हँसी.. ख़ुशी का पर्याय है | हँसना वो तरंग है जिस पर जीवन उर्जा नृत्य करती है | फिर भी आज हँसी की कमी होती जा रही है | ये कमी इतनी हो गयी है कि इसे इंडेंजर्ड स्पीसीज का किताब देते हुए विश्व हास्य दिवस की स्थापना करनी पड़ी | अगर जीवन की उर्जा को जिन्दा रखना है तो हँसी को सहेजना ही होगा | इसी हँसी को सहेजने की कोशिश करती हुई …
विश्व हास्य दिवस पर दो कवितायें
१—हँसे…..
चलो
हँसे खुल कर
खिलखिलाएँ
बाहर निकल कर
उन लोगों के साथ
जो जीवन से
निराश होकर
हँसना भूल गए हैं
साथ ले चलें
कुछ प्यारे
कोमल से बच्चे
जो बेवजह
हँस सके
बिना किसी
षड्यंत्र के साथ
किसी के भी साथ।
२—हँसी बिखर रही है…….
अपनी बुनी
चादर समस्याओं की
ओढ़ी हुई है
जाने कब से
उतार फेंको…
खोल दो
घर के सब
दरवाजे और खिड़कियाँ
निकल आओ बाहर
खुले आसमान में…
दोनों बाँहे फैला कर
हँसो हँसो खुल के
लगाओ ठहाके
जोर-शोर से….
पता तो लगे
हँसी बिखर रही है उन्मुक्त
सूर्य के प्रकाश की तरह
चारों ओर
सर्वत्र……!!!!!
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डा० भारती वर्मा बौड़ाई
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