सारे धर्म भले ही बाँटने की कोशिश करें पर हवा , पानी , खशबू , जीव जंतुओं को कौन बाँट पाया है | ऐसे ही चिड़िया की बात कवि ने कविता में की है जो मंदिर -मस्जिद में भेद भाव न करके इंसानों से कहीं ज्यादा सेकुलर है |
कविता –मंदिर-मस्जिद और चिड़िया
मै देख रहा था———
अभी जो चिड़िया मंदिर के मुँडेर पे बैठी थी,
वही कुछ देर पहले——–
मस्जिद के मुँडेर पे बैठी थी.
वहाँ भी ये अपने पर फड़फड़ाये उतरी थी,
चंद दाने चुगे थे,
यहाँ भी अपने पंख फड़फड़ाये उतरी,
और चंद दाने चुग,
फिर मंदिर की मुँडेर पे बैठ गई.
फिर जाने क्यूँ एक शोर उठा,
मंदिर और मस्जिद में अचानक से लोग जुटने लगे,
और वे चिड़िया सहम गई.
शायद चिड़िया को मालूम न था कि वे,
जिन मंदिर-मस्जिद के मिनारो पे,
अभी चंद दाने चुग,
अपने पंख फड़फड़ाये बैठी थी,
उसमे हिन्दू और मुसलमान नाम की कौमे आती है,
जहा से हर शहर और गाँव के जलने की शुरुआत होती है,
और हुआ भी वही,
फिर उस चिड़िया ने अपने पर फड़फड़ाये मिनार से उड़ी,
और फिर कभी मैने उस चिड़िया को,
शहर के दंगो के बाद,
दाना चुग पर फड़फड़ा,
किसी मंदिर या मस्जिद की मिनार पे बैठे नही पाया ,
शायद वे चिड़िया एै “रंग “———–
हम इंसानो से कही ज्यादा सेकुलर निकली.
रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी ।
जज कालोनी, मियाँपुर
जौनपुर—-222002 (उत्तर-प्रदेश)
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