फोटो क्रेडिट –फोटो समाचारनामा .कॉम से साभार
फिल्म की डायरेक्टर मेघना गुज़ार बहुत सुलझी हुई डायरेक्टर हैं | इससे पहले उनकी दो फिल्में ‘फिलहाल ‘ और आरुशी मर्डर केस पर आधारित फिल्म ‘तलवार’ आई थी | दोनों फिल्मों में उनके निर्देशन की बहुत सराहना हुई |यह उनकी तीसरी फिल्म है जो साढ़े हुए निर्देशन के कारण उनके कैरियर का मील का पत्थर साबित होगी | यह फिल्म हरिंदर सिक्का के उपन्यास “कॉलिंग सहमत ” पर आधारित है | इसमें असल जिंदगी पर आधारित भारतीय जासूस की कहानी दर्शाने की कोशिश की गयी है | उपन्यास पर आधारित होने के बावजूद जिस तरह स्क्रीन प्ले व् एक के बाद एक घटनाएं लिखी गयीं हैं वो काबिले तारीफ़ है | इतनी घटनाओं को सिलसिलेवार कहानी के रूप में दर्शाने के लिए निश्चित तौर पर मेघना गुलज़ार ने काफी मशक्कत व् होम वर्क किया होगा |
राजी -“आखिर युद्ध क्यों होते है “सवाल उठाती बेहतरीन फिल्म
फिल्म की कहानी भारतीय जासूस ‘सहमत ‘ पर आधारित है | सहमत एक २० साल की कॉलेज स्टूडेंट हैं जो दिल्ली में पढ़ रही हैं | उसके पिता ‘ हिदायत खान ‘ भारतीय जासूस हैं | जिन्होंने अपनी पहुँच पाकिस्तान के ब्रिगेडियर जनरल तक बना ली है | भारत के जासूसी ट्रेनिग के हेड खालिद मीर उनके अच्छे दोस्त हैं | ये समय १९७१ का है जब आज के बांग्लादेश में पूर्वी पाकिस्तान से अलग होने की लड़ाई शुरू हो गयी थी | हिदायत खान को फेफड़े का ट्यूमर निकलता है पर उनके अन्दर देश भक्ति का इतना जज्बा है कि वो इस नाजुक समय में अपनी बेटी को पाकिस्तान भेज कर सूचनाएं भारत भिजवाना चाहते हैं | वो अपनी बेटी को बुलवा लेते हैं | पहले तो वो राजी नहीं होती | फिर उसे अहसास होता है कि देश के आगे कुछ नहीं खुद वो भी नहीं और वो इस काम के लिए राजी हो जाती है | उसकी ट्रेनिंग होती है | एक मासूम बच्ची जो खून देख कर डरती थी देश के लिए जान देंने व् लेने को तैयार हो जाती है | एक योजना के तहत उसका निकाह पाकिस्तान के ब्रिगेडियर जेनरल के बेटे इकबाल से कर दिया जाता है |
फिल्म क्योंकि जासूसी की है इसलिए इसमें कई जगह कोड वर्ड्स का खूबसूरत प्रयोग हुआ है | इसके अतरिक्त दर्शकों को जासूसी के के बारे में काफी जानकारी मिलती है | बहु बन कर आई सहमत अपने मिशन में लग जाती है | वो कुछ भी कर के सूचनाएं निकालती है और भारत भेजती है | पर यहीं से फिल्म का भावनात्मक पक्ष शुरू होता है | वो जिस घर में बहु बन कर आई है वहां पाकिस्तान आर्मी के तीन लोग हैं | उसके ससुर , जेठ व् पति | वहां पर भी वही मानवीय संवेदनाएं हैं वही देशभक्ति का जज्बा है और वही भावनाओं से भरे रिश्ते हैं |भावनात्मक पक्ष इतनी मजबूती से प्रस्तुत किया गया है कि पाकिस्तानी हो या हिन्दुस्तानी किसी की भी तकलीफ से दर्शक के मुंह से बस आह निकलती है | उस समय वो सिर्फ और सिर्फ एक इंसान होता है |
जब इकबाल बंदूक तान कर कहता है ” देश के लिए कुछ भी “तो स्वाभाविक रूप से मानवीय संवेदनाएं उमड़ती है और दिल चीखने लगता है ” रोक लो , कोई इस युद्ध को रोक लो ,युद्ध में कोई नहीं जीतता , दोनों हारते है , हम फिल्म में पॉप कॉर्न खाते हुए भले ही अपने-अपने देश के लिए नारे लगा लें पर क्या इससे सीमा और देश के लिए मरने वाले सैनिकों के जज्बे को सार्थक सलामी दे पाते हैं | क्या युद्ध किसी समस्या का निदान कर पाता है या बस दोनों तरफ रोते बिलखते परिवारों का जखीरा खड़ा कर देता है |
अभिनय की दृष्टि से आलिया भट्ट ने बहुत प्रभावित किया है | उन्होंने एक बार फिर सिद्ध किया है की यूँ ही नहीं उन्हें आज की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री कहा जाता है | विक्की कौशल ने भी इकबाल का किरदार बहुत अच्छा निभाया है | अन्य कलाकारों ने भी अपने रोल के साथ न्याय किया है |
फिल्म की शूटिंग मात्र ४९ दिनों में पूरी हो गयी थी | इसका बजट तीस करोंण का है | बनते ही फिल्म बिक गयी थी | इसे कितना मुनाफा होगा ये अभी नहीं कहा जा सकता , पर इस फिल्म को बहुत अच्छी माउथ पब्लिसिटी मिल रही है जिससे भविष्य में इसके और मुनाफा कमाने की सम्भावना है |
वंदना बाजपेयी
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