कहते हैं बच्चे और बूढ़े एक सामान होते हैं … बात -बात पर जिद्द करना मचलना , गुस्सा दिखाना और अपनी ही बात से मुकर जाना बढती उम्र में न जाने क्यों आने लगता है | जब कोई बच्चा होता है तो उसे अहसास होता है कि माता -पिता हमारे लिए कितना कर रहे हैं … पर क्या बुजुर्गों को भी ये अहसास होता है |
Ahsaas-Short story in hindi
80 बरस से ऊपर की उम्र , खाया -पिया कुछ पचता ही नहीं , फिर भी न जाने क्यों जानकी देवी की जुबान साधारण खाने को देखते ही इनकार कर देती , हर समय अच्छे खाने की फरमाइश करती | कभी बेसन के सेव , कभी पूरियाँ , कभी घी भरा सोहन हलवा , यही खाती | खा तो लेतीं पर पचा न पातीं | दस्त लग जाते | डॉक्टर ने भी तला -भुना खाने से मना किया था , परन्तु जानकी देवी मानती नहीं , मनपसंद खाना न मिलने पर, जिद्द पकड़ लेती , पूरा घर सर पर उठा लेती | सबके सामने बहू को दोष देते , तोहमत लगाते हुए कहतीं ,” आजकल की बहुएं , बस चार रोटी तवे पर डाल कर खुद को कमेरा समझने लगती हैं | एक हमारा ज़माना था , मजाल है कि सास का कहा टाल जाएँ | बताओ आज कहा था , २ , ४ पकौड़ी बना दे , वो भी नहीं बनायी | ऊपर से डॉक्टर का बहाना ले लेती हैं | ये तो मेरा बेटा श्रवण पूत है जो साथ रह रही है , वरना कब की उसे ले कर अलग घर बसा लेती |
शाम तक बात बेटे किशोर के पास पहुँच ही जाती | हमेशा की तरह किशोर अपनी पत्नी मृदुला को डांटते हुए कहता ,” क्या तुम मेरी माँ को उनके मन का बना कर खिला नहीं सकती | माँ ने मेरे लिए कितना कुछ किया है , मैं उनके लिए उनकी इच्छा का खिला भी नहीं सकता |
मृदुला तर्क देती ,” मैं भरसक कोशिश करती हूँ , माँ की सेवा करने की , वो मेरी माँ जैसी ही हैं , पर क्या आप को पता है माँ का पेट कितना ख़राब रहता है , सादा खाना तो पचा नहीं पाती हैं , भारी खाना खाते ही दस्त लग जाते हैं | कपडे गंदे हो जाते हैं | कई बार तो बाथरूम तक जा ही नहीं पातीं , बुजुर्ग हैं , पैंटी पहनने की आदत नहीं है , गुसलखाने तक जाते -जाते सारा आँगन गन्दा हो जाता है , मुझे साफ़ करना पड़ता है | ऐसे ही दस्त छूट जाएँ तो कोई बात नहीं , कम से कम अम्माँ बदपरहेजी कर के उसे आमंत्रित तो न करें |
पत्नी का उत्तर सुनते ही किशोर जी आगबबबूला हो जाते , जब मैं बचपन में कपडे गंदे कर देता था , तब माँ ने मेरे भी कपडे धोये हैं , आँगन धोया है , अपना मुँह का कौर छोड़ कर मेरी गन्दगी साफ़ की है और हम उनके लिए इतना भी नहीं कर सकते , पकी उम्र है पता नहीं कब साथ छोड़ दें | अब अंतिम समय में उन्हें न सताओं , तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसा कहते हुए , अपनी माँ होती तो कहतीं , सब कर लेतीं … रहने दो तुम न करो , मैं ही नौकरी छोड़ अपनी माँ की सेवा करूँगा |
पति की बात पर मृदुला खुद ही शर्मिंदा हो जाती | शायद उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था | कल को उसकी भी बहू आएगी | शरीर का क्या भरोसा , उसका भी ऐसा ही हो सकता है | उसने अपना मन कड़ा कर लिया और वो काम सहजता से करने लगी जो एक माँ अपने बच्चे के लिए करती है | जानकी देवी भी मनपसंद खाना मिलने से खुश थी , सब से कहतीं , मेरा बेटा बड़ा लायक है , मुझे किसी चीज की कमी नहीं होने देता | बेसन हो , प्याज हो , मिर्च हो सब इंतजाम रसोई में किये रहता है | बहू को क्या करना है , बस घोलना है और कढ़ाई में चुआ देना है , करछुल से हिला कर निकाल देना है | पर मृदुला अब इन बातों को सुनी -अनसुनी कर देती |
दो साल बीत गए | मृदुला की माँ की की मृत्यु हो गयी | रोते -कल्पते वो मायके चली गयी | माँ की सेवा का दायित्व किशोर जी पर आ गया | तीन दिन ही बीते कि उन्होंने मृदुला को फोन कर दिया ,” सुनो , माँ की तबियत ठीक नहीं है , मुझसे अकेले नहीं संभाला जा रहा है , दस्त इतने है की कपडे तो गंदे होते ही हैं , गुसलखाने तक जा ही नहीं पाती , सारा आँगन गन्दा कर देती हैं , कैसे करूँ मैं ये सब , उबकाई सी आ जाती है , खाना भी नहीं चलता , मुझसे नहीं होगा ये सब , तुम आ जाओ , तेरहवीं को फिर चली जाना |
जानकी देवी जी जो दूसरे कमरे से ये सब वार्तालाप सुन रही थीं , उनकी आँखे डबडबा गयीं | आज उन्हें पहली बार अहसास हुआ कि उनकी सेवा उनका बेटा नहीं बहू कर रही थी |
अगली ही ट्रेन से मृदुला फिर जानकीदेवी की सेवा के लिए हाज़िर थी | उसके द्वारा पैर छूते ही जानकी देवी उसे सीने से लगते हुए बोली ,” तुम थक कर आई हो , पहले थोडा आराम कर लो , फिर मूँग की दाल की खिचड़ी बना लेना, अब खाना पचता नहीं, स्वाद का क्या है , इस उम्र में वो स्वाद तो आएगा नहीं , थोडा सा नीबू का रस डाल लूँगी , चल जाएगा “|
वंदना बाजपेयी
यह भी पढ़ें …
बहुत सुंदर,प्रेरक कहानी…👌👌
धन्यवाद स्वेता जी
घर घर की कहानी। बहू की अहमियत जल्दी ख्याल में नहीं आती हैं।