ये सही है कि जमाना बदल रहा है पर स्त्रियों के प्रति सोच बदलने में समय लगेगा | ये बात जहाँ निराशा उत्पन्न करती है वहीँ कई लोग ऐसे भी हैं जो आशा की किरण बन कर उभरते हैं | एक ऐसे ही किरण चमकी टैम्पो वाली की जिंदगी में
लघुकथा -टैम्पोवाली
सुबह का अलार्म जो
बजता है उसके साथ ही दिन भर का एक टाइम टेबल उसकी आँखों के सामने से गुजर जाता ।
जल्द ही काम सिमटा कर बूढ़ी माँ की अाज्ञा ले सिटी के मुख्य चौराहे परअपना टैम्पो को
खड़ा कर लेंती थी यहाँ पर और भी टैम्पो खड़े होते थे लेकिन महिला टैम्पो वाली नाक
के बराबर थी इन रिक्शे वालों के बीच से घूरती कुछ आँखे उसके चेहरे पर आ टिक जाती
थी एक सिहरन फैल जाती उसके बाॅडी में । वो सिकुड़ रह जाती है। सोचने को मजबूर हो
जाती कि भगवान ने पुरूष महिला के बीच भेद को मिटा क्यों नहीं दिया जो उसे लोगों की
घूरती निगाहें आर-पार हो जाती है ।
बजता है उसके साथ ही दिन भर का एक टाइम टेबल उसकी आँखों के सामने से गुजर जाता ।
जल्द ही काम सिमटा कर बूढ़ी माँ की अाज्ञा ले सिटी के मुख्य चौराहे परअपना टैम्पो को
खड़ा कर लेंती थी यहाँ पर और भी टैम्पो खड़े होते थे लेकिन महिला टैम्पो वाली नाक
के बराबर थी इन रिक्शे वालों के बीच से घूरती कुछ आँखे उसके चेहरे पर आ टिक जाती
थी एक सिहरन फैल जाती उसके बाॅडी में । वो सिकुड़ रह जाती है। सोचने को मजबूर हो
जाती कि भगवान ने पुरूष महिला के बीच भेद को मिटा क्यों नहीं दिया जो उसे लोगों की
घूरती निगाहें आर-पार हो जाती है ।
सिर से पैर तक अपने
को ढके वो अपने काम में लीन रहती हर रेड लाइट पर रूक उसको ट्रेफिक पुलिस से भी दो
चार होना पड़ता , यह पुलिस भी गरीब को सताती है और अमीर के सामने बोलती बंद हो जाती
है ।
शादीशुदा होने के बावजूद उसको पति का हाथ बँटाने के लिए यह निर्णय
लेना पड़ा पति जो टैम्पो चालक था सिटी के मुख्य रेलवे स्टेशन पर टैम्पो खड़ा कर
देता था चूँकि वह एक पुरूष था इसलिए सब कुछ ठीक चलता लेकिन टैम्पो वाली दो चार ऐसी
खड़ूस सवारी मिल जाती थी जो पाँच के स्थान पर तीन रूपये ही देती और आगे बढ जाती ।
लेना पड़ा पति जो टैम्पो चालक था सिटी के मुख्य रेलवे स्टेशन पर टैम्पो खड़ा कर
देता था चूँकि वह एक पुरूष था इसलिए सब कुछ ठीक चलता लेकिन टैम्पो वाली दो चार ऐसी
खड़ूस सवारी मिल जाती थी जो पाँच के स्थान पर तीन रूपये ही देती और आगे बढ जाती ।
दिन प्रतिदिन यही चलता शाम को घर
लौटने पर बेटी बेटे की देख रेख करना और सासु के साथ हाथ बँटाना रात थक बच्चों के
साथ सो जाना । वाकई रोटी का संकट भी विचित्र होता है सब कुछ करा देता है । सुबह से
शाम तक सिटी के चौराहों की धूल फाँकना सवारी को बैठाना और उतारना और कहीँ कहीँ
पुरुष की सूरत में बैठने वाले कुत्तों से दो चार होना यहीँ जीवन चर्या थी ।
एक बार उसका टैम्पो कई दिन तक नहीं
निकला तो उसकी रोजमर्रा की सवारी थी उसमें से एक जो उसके टैम्पों से आफिस जाया
करता था बरबस ही उसके विषय में सोचने लगा कि “ऐसा क्या हुआ जो वो दिखाई नहीं
देती ” पर पता न होने के कारण ढूढ़ भी नही सका ।
टैम्पोवाली का
बीमारी से शरीर बहुत दुर्बल हो गया था
एक रोज जब वह किसी दोस्त से मिलने जा रहा था तो वही टैम्पो खड़ा देखा जिस पर
अक्सर बैठ आफिस जाता था पूछताछ करने पर पता लगा कि वो पास ही रहती है ।
पता कर घर पहुँचा
तो माँ बाहर आई “बोली , बाबू किते से आये हो और किस्से मिलना है ” संकुचाते हुए उसने
टैम्पो वाली के विषय में पूछा तो पता लगा , बीमार है और पैसे न होने के कारण इलाज
नहीं हो सकता , बताते हुए माँ सिसकने लगती है ” वो व्यक्ति कुछ पैसे निकाल
देता है इलाज के लिए ।
बच इसी बीच उसका पति अपना टैम्पो ले आ
जाता है वस्तुस्थिति को समझते हुए पति हाथ जोड़ पैर में गिर पड़ता है और सोचने लगता
है कि दुनियाँ में नेक लोगों की कमी नहीं ।
डॉ . मधु त्रिवेदी
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टिफिन
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