प्रेम … एक ऐसा शब्द जो , जितना कहने में सहज है , उतना होता नहीं है , उस प्रेम में बहुत गहराई होती है जहाँ दो प्राणी आत्मा के स्तर पर एक दूसरे से जुड़ जाते हैं | इस परलौकिक प्रेम से इतर दुनियावी बात भी करें तो प्रेम वो है जो पहली नज़र के आकर्षण , डोपामीन रिलीज़ , और केमिकल केमिस्ट्री मिलने की घटनाओं को निथारने के बाद बचा रह जाता है वो प्रेम है | प्रेम जितना जादुई है , उतनी ही जादुई है ” लाल फ्रॉक वाली लड़की” , जो अपनी खूबसूरत लाल फ्रॉक में गूथे हुए है कई प्रेम कहानियाँ … जितनी बार वो इठलाती है, झड जाती है एक नयी प्रेम कहानी … अपने अंजाम की परवाह किये बगैर | मैं बात कर रही हूँ ‘मुकेश कुमार सिन्हा’ जी के लप्रेक संग्रह “लाल फ्रॉक वाली लड़की की “
प्रेम की परिभाषा गढ़ती – लाल फ्रॉक वाली लड़की
मुकेश कुमार सिन्हा जी कवितायें अक्सर फेसबुक पर पढ़ती रहती हूँ | उनका काव्य संग्रह हमिंग बर्ड भी पढ़ा है | उनकी यह पहली गद्य पुस्तक है , परन्तु इस पर भी उनका कवि मन हावी रहा है | शायद इसीलिये उन्होंने पुस्तक की शुरुआत ही कविता से की है ..
स्मृतियों की गुल्लक में
सिक्कों की खनक और टनटनाती हुई मृदुल आवाजों में
फिर से दिखी वो
‘लाल फ्रॉक वाली लड़की “
उसके बाद शुरू होती है छोटी-छोटी प्रेम कहानियाँ |जो बताती हैं कि प्रेम उम्र नहीं देखता , जाति धर्म नहीं देखता , समय -असमय नहीं देखता , बस हो जाता है …. और फिर और अलग-अलग चलने वाली दो राहे किसी एक राह पर मिलकर साथ चल पड़ती है |
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कहानियों में हर उम्र के प्रेम को समेटने की कोशिश की गयी है , कुछ कहानियाँ जो आज के युवाओं के फटफटिया प्रेम को दर्शाती है जो नज़र मिलते ही हो जाता है तो कुछ ‘अमरुद का पेड़ ‘ हंसाती हैं , ‘सोना-चाँदी ” जैसी कुछ कहानियाँ है जो परिपक्व उम्र के प्रेम को दर्शाती हैं , “व्हाई शुड बॉयज हव आल द फन ‘ प्रेम की शुरुआत में ही उसका अंत कर देती हैं |
संग्रह में 119 प्रेम कहानियाँ (लप्रेक ) हैं | इसका प्रकाशन ‘बोधि प्रकाशन’ द्वारा हुआ है | कवर पेज बहुत आकर्षक है | लप्रेक की ख़ूबसूरती ही इसमें है की उसे कम शब्दों में कहा जाए , अगर आप छोटी -छोटी हँसती , मुस्कुराती , गुदगुदाती प्रेम कहानियाँ पढने के शौक़ीन हैं तो ये आप के लिए बेहतर विकल्प है |
वंदना बाजपेयी
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अचंभित हो रहा हूँ,ये पढ़ कर कि मेरे लाल फ्रॉक वाली लड़की के लिए भी इतनी प्यारी समीक्षा हो सकती है। शुक्रिया वंदना जी। धन्यवाद ��