कहते हैं टूटते तारे से जो मानगो वो मिल जाता है | इसलिए जब भी कोई टूटता तारा दिखता है हाथ खुद ब खुद दुआ के लिए जुड़ जाते हैं |लेकिन किसी विरहणी की मिन्नतें कुछ अलग ही होती हैं ….
कविता -टूटते तारे से मिन्नतें
हर टूटते तारे से मिन्नतें करती हूँ
हर ऊंचे दर पर माथा टेकती हूँ
काश कोई मेरी किस्मत तुमसे जोड़ दे
जाने -अनजाने में हो गये अलग जो हम
कहीं किसी जगह….. किसी ठिकाने
जहां तुम मिल जाओ मेरी राह उधर मोड़ दे
गर हो ना सके इतना भी ‘खुदा ‘ तो
बस इतनी सी इल्तिज़ा है मेरी
ले ज़िन्दगी मेरी ..तार सांसों का तोड़ दे …!!!
__________ साधना सिंह
गोरखपुर
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बहुत ही सुंदर
बहुत बढ़िया।
प्रेम के मधुर सम्बन्ध को लिखती सुन्दर रचना …
बहुत बढ़िया …