उम्मीद है कि अगर आप महिला है तो शीर्षक पढ़ते ही आप के मुंह में पानी आ गया होगा | हमारे देश में शायद ही कोई लड़की हो जो गोलगप्पे की दीवानी न हों | इसका तेज खट्टा तेज तीखा स्वाद जो एक बार जुबान पर चढ़ गया तो ताउम्र बना रहता है | हाँ जो ज्यादा तीखा नहीं खा सकते उनके लिए मीठे का भी बंदोबस्त रहता है | यूँ गोलगप्पे के अलग -अलग नाम हैं कोई उसे पानी पूरी कहता है कोई पानी के बताशे तो कोई फुचका | जब मामला स्वाद का हो तो नाम से कुछ फर्क नहीं पड़ता |
गोलगप्पा संस्कृति
कम उम्र लडकियां , प्रौढ़ महिलाएं और नयी -नईं बुजुर्ग कौन होगी जिसकी अनमोल की यादों में गोलगप्पे न जुड़े हों मैं भी अपने बचपन को याद करूँ तो लगता है कि गोलगप्पे के बिना उसका कोई स्वाद ही नहीं होता | उसका जितना खट्टा और तीखापन है वह सब गोलगप्पों की ही देन है |
लड़कियों की गोलगप्पे के प्रति दीवानगी देख कर लड़कियों के स्कूल व् कॉलेज के आगे गोलगप्पे के कई ठेले खड़े रहते | उस समय हम लोग गोलगप्पों की खुश्बू से ऐसे ठेले की तरफ भागते जैसे आजकल के विज्ञापनों के मुताबिक़ लडकियां डीयो के खुशबू के पीछे भागती हैं | उस लड़की के ज्ञान के आगे हम सब नतमस्तक रहते जिसे पता होता कि किस के ठेले के गोलगप्पे ज्यादा टेस्टी हैं | हमारी शर्तों में गोलगप्पे खिलाने प्रमुखत: से रहता |
कई बार हमारा नन्हा सा पॉकेट मनी गोलगप्पे वाले की भेंट चढ़ जाता | यकीन मानिए उस समय बीच महीने में लडकियां पिता के आगे हाथ फैलाती तो भी सिर्फ गोलगप्पों के लिए | उस पर बोनस के तौर पर कभी माँ या बहन , भाभी के के साथ बाज़ार जाना हो और गोलगप्पे न खाए जाए ऐसा तो ही नहीं सकता | हालांकि मुझे माँ के साथ गोलगप्पे खाना सबसे ज्यादा पसंद था क्योंकि वो एक दो गोलगप्पे खा कर अपने हिस्से के भी मुझे ही दे देतीं | | इस मामले में उदारता दिखाने का मेरा मन नहीं करता |
जब गोलगप्पों के लिए व्रत तोडा
गोलगप्पों के विषय में सबसे अच्छा किस्सा जो मुझे याद है वो है हरिद्वार यात्रा का | उस समय मेरी उम्र कोई १२ -१३ साल रही होगी | हम लोग बड़ी बुआ के परिवार के साथ हरिद्वार गए थे | अगले दिन हमें चंडी देवी के दर्शन करने जाना था | पिताजी को अचानक किसी जरूरी काम से देहरादून जाना पड़ा |
उन की अनुपस्थिति में बड़े फूफाजी जो बहुत धार्मिक थे ने ऐलान कर दिया कि कल सब व्रत करेंगे और दर्शन करने के बाद वापस होटल आ कर व्रत खोलेंगे | उनके अनुसार ऐसा करने से ज्यादा पुन्य मिलेता है | हम सब ६ , ७ बच्चे ये फरमान सुन कर थोडा बेचैन हुए क्योंकि खेलने कूदने की उम्र में यूँ भी भूंख ज्यादा लगती है, पर फूफाजी से बहस करने की हिम्मत किसी में नहीं थी |
हम सब चढ़ाई करके ऊपर मंदिर तक पहुंचे | यूँ तो चढ़ाई में बहुत मज़ा आया | भूख के मारे पेट में चूहे कूद रहे थे | वहीँ पर एक गोलगप्पे वाला टोकरी में रख कर गोलगप्पे बेंच रहा था | मन हुआ जल्दी से खा लें , पर फूफाजी की डांट का डर था | फूफाजी ने सब बच्चों को मंदिर में बुला लिया और खुद आँख बंद कर के पूजा करने लगे | हमने धीरे से आँख खोली , आँखों ही आँखों में ईशारा हुआ , देखा फूफाजी तो ईश्वर की आराधना में लींन हैं क्यों न मौके का फायदा उठाया जाए |
हम बच्चे एक दूसरे को ईशारा करके धीरे -धीरे उठ कर देवी माँ की शरण से गोलगप्पे वाले की शरण में पहुंचे , और लगे दनादन गोलगप्पे खाने | जी भर के खा भी न पाए थे कि बुआ जी की डांटने की आवाज़ सुनाई दी | ये लो , ” ये सब लगे हैं गोलगप्पे खाने में , क्या कहा गया था तुम लोगों से व्रत रखना है , ज्यादा पुन्य मिलेगा | हम सब बुआ की चिरौरी करने लगे , ” बुआ जी , खा लेने दीजिये , बहुत भूख लगी है |
बुआ जी थोडा नम्र पड़ीं | ठीक है , ठीक है , खा लो पर जो फूफाजी आ गए तो , फिर हम तो नहीं बचा पायेंगे | नहीं बुआ जी फूफाजी आंखे बंद किये बैठे हैं वो एक घंटा से पहले नहीं उठेंगे |
ये सुन बुआ जी जो थोड़ी तनावग्रस्त लग रहीं थीं , के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी | बड़े लाड़ से बोली , ” चलो हटो हमें ( माँ व् बुआ जी ) खाने दो “| पर बुआ जी पुन्य का क्या होगा , हम सब एक स्वर में चिल्लाये | “
अरे तुम्हारे फूफाजी कर तो रहे हैं न पूजा | आधा तो हमारा वैसे ही हो जाएगा, कह कर बुआ जी भी हम बच्चों को परस्त करते हुए गोलगप्पे खाने लगीं |
गोलगप्पा संस्कृति बरक़रार है
अब समय बदल गया है | ये मैगी , पिज़ा , पास्ता मोमोज का ज़माना है | पर इन सब को खाने वाले बच्चे गोलगप्पों भी शौक से खाते हैं | हाँ तरीका अलग है अब हल्दीराम के पैकेट बंद गोलगप्पे आते हैं या फिर होटल से कॉल करके , घर में भी बना कर भी | घर में बनाने के लिए यू ट्यूब पर सैंकड़ों वीडियो मौजूद हैं |
कभी -कभी सोचती हूँ की नयी -पीढ़ी से पुरानी पीढ़ी की अनेकों बातों में टकराहट भले ही क्यों न हों पर गोलगप्पा संस्कृति अभी भी बरकरार है |
वंदना बाजपेयी
रानी पद्मावती और बचपन की यादें
क्या बात है…गोलगप्पे.. बढ़िया संस्मरण
dhanyvad shweta ji
वंदना जी,भुख को कहां पता होता हैं कि पाप क्या हैं और पुण्य क्या होता हैं? सुंदर संस्मरण।
बहुत बढ़िया लेख वंदना जी, सबके मुह में पानी आ गया. गोलगप्पा एक ऐसी डीश हैं जिसके सामने सभी व्रत भुला देती हैं.