आशिफ़ा जैसी मासूम बच्चियो के बलात्कार की लाश,महज़ इस देश के किसी भी लहू-लुहान हिस्से मे नही पाई जाती, बल्कि हमारे पशुता और विभत्सता की पराकाष्ठा के जेरे साया हमारे देश के उस हिस्से के—संगीन के बीचो-बीच “अपने टपकते लहू से ये प्रश्न लिखती है, हिन्दुस्तान के नक्शे से ये सवाल पुछती है कि मुझे किस जुर्म की सजा दी गई?
—-मेरे वे कौन से अंग विकसित हुये जिसे तक इस हद तक बलात्कार की इच्छा बलवती हुई की मुझ मासुम का बलात्कार कर मार दिया गया?”.
हम कजोर नहीं हैं –रेप विक्टिम मुख्तार माई के साहस को सलाम
मेरे तो वे यौवनांग भी न दिखे थे, ना ब्रा पहने थी न बड़े व खूबसुरत सुस्पष्ट यौवन उभार थे , मुझ मासूम को फिर क्यूँ इस तरह बेरहमी से नोचा व मारा गया. मै एक मासुम सी बच्ची थी मुझे गोद व वात्सल्य चाहिये था लेकिन मुझे क्या मिला बताओ कि आखिर मुझ जैसी मासूम सी बच्ची का दोष क्या था?.
शायद इन प्रश्नो का उत्तर न ये देश दे पायेगा, न यहा की सियासत और न ही यहॉ की जम्हुरियत दे पायेगी. क्योकि आशिफ़ा जैसी मासूम बच्चियो की लाशे भी इन सियासत दा लोगो को—–” अपने सदन की वे सिढ़ियाँ लगती है जिसे लॉघ इस देश के तमाम घिनौने और घृणित नेता सत्ता सुख की तवायफ़ के अजीमोशान मुज़रे का पुरे पाँच साल तक लुत्फ़ और मज़े लेते है सदन की नम आँखे आशिफ़ा सी तमाम सवालात के साथ खामोश व मौन रहती है”.
ये हमारे देश के वे खुशनसीब लोग है जो मंचो और मजलिसो मे चिंघाड-चिंघाड बेटियो को बचाने और उनके पढ़ाने की बात करते है.लेकिन इन्हि की बिरादरी और बस्ती का कोई भी विधायक;नेता, मंत्री सांसद, उन्नाव सा इस देश को एक दर्द दे अपनी पुरी विश्वसनिय निर्लज्जता का परिचय देता है|
स्त्री देह और बाजारवाद
ये वे चुनिंदा शैतान है दिनकी आवाभगत थानेदार,यस.पी.,डि.यम. सभी करते है. “ये दोयम दरज़े की कमिनगी मैने कईयो कई खाकी और खद्दर वाले मे देखी है”. खासकर इनकी हनक मैने मजलूमो और कमजोरो पर ही अधिक देखि है.सच पुछियो तो इनकी दबंगई किसी-किसी मामले मे अपराधी से भी ज्यादा खतरनाक है.अगर अपराध के एक पहलु का नंगा जायज़ा लिया जाय तो आप पायेंगे—” कि आशिफ़ा और उन्नाव जैसी घटना के एक अघोषित पात्र ये भी है ये वे सरकारी कलाकार है जिनकी मदद से कभी-कभी सियासत अपने खून के छींटे भी साफ करवाती है”.
कई अपराधी राष्ट्रिय,अंतराष्ट्रिय जेलो मे बंद हो हत्या पे हत्या करवाये जा रहे है,पर किसी–“उन्नाव सी घटना का फरियादी पिता रो वही पवित्र थाने और जेल मे मार दिया जाता है और उसकी थाने पे ऐफ.आई.आर तक नही लिखि जाती”.सच तो ये है कि बच्ची कोई हो चाहे हिन्दु या मुसलमान की वे आशिफ़ा, गीता हो पशु को महज़ पशु कहा जाये न कि किसी आठ साल की मासुम सी बच्ची के बलात्कार की लाश –“राजनीति के कडाहे मे पका उसे अपनी राजनीति की मदांधता के नानवेज का लेग पीस”.
हा!जबसे मैने आशिफ़ा की वे नग्न जिस्मानी-हवस के नाखुनी निशानो से भरी उसकी वे पीठ देखी है तबसे मुझे जाने क्यूँ लग रहा है कि ये–“आठ साल की मासुम आशिफ़ा ज़मीन पर नही अपितु हमारे और आपके उस गीता के श्लोक और कुरआन की मुकद्दस आयत पे पड़ी है दिसे हम रोज चुमते व पढ़ते है”. अब तो मै बस यही लिख सकता हूं—-“कि उफ! आशिफ़ा बिटिया दोबारा तुम किसी एैसे मुल्क मे जन्मो जहा तुम्हारे मासूम और कोमल से बदन पे ये निशान न हो”.
फोटो क्रेडिट –herjindagi.com
@@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी.
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर—–222002 (उत्तर–प्रदेश).
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क्या पता कब रुकेंगी इस तरह की वीभत्स घटनाएं? विचारणीय सटीक आलेख।
ऐसे घटनाओं पर आज तक सिर्फ विचार ही किया जा रहा हैं, किसी भी प्रकार की तत्कालीन कृति नहीं की जाती.
सचमुच उस नन्ही परी के आगे देश के हर इन्सान की आँखें झुकी हैं | आखिर क्या दोष था उसका ? ऐसे वीभत्स, कुत्सित मानसिकता वाले लोगों का सभ्य समाज में कोई काम नहीं | इन्हें ज़िंदा दफ्म कर दिया जाये बस |