गली मे गठिया पीडित बुढिया घूमते घूमते थक गयी और धीरे धीरे चलते हुऐ मेरे पास आकर सुस्ताने लगी। मैने पूछ ही लिया_क्या हुआ? आंखो मे आंसू भर कहने लगी,,, बहन जी मै छह छह बेटो की मां हूं फिर भीबूढे पति संग अलग रह रही हूं।
सारे बेटे अपने वीवी बच्चो संग मस्त है! हमने कया खाया क्या नही। कपडे धुले या नही। उन्हे कोई मतलब नही। मै गठिया के मारे कपडे धो नही पाती। काम होता नही। करना पडता है। फिर भी मेरे बेटे मुझसे कुछ ना कुछ धन मांगते रहते है। कहते है मां के पास बहुत पैसा है। मैने कहा हां बेटा, हमने साथ तो ले जाना नही, उसी को देगे सारा कुछ जो हमारी सेवा करेगा।
बहन जी, बुढापा इतना बुरा नही,, ये तो सब को आना है,! बेटे बहू का साथ मिले तो बहुत सा काम हम बैठै बैठै भी निपटा देगे। पर बहू बेटे को आजादी चाहिये इसीलिये संग रहकर खुश नही। उसकी बाते सुनकर मन भर आया मै सोच रही थी एक मां छह बच्चो को पाल लेती है और छह बच्चे मिलकर भी एक मां को नही पाल सकते। कैसी समय की गति है? कैसी है ये आजकल की कलियुगी औलाद?
रीतू गुलाटी*ऋतु*
सत्य है-आजकल की कलयुगी संतान अपने माता पिता का सहारा नहीं बनना चाहती. बढ़िया लेख