जब भी हम कोई काम शुरू करते हैं तो शुरूआती महीने बहुत महत्वपूर्ण होते हैं | ये काम चाहे आपकी नयी किताब का लेखन हो, एग्जाम की
तयारी हो या किसी बिजनेस या ऑफिस के नौकरी या प्रोमोशन पाने के लिए किये जाने वाले काम की शुरुआत | हम जब भी कोई काम करते हैं तो हमें दो चीजों पर ध्यान देना होता है | पहली अपनी मानसिक शक्ति पर दूसरा अपनी कार्य कौशल पर | सफलता के लिए वैसे तो ये दोनों जरूरी हैं पर शुरूआती दौर में मानसिक शक्ति, मनोबल या मानसिक सोंच (mind set) की ज्यादा जरूरत होती है ,कार्यकौशल (skill) धीरे -धीरे बढाया जा सकता है | इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि आपकी मानसिक शक्ति या सोंच (will ) वो जड़ है जो आपसे काम करवाती है , और कार्यक्षमता वह पेड़ है जिस पर सफलता के फल लगते हैं| ये बात मैं बार -बार इसलिए दोहरा रही हूँ ,क्योंकि अगर शुरुआत में पर्याप्त सफलता न मिलने पर आपकी मानसिक सोंच कमजोर पड़ जाती है आप निराश हो जाते हैं तो काम को बीच में तो काम को बीच में ही छोड़ देते हैं ऐसा करके आप सारी संभावनाओं को ही नष्ट कर देते हैं|
किसी काम की शुरूआती महीने और आप की मानसिकता
-power of mind set during first few months of a work (in Hindi )
रीता और उसकी सहेलियों एक छोटा सा काम शुरू किया| काम था केक बनाने का , पाँचों सहेलियां एक -एक दिन बारी -बारी से किसी एक के घर इकट्ठी होती | सब मिल कर कर केक बनाते , आर्डर लाने का प्रयास करते और जहाँ से आर्डर आया , वहाँ सही समय पर पहुंचाते | कुकिंग उन सब का शौक था , केक को अलग -अलग तरीके से बनाने के उनके कुछ इनोवेटिव आईडिया थे , नए -नए प्रयोग करके उन्हें काम करने में मज़ा आ रहा था | शुरू में कुछ आर्डर मिले , इनमें से ज्यादातर आर्डर उनके जान -पहचान वालों के ही थे , पर थोड़ी सी इनकम शुरू हुई , और प्रशंसा ढेर सारी मिली |
छोटे -छोटे आर्डर मिलते ४ -६ महीने बीत गए | प्रॉफिट बहुत बढ़ा ही नहीं | जैसा की अक्सर किसी नए काम को शुरू करने पर होता है उन सब ने सोंचा था उनका काम बहुत तेजी से चलेगा , खूब सारे पैसे आयेंगे | उन पैसों से वो क्या -क्या खरीदेंगी इसकी भी योजना उन्होंने बना ली थी| परन्तु आर्डर ज्यादा आये नहीं | निराशा बढ़ने लगी, काम से मन हटने लगा | उन सब को लगा रोज -रोज केक बना कर आर्डर का इंतज़ार करने से अच्छा है घर बैठों | लगता है हमारी किस्मत में कमाना लिखा ही नहीं है | थोड़ी बहुत आपसी फूट भी शुरू हो गयी | सबने काम बंद होने का निर्णय ले लिया | कुछ सहेलियाँ मूड ठीक करने अपने मायके चली गयीं |
काम बंद होने के ठीक 15 दिन बाद शहर के एक बड़े व्यापारी ने एक बहुत विशाल केक का आर्डर किया जो उन्हें अगले ही दिन चाहिए था | दरसल व्यापारी की बेटी ने अपनी किसी सहेली के यहाँ उनका केक खाया था | उसे बहुत अच्छा व् अलग लगा इसलिए वो चाहती थी कि उसके जन्मदिन पर वही केक बने | इसके लिए उसने विशेष रूप से रीता का नंबर माँगा था | अगर उस पार्टी में रीता के ग्रुप का केक जाता तो उसका बहुत अच्छा प्रचार होता क्योंकि उस पार्टी में बड़े -बड़े नेता व व्यापारी व् अफसर आने वाले थे | परन्तु अब रीता कुछ नहीं कर सकती थी | वो अकेले इतना बड़ा केक बना नहीं सकती थी और उसके पास टीम थी ही नहीं | मजबूरी में उसे कहना पड़ा कि उसका केक बिजनेस बंद हो गया है |
अगर रीता और उसकी सहेलियां शुरूआती असफलता से हार नहीं मानतीं तो उनका केक बिजनेस आज बहुत सफल हो गया होता |
ऐसा सिर्फ रीता के साथ ही नहीं हुआ , बहुत से लोगों के साथ होता है जो शुरूआती असफलता को सहन नहीं कर पाते हैं और निराश होकर काम को वहीँ बंद कर देते हैं | वो इस बात को नहीं जानते कि शुरू में सबका काम छोटा ही होता है , लेकिन जो लगातार लगा रहता है उसी का काम बड़ा होने की सम्भावना होती है |
इसलिए शुरूआती असफलता या कम सफलता से निराश न होकर अपने काम में लगे रहना चाहिए | अगर आपको अपने आप पर और अपने काम पर पूरा विश्वास है तो आप को सफलता जरूर मिलेगी |
क्यों छोड़ते हैं लोग शुरू के दिनों में काम?
