पंडित जी

पंडित जी

पंडितों के बारे में बचपन से हास-और उपहास की बाते ही सुनती रही थी | वो भोजन भट्ट होते हैं | कभी तोंद देखी  है उनकी ,चार पैसे दिखा दो तो पोथी पत्रा ले कर दौड़ते हुए चले आयेंगे | कोई काम नहीं है बस मला फेरो , अरे उस ज़माने में पंडित जब खाना खाने  आते थे तो इतना खा लेते थे |  चारपाई पर लेट कर जाते थे |  जो भी हो पंडितों की छवि बहुत बिगड़ी हुई थी | परन्तु एक घटना ने इनके बारे में फिर से सोचने पर विवश कर दिया | 

 लघु कथा – पंडित जी 

हमारे इलाके में  एक मंदिर है , जहाँ के पंडित राधे श्याम जी  लगभग २० साल से पंडिताई कर कर रहे हैं | सुबह से शाम तक भगवान के भजन गाना , आरती , प्रशाद मंदिर की व्यवस्था में  एक कर्मठ योद्धा की तरह लगे रहते | उनसे मेरा ज्यादा परिचय तो नहीं था , पर  मेरा पंडित जी राम -राम कहना व्ए उनका प्रतिउत्तर में राम -राम कहना एक आत्मीय बंधन की शुरुआत थी | कभी -कभी वो खुद ही कुछ पूजा जाप आदि बता देते , या फिर क्या शास्त्र सम्मत तरीका है इसके बारे में भी बात करते | 

एक  बार मंदिर जाने पर मेरे पास आये और धीमे स्वर में बहुत संकोच के साथ  बोले ,  ” मेरे बेटे की फीस में ३००० रूपये की कमी पड़ रही है , मंदिर में बहुत श्रद्धालु आते हैं सबसे परिचय है , फिर भी संकोच लगता है | हालांकि कुछ लोगों से कहा है पर ईश्वर की इच्छा उनके पास भी इस समय पैसे  नहीं हैं , अगर आप मदद कर सके तो … मैं बाद में वापस कर दूँगा ,बच्चे का साल बर्बाद हो जाएगा , २० साल से मंदिर की सेवा में हूँ , यहीं ,मैं आपको जुबान दे रहा हूँ … मैं आप के पैसे अवश्य लौटा दूंगा |

मैंने घर आ कर पैसे निकाल कर उनको दे दिए क्योंकि मुझे उनकी बात में सच्चाई दिखी | मेरे साथ उस समय मेरी पड़ोसन भी गयी थीं , उन्होंने मुझसे कहा ,” कौन लौटाता है , आप उन पैसों को भूल जाइए, मुझे भी उस समय यही लगा कि हो सकता है ऐसा हो , फिर भी मुझे ये तसल्ली थी कि वो पैसे बच्चे की शिक्षा में लगे हैं | इसलिए शाम को मैंने पति को पूरी घटना बताते हुए कहा ,” मैंने एक बच्चे की शिक्षा के लिए वो पैसे दिए हैं , अगर वो नहीं लौटाते हैं तो ठीक है वो उनके बच्चे की शिक्षा में लग गए , अगर लौटा देते हैं तो मैं किसी दूसरे बच्चे की शिक्षा में वो पैसे लगा दूँगी …

इसके बाद कई महीने बीत गए … मैंने उनसे कभी पैसों के बारे में बात नहीं की , वो स्वयं ही कहते रहे कि मैं लौटा दूँगा , लौटा दूँगा और मैं कोई बात नहीं कह कर आगे बढ़ जाती | करीब एक साल बाद वो मेरे पास आये और पैसे लौटते हुए बोले ,” आज ईश्वर की कृपा से मैं मुक्त हुआ , बहुत विपरीत परिस्थितियाँ आयीं, समय पर नहीं लौटा सका , पर अपना संकल्प सदा याद रहा , कागज़ में लिख कर रख लिया था | वो पैसे दे कर चले गए | मैंने वो पैसे किसी और बच्चे की शिक्षा में लगाने के लिए रख लिए | उनके अपने वचन के प्रति संकल्पित होने से  से मेरा मन उनके प्रति श्रद्धा से भर गया | 
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1 thought on “पंडित जी”

  1. हिन्दू समाज की व्यबस्था जो शायद किसी समय होती हो पर अब तो नहीं ही है … जिसको जैसे माल मिलता है लूटते हैं … धर्म की रक्षा तक के लिए नहीं खड़े होते ये पण्डे जिसके कारण इनकी पारिवारिक व्यवस्था चलती है …

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