बाबू! इस जन्मदिन पर तो मेरे लिए पीले रंग की फराक लाओगे न?
हाँ! हाँ! जरूर लाऊँगा।
हरिया के दिमाग में उठते ही रधिया की बातें गूँजने लगी।
बदन बुखार और दर्द से टूटा जा रहा था। हिम्मत उठने की नहीं हो रही थी पर आज पीली फराक तो रधिया को लाकर देनी ही थी। तो जैसे- तैसे उठ कर रधिया की माई को चाय बनाने को कह फारिग होने निकल गया। आकर नहाया और चाय के साथ रात की रखी रोटी खाई। डिब्बे में चार रोटी, अचार, मिर्च और प्याज रखवाया। उसे लेकर, सिर पर गमछा लपेट कर चल पड़ा। घंटाघर के पास बड़े डाकघर के सामने जाकर खड़ा हो गया जहाँ सारे मजदूर खड़े होते थे।
तब तक उसे वो बाबू दिख गए जो कई बार उसे अपने घर की सफाई करने के लिए ले गए थे। दौड़ कर बाबू को नमस्ते कर दी, शायद बाबू उसे सफाई के लिए ले जाएँ। बाबू ने उसे देखा तो अपने स्कूटर पर बैठा सफाई के लिए घर ले आए।
सफाई करते हुए एक बज गया तो मुँह-हाथ धो, मालकिन से पानी माँग कर खाना खाने बैठा।
पानी देते हुए मालकिन ने पूछा.. हरिया! आज तेरी तबियत ठीक नहीं है क्या?
हाँ मालकिन! दो दिन से तेज बुखार है।
तो काम करने क्यों आया? दवाई खाकर घर पर आराम करता। ऐसे तेरा बुखार उतरेगा भला?
जानत हूँ मालकिन! पर वो क्या बताऊँ? हमार बिटिया का आज जन्मदिन है। उसने पीली फराक लाने को बोला कब से? काम करने न आता तो फराक कैसे लूँगा? बस एहि खातिर
चला आया।
ठहर, अभी बुखार उतरने की गोली देती हूँ तुझे… कह कर अंदर से लाकर चाय-बिस्किट दिए और और एक पैरासिटामोल दी।
चलते समय पैसों के साथ अपनी बेटी की छोटी हो गई पीले रंग की फ्राक और कुछ लड्डू दिए।
पैसे,फराक और लड्डू लेकर हरिया इतवार को लगने वाले बाजार की और चल पड़ा पीली फराक ख़रीदने के लिए। सोचता हुआ जा रहा था कि रधिया को फराक के साथ दो चाकलेट भी देगा तो वो कितनी खुश हो जाएगी।
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डा० भारती वर्मा बौड़ाई
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बढ़िया कहानी।