लघुकथा -चुप
अपने शहर से दूर होने के कारण विवाहिता पुत्री जल्दी ..जल्दी अपने माता पिता से मिल पाने मे असमर्थ थी।माता पिता दोनो ही बीमार रहते।अत: उसने अपने मन की बात अपनी मम्मी से सांझा की।
बेटी:मम्मी आप मेरे शहर आ जाओ!मै बहुत मिस करती हूं आप दोनो को।
मम्मी: सही कहा ,बेटी
बेटी: आप दोनो की फिकर लगी रहती है!जल्दी से आ भी नही पाती मिलने!इतना लम्बा सफर है कैसे आऊ?
ये तो सही कहा..बेटी,,मां ने मुस्कुराकर हां मे गर्दन हिलाई।
बेटी: मम्मी आप लोग मेरे पास शिफ्ट हो जाओ!कई बार मुझे बुरे बुरे ख्याल आ जाते है?मै परेशान हो जाती हूं।
मम्मी:बेटी,,इतना आसान नही है शिफ्ट होना!इस बुढापे मे इतना सामान लेकर नये सिरे से जमाना।
बेटी: क्या दिक्कत है?इस घर को बेचो!और वहां जाकर ले लो।
मम्मी:बेटी,ये छोटा शहर है,,यहां सस्ता बिकेगा वहां मंहगा खरीदना पढेगा,,,वो शहर बडा है,बडे शहर की बडी बाते!सब कुछ मंहगा होगा!यहां थोडे मे गुजर हो जाती है,वहां जरुरते बढते देर ना लगेगी!इस बुढापे मे जितनी जरुरतो पर विराम लगे उतना अच्छा है!थोडा सफर बाकी रह गया हैजिन्दगी का,,,,.,,यही कट जायेगा!तू इतना ना सोच बेटी।
बेटी: मम्मी एक बात कहू!बुरा तो नही मानोगे?
मम्मी:बोल,,क्या है तेरे मन मे?
बेटी:मम्मी अगर आप अपना मकान नही बेचना चाहते तो ये मकान किराये पे चढा दो!मै आपके लिये एक फ्लैट ले देती हूं!मेरी आंखो के सामने रहोगे तो मुझे सुकून रहेगा!मौका मिलते ही वीक एंड पर मै आपसे मिलने आ जाया कंरुगी!मन तो बहुत करता है पर आफिस जाने की मजबूरी व छुट्टी ना मिल पाने के कारण छह छह माह मिलने नही आ पाती!नजदीक होगे तो जल्दी आ जाया कंरुगी।
मम्मी:नही,नही बेटी हमारी चिन्ता छोडो,,तुम अपनी गृहस्थी पर फोकस करो!हमारा यहां काम चल रहा है,तुम खुश रहो,सुखी रहो,!तुमने हमारे बारे मे इतना सोचा,यही कुछ कम है!
बेटी:मम्मी मै आपका बेटा हूं,!आज कोई फर्क नही है,बेटी या बेटे मे!
मै दोनो परिवारो की जिम्मेवारी उठा सकती हूं,आपने मुझे इतनी सशंक्त बनाया है!आप बेफिकर रहे,मेरे पास आकर शिफ्ट हो जाये!
बेटी की बाते सुनकर मन प्रसन्नता से खिल उठा,पर ,,,,,,,,बेटी के पास,,,,,,,….कुछ सोच चुप रहना ही ठीक लगा।
रीतू गुलाटी
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