साल में दो बार नवरात्र आती हैं | जहाँ हम सबका प्रयास रहता है कि पूजा -पाठ द्वारा देवी माँ को प्रसन्न करें व् उनका आशीर्वाद प्राप्त करें | आश्चर्य है कि शक्ति की उपासना करने वाले देश में स्त्री आज भी अबला ही है | वो कैसे सबला बनें | इसका समाधान क्या है ? प्रस्तुत है इसी विषय पर एक कविता …
माँ !मुझे शक्ति बनना होगा
माँ
आज तुम्हारे दरबार में सर झुकाते हुए
देख रही हूँ अपने पिता को
जिन्होंने मेरी शिक्षा
यह कह कर रोक दी थी कि
ज्यादा पढ़ा देंगे
ढूंढना पड़ेगा
बहुत पढ़ा-लिखा लड़का
देख रही हूँ अपने भाई को
जिसने कभी पलट कर
माँ से नहीं पूंछा कि
मेरी थाली में खीर
और बहन की थाली में खिचड़ी क्यों ?
नहीं पूछा कि
मुट्ठी भर चावल के दानों को
आँचल में बाँध कर विदा कर देने के बाद
क्यों खत्म होजाता है
उसका इस घर पर अधिकार
मैं देख रही हूँ अपने पति को
जिन्होंने अपने घर की मर्यादा व् इज्ज़त के
कभी न खुलने वाले डब्बे में
मेरे सारे अरमानों , सपनों व् स्वतंत्रता को कैद कर लिया
कभी ठहर कर सोंचने का प्रयास नहीं किया
उनके द्वारा हवा में उछाले गए दो जुमलों
‘करती क्या हो दिन भर ” और
‘कमाता तो मैं ही हूँ “
की तेज धार से
रक्त रंजित हो जाता है
मेरा आत्मसम्मान
मैं देख रही हूँ अपने पुत्र को
जिसकी रगों में दौड़ रहा है
मेरा दूध व् रक्त
फिर भी न जाने क्यों
बढते कद के साथ
बढ़ रहा है उसमें
अपने पिता की सोंच का घनत्व
जो मुझे श्रद्धा से सर झुकाकर प्रणाम करने के बाद भी
यह कहने से नहीं झिझकता कि
लड़कियाँ तो ये या वो काम कर ही नहीं सकती है
मैं देख रही हूँ
सामाज के हर वर्ग , हर तबके ,हर रंग के पुरुषों को
जो तुम्हारी उपासना करते हैं
जप ध्यान करते हैं
पर उन सबके लिए
अपनी माँ – बहन , बेटी के अतरिक्त
हर स्त्री
मात्र देह रह जाती है
जिसे भोगने की कामना है
कभी देह से ,
कभी आँखों से
और कभी बातों से
मैं देख रही हूँ
तुम्हारे सामने नत हुए
इन तमाम सिरों को
जो तुम्हें खुश करने के लिए
धूप, दीप , आरती ,और नैवेद्ध कर रहे हैं अर्पित
ये तमाम बुदबुदाते हुए होंठ
पकड़ा रहे हैं तुम्हें अपनी मनोकामनाओं की सूची
कर रहे हैं इंतज़ार तुम्हारी एक कृपा दृष्टि का
माँ ,
आज तुम्हारे मंदिर में
इन घंटा -ध्वनियों के मध्य
तुम्हारी आँखों से बरसते हुए तेज को देखकर
मैं समझ रही हूँ
कि थाली में सजा कर
नहीं मिलते अधिकार
अपनी दयनीय दशा पर आँसू बहाने के स्थान पर
स्वयं ही अपने नाखूनों से फाड़ना होगा
समाज द्वारा पह्नाया गया
अबला का कवच
कि अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए
मुझे स्वयं शक्ति बनना होगा
हां ! मुझे शक्ति बनना होगा
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filed under- navraatre, devi , durga , shakti , women
बहुत ही प्रेरणादाई रचना,वंदना जी। अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए उसे खुद ही शक्ति बनना होगा। वाव्व…बहुत खूब।
धन्यवाद ज्योति जी