दूसरा फैसला

दूसरा फैसला

मीरा ने नंबर देखा ,माँ का फोन था ,एक बार होठों पर मुस्कराहट तैर गयी , ये नंबर उसके लिए कितना कितना खास रहा है , उसके जीवन का संबल रहा है , तभी एक झटका सा महसूस हुआ , कुछ तल्ख़ यादें  कानों में शोर मचाने लगीं |

                         बस जरा सा लिखना , पढ़ना ही सीख पायी थी वो कि माँ ने पढाई छुडवा कर काम पर लगा दिया था | तब से शादी तक सुबह से ले कर -देर शाम तक घर -घर सफाई -बर्तन करके न जाने कितना कमा -कमा  कर दिया था माँ को घर खर्च के लिए | कभी कोई शौक जाना ही नहीं था , भाई -पढ़ जाएँ , बहनों की अच्छे घर शादी हो जाए , माँ- बाबूजी ठीक से रहे यही उसकी मेहनत का सबसे बड़ा पारिश्रमिक था | माँ भी तो कितना लाड करती थीं | मेरे घर की लक्ष्मी कहते -कहते नहीं अघाती थीं |

                        समय गुज़रा उसके हाथ पीले हो गए वो पराये घर चली गयी और उसकी जगह उसकी छोटी बहन काम पर लग गयी | अब वो घर की लक्ष्मी थी | शादी के पांच सालों में  तीन बच्चे और पति की मार के सिवा कुछ भी तो नहीं मिला उसे | घरों का काम तो यहाँ भी करती थी पर माँ की तरह पति इज्ज़त नहीं देता था |महीने के पैसे भी , चाहे जितना छुपा के रखो , शराब में उड़ा देता | बच्चों की पढाई के लिए कुछ कहने पर जबाब में मार मिलती | फिर भी वो माँ से सब छुपाती रही , माँ को दुःख होगा , पर एक रात तो जानवरों की तरह इतना पीटा  कि उठने की ताकत भी न रही , नौबत इलाज़ की आ गयी थी | किसी तरह से भाई को फोंन  करके ले जाने को कहा |

यमुना पार झुग्गी बस्ती में माँ के पास आ कर उसने फैसला कर लिया अब वो यहीं कमरा किराए पर ले कर रहेगी , बच्चों को पढ़ाएगी |  अपना जीवन खराब हुआ तो क्या बच्चों का जीवन ख़राब नहीं होने देगी | वो बचपन से बहुत हिम्मती थी , उसे अपने फैसले पर गर्व था | जल्दी ही कालोनी में दो काम  मिल भी गए | पर दो कामों से तो किराया भी नहीं पूरा पड़ता | भाई तो उसे देखते ही मुंह फेर लेते कि कहीं कुछ मांग न ले | वो स्वाभिमाननी मन ही मन हंसती , जिन्हें बचपन में कमा -कमा  कर खिलाया है उनसे पैसे थोड़ी ही लेगी , नाहक ही डरते हैं | वो तो भावों में भर कर यहाँ रह रही है , अपनी जिंदगी के दर्द तो उसे खुद ही सहने हैं पर यहाँ कम से कम अपनापन तो है | कट ही जायेगी जिन्दगी की रात इन जुगनुओं की चमक से |

इन जुगनुओं की चमक बहुत जल्दी मद्धिम पड़ने लगी | पास रहते हुए भी भाई दूर -बहुत दूर होते जा रहे थे | बड़ी भाभी ने कन्या खिलाई थी इन नवरात्रों में , पूरी बस्ती में प्रसाद बांटा , पर उसके यहाँ चम्मच भर हलुआ भी नहीं भेजा | दिल दुखता था तो कोठियों  में जहाँ वो काम करती थी वहां बडबडा कर मन का गुबार निकाल देती | कोठी की मालकिने भी मन से सुनती | कभी-कभी सलाह भी देतीं , ” अरे क्यों चिंता करती है , तुम लोग हो या हम लोग , जब घरवाला नहीं पूंछता तो किसके भाई पूंछते हैं ? तू तो बस अपने बच्चों पर ध्यान दे | ” वो भी इस नसीहत को मान   चाय सुडकते हुए अपना दर्द सुड़क  जाती |   कामवाली भले ही थी पर वो जानती थी कि औरत अमीर हो या गरीब दोनों का दर्द एक ही होता है , डाल से टूटे पत्ते की तरह उसकी पीड़ा एक ही होती है | शुक्र है माँ का हाथ तो उसके सर पर है | वो हर मुसीबत से टकरा जायेगी |

तभी  सुखद संयोग से छोटी भाभी गर्भवती हो गयी | चक्कर और उल्टियों  वजह से उसे अपने काम छोड़ने पड़ें | उसने मीरा को काम सौंपते हुए कहा ,” दीदी बच्चा होने के एक महीने बाद मेरे काम वापस कर देना”  | उसने हामी भर दी |