लोग शुरू के दिनों में काम इसलिए छोड़ते हैं क्योंकि वो थोड़े के महत्व को नहीं समझते | विश्व विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का कहना था कि –
कंपाउंड इंटरेस्ट ( चक्रवर्धी ब्याज ) दुनिया का आठवाँ आश्चर्य है जो इसे समझ लेता है , वो कम लेता हैं , जो नहीं समझता इसकी कीमत अदा करता है |
क्या आप सोंच सकते हैं कि आइन्स्टीन ने ऐसा क्यों कहा ? दरअसल जब हमें थोडा लाभ मिल रहा होता है तो हम ये अंदाजा नहीं लगा पाते कि इस थोड़े से कितना बढ़ सकता है और निराश होकर काम छोड़ देते हैं |
इसके लिए एक कहानी हमारे ग्रंथों में है , आइये आपको सुनती हूँ …
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एक राजा दान के लिए बहुत प्रसिद्द था | कहा जाता था कि उसके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था | एक दिन उस के दरबार में एक साधु आता है , उस समय राजा शतरंज खेल रहा होता है | साधु राजा से कहता है , ” महाराज मुझे भिक्षा चाहिए |
राजा कहता है आप को मेरे राज्य में जो चीज पसंद आये उसे ले लें |
साधु कहता है ,” महाराज मुझे बस थोड़े से अन्न के दाने चाहिए |
राजा : महात्मन आप जो चाहे ले लें , सिर्फ अन्न के दाने ही क्यों ?
साधु : नहीं महाराज मुझे बस अन्न के दाने ही चाहिए |
राजा : महात्मन आप मेरी ताहीं कर रहे हैं |
साधु : मैंने जो माँगा है , मुझे बस वही चाहिए |
राजा : ठीक है आपको कितने दाने चाहिए |
साधु : ये जो आप शतरंज खेल रहे हैं , उसमें पहले खाने पर एक दाना रख दीजिये , अब हर अगले खाने पर उसके पिछले खाने के वर्ग के अनुसार दाने रख दीजिये | जैसे पहले में एक दूसरे में दो , तीसरे में चार चौथे में आठ |
राजा : बस -बस बस , मैं समझ गया , शतरंज में केवल चौसठ खाने होते हैं | मतलब आपको बहुत थोड़े से दाने चाहिए | राजा ने सैनकों को आदेश दिया कि इन साधु को गिनती कर के दाने दो |
थोड़ी देर में सैनिक राजा के पास आये और बोले ,” महाराज इतने दाने तो हम दे ही नहीं सकते |ये असंभव है |
दरसल वो दाने संख्या में 18,466,744,073,709,551,615दाने , मतलब इतने दानों का एक चौथाई अनाज भी १० माउंट एवेरेस्ट को ढक सकता है |
राजा ने साधु को अनाज दे सकने में असमर्थता व्यक्त करते हुए क्षमा मांग ली | दरअसल उसने थोड़े का महत्व नहीं समझा था | जो लोग थोड़े का महत्व समझते हैं वो जानते हैं कि थोडा-थोडा करके कितना बढ़ जाता है |
कुछ अन्य उदाहरण देखिये ….
1) जब व्यक्ति शुरू -शुरू में सिगरेट पीता है तो उसे लगता है कुछ नहीं होता पर थोडा सा कुछ हो गया होता है जो थोडा -थोडा मिलकर बड़ी बिमारी का रूप ले लेता है |
2) जब आप हाई कैलोरी डाईट लेते हैं तो लगता है कि थोड़े से कुछ नहीं होता पर यह थोडा बढ़कर मोटापे के रूप में सामने आता है |
3)सुबह उठने में थोड़ी सी लापरवाही कर ली आगे चलकर देर से उठने की आदत बन जाती है |
आपको क्या करना है ?
