टूटते तारे से मिन्नतें

टूटते तारे से मिन्नतें



कहते हैं टूटते तारे से जो मानगो वो मिल जाता है | इसलिए जब भी कोई टूटता तारा दिखता है हाथ खुद ब खुद दुआ के लिए जुड़ जाते हैं |लेकिन किसी विरहणी  की मिन्नतें कुछ अलग ही होती हैं …. 

कविता -टूटते तारे से मिन्नतें 





हर टूटते तारे से मिन्नतें करती हूँ 

हर ऊंचे दर पर माथा टेकती हूँ 
काश कोई मेरी किस्मत तुमसे जोड़ दे 
जाने -अनजाने में हो गये अलग जो हम 
कहीं किसी जगह….. किसी ठिकाने 
जहां तुम मिल जाओ मेरी राह उधर मोड़ दे
गर हो ना सके इतना भी ‘खुदा ‘ तो 
बस इतनी सी इल्तिज़ा है मेरी 
ले ज़िन्दगी मेरी ..तार सांसों का तोड़ दे …!!! 

            गोरखपुर 

कवियत्री



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