वह बड़ी ही लगन से काम करने लगी | सभी कोठियों की मालकिने  उसके काम से खुश थीं |  दिन बीतते -बीतते उसकी चिंता बढती जा रही थी | लाख कोशिश के बाद भी उसे नए  काम मिले नहीं थे , इधर  भाभी के नौ महीने पूरे होने वाले थे | उसने तय कर लिया था कि बच्चों को पूरा पड़े या न पड़े , भले ही पढाई छूट जाए पर भाभी जब काम मांगेंगी तो उनके काम उसे सौप देंगीं | आखिर काम के पीछे रिश्ते थोड़ी न बिगाड़ने हैं | सुख -दुःख में यही लोग तो काम आते हैं |

पर चिंता ने उसके शरीर को कमजोर कर दिया था | सुबह हलकी हरारत थी | देर से उठी और देर से ही काम पर  आई | कोठी का दरवाजा खुला हुआ था , मालकिन से किसी के बात करने की आवाजें आ रहीं थी | उसने गौर किया ये तो माँ की आवाज़ थी | माँ यहाँ क्या कर रहीं हैं , उसने बातों पर कान  लगा दिए |

माँ मालकिन से कह रहीं थीं , ” छोटी बिटिया की भी शादी तय हो गयी है | आप तो जानती ही हैं , दौड़ – दौड़ कर कई घर कर लेती थी उसी से हमारा घर चल रहा था | अब बड़ी मुश्किल आएगी ,लड़का तो वैसे ही कुछ करता धर्ता नहीं है | बड़ा पहले से ही अलग अपने बीबी बच्चों के साथ रहता हैं हमें दो कौर को भी नहीं पूंछता | हमारी भी उम्र हो गयी है कोई सफाई  का काम  देता ही नहीं | ये बहु ही है जो साथ निभा रही है | समझदार है ,जानती है   शराबी आदमी के साथ अकेले कैसे बच्चे पालेगी | बच्चा हो जाए तो फिर काम पर आएगी | आप मीरा से कह देना बहु ही काम करेगी , उसी का तो काम था | फिर थोडा रुक कर बोली ,” अब मीरा करेगी तो अपने बच्चों के लिए करेगी , बहु करेगी तो हमारा भी कुछ इंतजाम हो जाएगा बुढापे में | सब सोचना पड़ता है |

इससे आगे मीरा से नहीं सुना गया | आँखे डबडबा उठी | जल्दी से बाहर खुली हवा में आ गयी |वो तो खुद भाभी को काम देने वाली थी, माँ उसी से साफ़ -साफ़ बात तो कर के देखती  |  क्या स्वार्थ ही सब कुछ है , जी में आया माँ से आज उन पैसे का हिसाब माँगे जो उसने बचपन में कमा कर दिए थे | पर क्या फायदा … अब माँ परायी जो हो गयीं थी |

दो  दिन तक वो काम पर नहीं गयी | भूखी -प्यासी बुखार में तपती बिस्तर पर पड़ी रही |  रिश्तों के मरने से भूख भी मर गयी थी | पर बच्चों को भूखा कैसे मरने देती | हिम्मत कर के  उठी ही थी माँ का फोन आ गया |

मीरा वर्तमान  में लौटी … घंटी अब भी बज रही थी | उसके फोन उठाया | माँ की आवाज थी ,  ” बहु को लड़की हुई है | क्या भाग्य है , दूसरी भी लड़की ही हो गयी | दहेज़ जुटाना पड़ेगा , माँ की आवाज़ में परेशानी साफ़ -साफ़ झलक रही थी |

मीरा ने बीच में बात काटते हुए कहा ,” ये तो ख़ुशी की बात है माँ , बस आठ -नौ साल खिला दो , फिर तो वो कमा  कर खिलाएगी और दहेज़ का इंतजाम भी खुद ही तो कर लेगी , फिर दुःख काहे  का | हाँ माँ , एक बात और कहनी थी मैं अभी नहीं छठी पर आउंगी , नेग में भाभी के काम उन्हें सौंप दूंगी |” कहकर उसने फोन काट दिया |

                   उसने दूसरा फैसला भी ले लिया |  वो अपने बच्चों के साथ अपना सामान  बाँधने लगी | उसने तय कर लिया था , अब वो यहाँ नहीं रहेगी | जिस अपनेपन  की तलाश में वो यहाँ आई थी , जब वो ही नहीं तो यहाँ क्यों रुके | जब तक हाथ -पैर चलेंगे , कहीं भी काम  कर खा लेगी | उसे अपने दूसरे फैसले पर पहले से भी ज्यादा गर्व था |

वंदना बाजपेयी

फोटो क्रेडिट – शटर स्टॉक

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3 thoughts on “दूसरा फैसला”

  1. नारी भरे अभावों से भरी हो अगर उसके भीतर स्वाभिमान है तो उसे कोई अभाव छु नहीं सकता | एक औरत की हिम्मत को सलाम| प्यारी कहानी

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  2. बहुत सुन्दर कहानी…..
    जिन रिश्तों से विश्वास और प्रेम होता है उनका ये रूप देखकर बहुत तकलीफ होती है…..फिर उनके आसपास रहने का मन भी नही करता…

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