कहते हैं इंसान जब कोई गलत काम कर रहा होता है तो उसका जमीर उसे रोक देता है | फिर भी गलत काम करने वाले अपने जमीर की सुनते कहाँ हैं | भावप्रवण लघुकथा –
जमीर
अपनी बिटिया को
पोलियों की दवा पिलाने हेतु मुझे शहर जाकर वापिस आना था।उस समय इस तरह घर घर
पोलियों दवा पिलाई नहीं जाती थी।जागरूक लोग ही दवा पिलाते थे।पतिदेव अपने काम पर
गये थे।मैं खुद ही अपनी छह माह की बेटी को गोद में लेकर चल दी ।
पोलियों की दवा पिलाने हेतु मुझे शहर जाकर वापिस आना था।उस समय इस तरह घर घर
पोलियों दवा पिलाई नहीं जाती थी।जागरूक लोग ही दवा पिलाते थे।पतिदेव अपने काम पर
गये थे।मैं खुद ही अपनी छह माह की बेटी को गोद में लेकर चल दी ।
जैसे तैसे मैंने
लिफ्ट लेकर जल्दी जल्दी बिटिया को अस्पताल में
पोलियों दवा पिलाई और घर पहुंचने की जल्दी में तुरन्त बस स्टेंड आ गयी।पर कोई बस
नहीं थी।चूंकि मेरे पति लंच करने आने वाले थे।काफी देर तक बस ना पाकर कुछ सोच
मैंने सामने से आते हुए एक जुगाड जो रेहडीनुमा था,उसे हाथ दे दिया।पहले से ही उसमें
कुछ लोग बैढे थे।मैंने उन्हें आराम से बैठा देखकर कहा—भाई जी मुझे भी बामनीखेडा
तक जाना है बैठ जाऊ क्या?
लिफ्ट लेकर जल्दी जल्दी बिटिया को अस्पताल में
पोलियों दवा पिलाई और घर पहुंचने की जल्दी में तुरन्त बस स्टेंड आ गयी।पर कोई बस
नहीं थी।चूंकि मेरे पति लंच करने आने वाले थे।काफी देर तक बस ना पाकर कुछ सोच
मैंने सामने से आते हुए एक जुगाड जो रेहडीनुमा था,उसे हाथ दे दिया।पहले से ही उसमें
कुछ लोग बैढे थे।मैंने उन्हें आराम से बैठा देखकर कहा—भाई जी मुझे भी बामनीखेडा
तक जाना है बैठ जाऊ क्या?
उसने मुस्कुराते
हुए कहा:_हां हां,बहन जी मुन्नी को
लेकर आराम से बैठ जाओ।मैं बैठ गयी।
नियत स्थान पर
उतरते समय मैं किराया देने लगी,,,मगर उसने ये कहकर किराया लेने से
मना कर दिया कि वो इधर तो जा ही रहे थे,आप बैठ गयी तो क्या बात,,,किराये की बात मत
करो ये कहकर मुस्कुराते हुए आंखों से ओझल हो गया।
तभी घर की ओर चलते चलते मैं कुछ
सोचने लगी,,,अतीत की घटना मेरे सामने आ गयी,,,सहसा मेरा
ध्यानपास ही में सरकारी नौकरी करने वाले मिस्टर खन्ना की ओर चला गया।कुछ दिन पहले
ही ड्राइवर खन्ना आफिस के काम से शहर जा रहे थे,,कस्बे के बस स्टैंड पर खड़े होकर
अपनी सरकारी गाड़ी में सवारियां भर रहे थे,,,।
सोचने लगी,,,अतीत की घटना मेरे सामने आ गयी,,,सहसा मेरा
ध्यानपास ही में सरकारी नौकरी करने वाले मिस्टर खन्ना की ओर चला गया।कुछ दिन पहले
ही ड्राइवर खन्ना आफिस के काम से शहर जा रहे थे,,कस्बे के बस स्टैंड पर खड़े होकर
अपनी सरकारी गाड़ी में सवारियां भर रहे थे,,,।
पूछने पर खिसिया कर बोले_मैडम जी जाना तो
मुझे उधर ही है,सवारियां ये सोच बैठा दी किराये के
रूप में कुछ खर्चा पानी निकल आयेगा।
मुझे उधर ही है,सवारियां ये सोच बैठा दी किराये के
रूप में कुछ खर्चा पानी निकल आयेगा।
उसकी इस हरकत से
मैं निरूतर हो गरी और*जमीर*की परिभाषा ढूंढने
लगी।मेरी नज़र में ड्राइवर की बजाय एक रेहडी वाले का जमीर श्रेष्ठता पा गया था।।
रीतू गुलाटी
यह भी पढ़ें …
सुकून
गुनाहों का हिसाब
डर
प्रायश्चित
बस एक बार
आपको “ जमीर “ कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |
filed under: short stories, short stories in Hindi
अपना अपना किरदार है …
अच्छा इंसान ही अच्छा रहता है हमेशा …
अच्छी कहानी …
बहुत ही सुंदर कहानी