भोगना पड़ रहा है पर हमारे बुजुर्ग जिन्हें जीवन की संध्यावेला में ज्यादा प्यार व्
अपनेपन की जरूरत होती है तब उनका सहारा बनने के स्थान पर वो हाथ उनसे हाथ छुड़ाने
की कोशिश करते हैं, जिन्हें कभी उन्होंने चलना सिखाया था | शारीरिक अस्वस्थता
झेलते बुजुर्गों के लिए ये मानसिक पीड़ा
असहनीय होती है | प्रस्तुत है बुजुर्गों की इसी दशा का चिंतन करता हुआ हुआ
रीतू गुलाटी की का यथार्थ परक आलेख –
आज के बदलते परिवेश मे बूढ़े लोगों की अधीरता का जिम्मेवार कौन?
मे जब सभी लोग भाग रहे है। ऐसे मे जीवन की सांध्यवेला को भोगते बूढे लोगो को कौन
सम्भाले? अपनी आथिर्क स्थिति को बढिया करने के
चक्कर मे जो दोनो पति-पत्नी कामकाजी हो तो उस घर के बूढो को कोन सम्भाले?
करे कि बहू मेरे सेवा करे,, ऐसै मे भी परिवार मे क्लेश लाजिमी
होगा। मुशकिल वहाँ ज्यादा होगी जहाँ एक ही वारिस हो। बहू सास-ससुर की सारी जमा
पूंजी तो चाहती है पर सेवा करना नही चाहती। ऐसै मे बूढे लोगो की तो आफत आ जाती है।
कई बार दर्द से तडफते बूढो की आवाजे बडो-बडो को विचलित कर देती है। ऐसे मे बेटे की चुप्पी उन्हे और दुखी कर देती है। कई बार बहू बेटा नौकरी के सिलसिले मे घर से दूर निकल कर निश्चिंत हो
जाते है पीछे बूढे मरे या जिये वो बेफिक्र हो जाते है। मेरी आंखो के सामने मैनै कई बूढे लोगो को
तडफते देखा है इसका जिम्मेदार कौन?
माता-पिता दें बेटियों को बुजुर्गों के सम्मान का संस्कार
बुजुर्गो का सम्मान भी करे तभी घर मे सुखशान्ति होगी। कई बार बेटा माता पिता को संग रखना चाहता है तो
बहू नही चाहती। क्योकि आजादी मे खलल पडेगा। कई बार दुखी होकर माता पिता इस लिये भी अकेला रहना चाहते ताकि बच्चो
का प्यार बना रहे। उनके कारण क्लेश ना हो! मैनै ऐसै भी घर देखे है जंहा बहू इस
लिये मायके जम जाती कि सासु माँ उन्हे अलग रसोई नही करने देती। बुढापा एक दिन सभी को आना है,, बहू ये नही समझती।
बुजुर्गों की हालत दिया तले अंधेरा जैसी
देखी गयी। सरकार बूढो को बुढापा पैशन देती है पर उसका भी वो उपभोग नही कर पाते। समाज मे हमारे बूढे इतने असुरक्षित कयो है? उनके पास ढेरो तजुर्बे है पर लेने वाला कयो नही? स्थानीय जगहो पर बूढो को सम्मान की नजर से देखा जाता है पर अपने ही
घर मे वो सम्मान क्यो नही मिलता,,,
बुजुर्गों की हालत दिया तले
अंधेरा जैसी क्यो है? क्या कुसूर है उनका कि वो शारीरिक तौर
पर कमजोर हो गये।
उनकी स्मरण शकित कमजोर हो गयी तो वे बेकार हो गये। कई बार वृद्धाआश्रम मे भी वो उन दम्पतियो को नही रखते जिनके बच्चे
अच्छे मुकाम पर हो। उन बूढो की हालत और खराब हो जाती हो जो बिस्तर खराब करते है ऐसै मे नौकर भी उन्हे संभाल नही पाते। वो
सबकुछ होते हुऐ भी साक्षात नर्क झेलते है। सारे घर की विरासत समभालने वाली बहू तब
कहां होती है? जब बहू बच्चे जनती है तो सास से पूरी
सेवा की उम्मीद करती हैऔर चाहती कि सास ही किचन मे रहे;पर जब सास बीमार हो जाते तो वह पूछती तक नही। ऐसे मे वो बूढे क्या
करे?
बुजुर्गों पर लघुकथाओं की ई मैगजीन – चौथा पड़ाव
है। क्या आज हर माता-पिता का ये फर्ज नही कि वो अपनी बेटियो को ये संस्कार दे कि
वो बूढे सास ससुर का मान सम्मान करे क्योकि जो हम बोतै है वही काटते है। हमारे
समाज मे एक मुठ्ठी भर ऐसे संस्कारी बच्चे बचे है जो बूढे माता पिता को वो मान
सम्मान देते है जिसके वो अधिकारी है। हमे समय रहते जागना होगा व उन बूढे लोगो को
वही मान सम्मान देना होगा जिसके वो अधिकारी है।
रीतू गुलाटी
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