एक कहावत है , ” बड़ा कौर खा ले पर बड़ी बात बोले ” | कहावत बनाने वाले बना गए पर लोग जब -तब जो मन में आया बोलते ही रहते हैं …. इस बात से बेखबर की जब पासे पलटते हैं तो उन्हीं की बात उन के विपरीत आ कर खड़ी हो जाती है |
और …पासा पलट गया
श्रीमती देसाई मुहल्ले में गुप्ता जी की बड़ी बेटी श्यामा के बारे में सब से अक्सर कहा करतीं , ” अरे देखना उसकी शादी नहीं होगी | रंग देखा है तवे सा काला है | कोई अच्छे घर का लड़का तो मिलेगा ही नहीं |हाँ पैसे के जोर पर कहीं कर दें तो कर दें, पर मोटी रकम देनी पड़ेगी “|मैं तो करोंड़ों रुपये ले कर भी अपने मोहित के लिए ऐसे बहु न लाऊं कहते हुए वो अपने खूबसूरत बेटे मोहित को गर्व से देखा करतीं , जो वहीँ माँ के पास खेल रहा होता | मोहित माँ को देखता फिर खेलने में जुट जाता |
मुहल्ले वाले हाँ में हाँ मिलाते , हाँ रंग तो बहुत दबा हुआ है | पर क्या पता पैसे जोड़ रही हों | तभी तो देखो किसी से मिलती -जुलती नहीं | अपने में ही सीमित रहती हैं | अब आने जाने में खर्चा तो होता ही है |
मुहल्ले की इन बातों से बेखबर श्रीमती गुप्ता अपनी बेटी श्यामा को अच्छी शिक्षा व् संस्कार देने में लगी हुई थीं |क्योंकि वो कहीं जाती नहीं थीं , इसलिए उन्हें पता ही नहीं था कि श्रीमती देसाईं उनके बारे में क्या कहती हैं | कुछ साल बाद उनका तबादला दूसरे शहर में हो गया |
अब श्रीमती देसाई का शिकार मुहल्ले की कोई दूसरी महिला हो गयी थी |
समय पंख लगा कर उड़ गया |
युवा मोहित ने माँ के सामने श्यामा के साथ शादी की इच्छा जाहिर की | श्यामा , अब IIT से इंजिनीयरिंग करने के बाद उसी MNC में काम करती थी जिसमें मोहित था | कब श्यामा के गुणों पर मोहित फ़िदा हो गया किसी को पता नहीं चला | मोहित ने सबसे पहले बताया भी तो माँ को , वो भी इस ताकीद के साथ कि अगर ये शादी नहीं हुई तो कभी शादी नहीं करेगा |
माँ की मिन्नतों और आंसुओं का मोहित पर कोई असर नहीं हुआ | मजबूरन श्रीमती देसाई को हाँ बोलनी पड़ी |
शादी के रिसेप्शन में चर्चा आम थी ….
” लगता है श्रीमती देसाई को करोंड़ों रूपये मिल गए हैं तभी तो वो श्यामा से मोहित की शादी के लिए राजी हुई | “
नीलम गुप्ता
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बहुत अच्छी लघु कथा
वाह्ह…समय का पासा ऐसे ही पड़ता है…👌
बहुत बढिया। इसलिए ही कहते हैं कि समय बलवान होता हैं. किसी के लिए गलत शब्द नहीं कहना चाहिए!