जब भी हम कोई काम शुरू करते हैं और थोड़ी सफलता मिलती है तो हम निराश हो कर काम छोड़ देते हैं | जरा गौर करिए …
1)एक बच्चे ने कुछ दिन पढाई की , फर्स्ट टेस्ट में नंबर कम आये | अब उसने ज्यादा पढना छोड़ दिया क्योंकि उसे लगा कि बहुत पढने से भी कुछ ख़ास तो हो नहीं रहा है | दूसरे ने पढाई जारी रखी |
2)एक कर्मचारी ने प्रोमोशन के लिए बहुत मेहनत की पर लिस्ट में उसका नाम नहीं था | उसने ज्यादा मेहनत ये सोंच कर छोड़ दी कि क्या फायदा बॉस तो चापलूसी करने वालों को प्रोमोशन देता है | दूसरे ने निराश होते हुए भी काम जारी रखा |
3)दो सहेलियों ने साथ -साथ नावेल लिखना शुरू किया | दोनों ने उसके कुछ अंश शेयर किये | रिस्पोंस अच्छा नहीं मिला , कुछ लोगों ने तो आलोचना तक कर डाली | पहली सहेली ने नावेल लिखना छोड़ दिया दूसरी ने जारी रखा |
दो दोस्तों ने ब्लॉग शुरू किया | शुरू में पाठक आये ही नहीं , एक ने निराश हो कर छोड़ दिया , दूसरे ने लिखना जारी रखा |
क्या आप परिणाम नहीं जानना चाहेंगे ?
हर उदाहरण में पहले व्यक्ति संभावनाएं पूरी तरह खत्म हो गयीं | वो निराशा में डूब गए |
दूसरा बच्चा वार्षिक परीक्षा में क्लास में फर्स्ट आया |
दूसरी सहेली का नावेल छपा और बहुत लोकप्रिय हुआ |
दूसरे कर्मचारी को दो साल बाद डबल प्रोमोशन मिला |
दूसरे दोस्त का ब्लॉग इतना पढ़ा गया कि उसे बेस्ट ब्लॉगर का अवार्ड भी मिला |
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इस तुलनात्मक आंकड़े में दोनों की प्रतिभा बराबर थी , अगर थोड़ी कम , ज्यादा भी थी तो भी उसे निखारा जा सकता था , लेकिन जो लोग शुरुआत की निराशा नहीं झेल पाए वो पहले ही मैदान छोड़ गए , उन्होंने खेल खेला ही नहीं | फिर जीत कैसी ?ये खेल प्रतिभा की कमी का नहीं सोंच की कमी या mind set का था |
श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि ..
इसकी धार्मिक व्याख्या हम सब ने पढ़ी है आज इसकी वो व्याख्या भी समझ लें जो बड़े -बड़े बिजनेस स्कूल में पढाई जाती है | इस व्याख्या के अनुसार अगर आप कर्म फल में उलझेंगे तो आप निराश होकर कर्म ही छोड़ सकते हैं | इसलिए कर्म करिए बेहतर से बेहतर कर्म करिए और धैर्य रखिये , फल अवश्य मिलेगा |
इसी लिए अगर आप कोई काम शुरू करते हैं तो शुरुआत के महीनों में परिणाम की अपेक्षा किये बिना सिर्फ काम पर ध्यान दें , असफलता से निराश होकर काम न छोड़े , उसी उत्साह से करें | विश्वास करें शुरुआत की थोड़ी से सफलता बड़ी बनेगी , जरूर बनेगी |
वंदना बाजपेयी
(अगले लेख में mind set स्थिर रखने पर बात करेंगे , मेरा छोटा सा प्रयास है कि आप सब अपने जीवन में सफलता व् शांति प्राप्त करें )
आपका दिन शुभ हो
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keywords:work management tips ,importance of first few months of a new work , key to success , mind set, power of mind set
बहुत ही सुन्दर, सार्थक एवं प्रेरणादायी आलेख.. निश्चित ही इस आलेख से पाठकों को लाभ मिलेगा!
साधुवाद वंदना जी!
धन्यवाद किरण जी
बहुत प्रेरणादायक आलेख वंदना जी।
धन्यवाद ज्योति जी