संबंधों की डोर कुछ ऐसी तनी
कि रिश्तों के मनके बिखर गए,
कोई किधर , कोई किधर
और कुछ तो खो ही गए ।
मैंने उन्हें बटोर कर फिर से
पिरोने का प्रयास किया ,
पर अहसास हुआ कि
कमज़ोर डोर पर टूटे, बिखरे रिश्तों को
नहीं पिरोया जा सकता।
तब मैंने नए सिरे से,
आत्मीयता की डोर में,
निश्छल, नि:स्वार्थ प्रेम
के रिश्ते , गहरे प्रगाढ़ संबंधों
के मनके पिरोये हैं ।
इस दृढ़ विश्वास के साथ
कि यह मेखला कभी नहीं टूटेगी ।
अन्नदा पाटनी
यह भी पढ़ें …
यह भी पढ़ें …
बदनाम औरतें
बोनसाई
डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ
बैसाखियाँ
आपको “मेखला “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |