करके अपना प्रयास नहीं रोकते हैं , सफलता न मिले तब भी करे जाते हैं | अन्तत: उन्हें ही सफलता मिलती हैं |
सबसे बड़ा रोग -क्या कहेंगे लोग … संदीप माहेश्वरी
टीम ABC
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बहुत ही अच्छी जानकारी मिली इस पोस्ट से,यह मेरी फेवरेट वेबसाइट है
धन्यवाद रवि जी