राम , हमारे आराध्य श्री राम , मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम | राम का चरित इतना ऊंचा , इतना विशाल है की वो इतिहास के पन्नों से निकल कर मानव के मन में बस गया | जनश्रुति और महाकाव्यों के माध्यम से राम अपने उत्तम चरित्र के कारण युगों युगों तक मर्यादित आचरण की शिक्षा देते आये हैं |
राम – दो अक्षर का प्यारा सा नाम जो पतित पावनी गंगा की तरह मनुष्य के मन के सब पापों को हरता है | अगर प्रभु राम को ईश्वर रूप में न भी देखे तो भी उन चरित्र इतना ऊंचा है की की उन्हें महा मानव की संज्ञा दी जा सकती है | बाल राम , ताड़का का वध करने वाले राम , शिव जी धनुष तोड़ने वाले राम , पिता की आज्ञा मान कर वन जाने वाले राम , केवट के राम ,सिया के विरह में वन – वन आंसूं बहाते राम अहिल्या का उद्धार करने वाले राम , शवरी के जूठे बेरों को प्रेम से स्वीकार करने वाले राम , रावण का वध करने वाले राम | राम के इन सारे रूपों में एक रूप ऐसा है जो की राम के लोक लुभावन रूप पर प्रश्नचिन्ह लगाता है |
वो है सीता को धोबी के कहने पर गर्भावस्था में निष्काषित कर वन में भेज देना देना |
राम के लिए भी आसन नहीं होगा सीता को वन में भेजने का निर्णय
राम के लिए भी ये निर्णय आसान नहीं रहा होगा | कितनी जद्दो- जहद बाद उन्होंने ये निर्णय लिया होगा | कितने आँसू बहाए होंगे | प्रजा पालक राम , राजा राम , मर्यादा पुरुषोत्तम राम … सबके के राम , अपने निजी जीवन में कितने अकेले कितने एकाकी रहे होंगे | कितनी बार सीता के विरह पर छुप छुप कर आँसू बहाए होंगे , हर – सुख में हर दुःख में सीता को याद किया होगा , इसका आकलन करना मुश्किल है | आज हम सहज ही राम के इस निर्णय के खिलाफ सीता के पक्ष में खड़े हो जाते हैं | बहस करते , वाद – विवाद करते हम भूल जाते हैं की राम के लिए भी ये कितना कष्टप्रद रहा होगा |
हमें सीता के पक्ष में खड़े करने वाले भी राम ही है
कोई भी घटना देश और काल के अनुसार ही देखी जाती है | अगर तात्कालिक परिस्तिथियों पर गौर करें तो जब धोबी द्वारा सीता के चरित्र पर आरोप लगाने के बाद अयोध्या में सीता के विरुद्ध स्वर उठने लगे थे | तो राम क्या कर सकते थे |
1 … वो प्रजा से कह देते की वो अग्नि परीक्षा ले चुके हैं उन्हें सीता की पवित्रता पर विश्वास है | अत : सीता कहीं नहीं जायेंगी | यहीं उनके साथ रहेंगी |
अगर ऐसा होता तो लोग दवाब में ये फैसला स्वीकार कर लेते पर सीता के विरुद्ध चोरी – छिपे ही सही आरोप लगाते रहते |
जब भगवान् राम ने सिखाया कार्पोरेट जगत का महत्वपूर्ण पाठ
२ …. राम सीता को निष्काषित कर ये कहते की वो भी राज गद्दी छोड़ सीता के साथ जा रहे हैं | इससे भी वो सीता को वो सम्मान व् दर्जा नहीं दिला पाते जिसकी वो अधिकारी थीं | इसके अतरिक्त युगों – युगों तक एक ऐसे राजा के रूप में याद किये जाते जो निजी हितों को प्रजा से ऊपर रखता है | राजा का कर्तव्य बहुत बड़ा होता है | उसे निजी सुख प्रजा के सुख के कारण त्यागने पड़ते हैं |
३ … राम ने निजी सुख त्यागने का निर्णय लिया | उन्होंने सीता को निष्काषित कर कर स्वयं भी एक पत्नी के अपने वचन पर कायम रहने के कारण अकेलेपन का दर्द झेला | राम के शब्द शायद सीता की पवित्रता को सिद्ध न कर पाते परन्तु उनके अकेलेपन के दर्द ने हर पल प्रजा को यह अहसास कराया की वो सिया के साथ हैं | क्योंकि उन्हें उन पर विश्वास है |राम ये जानते थे की आज के ये दुःख – दर्द भविष्य में सीता की गरिमा मर्यादा व् उत्तम चरित्र को स्थापित करने में सहयक होंगे |
राम होना आसान नहीं है | राम होने का अर्थ उन आरोपों के साथ अकेले जीना है जो मन खुद पर लगाता है ,जिसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं है |
जय सिया राम
वंदना बाजपेयी
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