आज फिर मेरी काम वाली देर
से आयी ।
१२ बज गए थे । डेढ़ बजे बेटी को स्कूल से लेने जाना है ।
मैं बडबडाते हुए बर्तन मलने लगी
। तभी दरवाजा खटका। कामवाली खड़ी थी।
‘ इतनी देर से ‘ मैंने चिल्लाते हुए कहा ।
वह चुपचाप रसोई में घुस कर अपना
काम करने लगी । मैंने भी सोंचा आ तो गयी ही है चीख चिल्लाकर क्यों अपना खून
जलाऊँ । दूसरे कामों में व्यस्त होगी । रोज की तरह सारा काम करने के बाद मैंने उसे
चाय बनाकर दी ।
पर ये क्या उसकी आँखों में आँसू। मेरा मन द्रवित हो गया ,स्नेह से पूंछा , “क्या हुआ सरला क्यों दुखी हो”| क्या बताएं भाभी जी ……. वह सुबकते हुए बोली …… कल रात आदमी से बहुत
लड़ाई हुई ।
खाना भी नहीं खाया।
उसने लड़कियों की पढाई छुडवा दी।
सोचा था मैं तो बर्तन माज-माज
कर किसी तरह अपना पेट भरती हूँ पर कम से कम लड़कियाँ तो पढ़ जातीं , उन्हें तो मेरी तरह इस नरक में
नहीं रहना पड़ता, दोनों पढाई में होशियार भी बहुत हैं। पर आदमी मान नहीं रहा ,कहता है की देखो, आये दिन बच्चियों के साथ कुकर्म की घटनाएँ हो रही हैं । तू तो काम पर चली जाती है
स्कूल जाती बच्चियों को कोई ले गया तो ?
लड़कियां घर में ही रहेंगी
पढ़ें चाहे ना पढ़ें ….. कम से कम सुरक्षित तो रहेंगी ।
मैं चुप थी, चाय का घूँट जैसे हलक से उतर ही न रहा हो |
मैं उसे क्या समझाती … इस ख़बरों के बाद से मैं भी तो अपनी बेटी को लेने स्वयं स्कूल जाने लगी थी।
हम दोनों
एक ही भय में जी रहे थे ।
नीलम गुप्ता
तुम्हारे बिना
गैंग रेप
आपको आपको कहानी “बेटियों की माँ “ कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें
नीलम जी,भय अपनी जगह हैं लवकिं उस भय से आपने अपनी बेटी की पढ़ाई तो नहीं छुड़वाई न? यहीं बात आप कामवाली बाई को समझा सकती थी।