कहते हैं “ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या “| जीवन के आखिर दिन ये सपना टूट जाना है | प्रश्न ये भी है कि आखिरी दिन के बारे में सोच कर जीवन का सुंदर स्वप्न क्यों ख़राब किया जाये |
कविता -आखिरी दिन
उस दिन भी वैसे ही होगी सुबह
अल सुबह वैसे ही अलासाए हुए उठकर
गैस पर चढ़ा दूंगीं चाय की पतीली
उफनते दूध के साथ उफन जाएगा
कुछ दर्द कुछ निराशा
उस दिन भी होगा बच्चों से
हरी सब्जी खाने को लेकर
विवाद
उस दिन भी झुन्झुलाउंगी
सोफे पर रखे तुम्हारे गीले तौलिये पर
लिखूंगी सब्जी भाजी का हिसाब
बनाउंगी अगले महीने का बजट
भविष्य की गुल्लक में
संभाल कर रख दूँगी कुछ सपनों की चिल्लर
उस दिन भी बहुत कुछ बाकी होगा
कल करने को
बहुत कुछ बाकी होगा
कल कहने को
बहुत कुछ बाकी होगा कल के लिए
पर कल नहीं होगा
वो दिन जो
मेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा
मृत्यु आएगी
दबे पाँव , चोरों की तरह
बिना कोई पूर्व सूचना दिए
बिना अंतिम इच्छा पूंछे
छीन कर ले जायेगी जिन्दगी
कुछ साँसे टूटते ही
टूट जाएगा भ्रम
मुझे मेरे होना का
वो दिन जिस दिन मेरी जिंदगी का
आखिरी दिन होगा
आखिरी दिन
कहते हैं पहले से ही मुक़र्रर है
भले ही हो यह सबसे बड़ा सच
पर लाखों -करोणों लोगों की तरह
मैं कल्पना भी नहीं करती उसकी
करना भी नहीं चाहती
भ्रम ही सही
स्वप्न ही सही
पर ये जीवन , जीवंतता से भरने का अवसर तो देता है
सफ़र को रोमांचक बना देता है
उस दिन तक
जिस दिन मेरी जिन्दगी का
आखिरी दिन होगा
आखिरी दिन के बाद भी
खत्म नहीं होगी यात्रा
बन पथिक चलना होगा आगे
और आगे
कि अनंत जीवन में
जीवन और मृत्यु की पुनरावृत्ति में
जीवन और मृत्यु के महामिलन का
बस क्षितिज है
वो दिन
जो मेरी जिंदगी का
आखिरी दिन होगा
वंदना बाजपेयी
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बहुत सुंदर..
परन्तु जीवन भी तो एक हकीकत है..सत्य उक्ति।
धन्यवाद पम्मी जी