मेखला

मेखला



   
                    


संबंधों की डोर कुछ ऐसी तनी
कि रिश्तों के मनके बिखर गए,
कोई किधर , कोई किधर
और कुछ तो खो ही गए ।




मैंने उन्हें बटोर कर फिर से
पिरोने का प्रयास किया ,
पर अहसास हुआ कि
कमज़ोर डोर पर टूटे, बिखरे रिश्तों को
नहीं पिरोया जा सकता।




तब मैंने नए सिरे से,
आत्मीयता की डोर में,
निश्छल, नि:स्वार्थ प्रेम
के रिश्ते , गहरे प्रगाढ़ संबंधों
के मनके पिरोये हैं ।
इस दृढ़ विश्वास के साथ
कि यह मेखला कभी नहीं टूटेगी ।


अन्नदा पाटनी


लेखिका



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