अदृश्य हमसफ़र -अव्यक्त प्रेम की प्रभावशाली कथा

       

अदृश्य हमसफ़र -अव्यक्त प्रेम की प्रभावशाली कथा

“अदृश्य हमसफ़र ” जैसा की नाम से ही प्रतीत होरहा है किये एक ऐसी प्रेम कहानी है जिसमें प्रेम अपने मौन रूप में है | जो हमसफ़र बन के साथ तो चलता है पर दिखाई नहीं देता | ये अव्यक्त प्रेम की एक ऐसी गाथा है जहाँ प्रेम में पूर्ण समर्पण के बाद भी पीड़ा ही पीड़ा है पर अगर ये पीड़ा ही किसी प्रेमी का अभीष्ट हो उसे इस पीड़ा में भी आनंद आता हो …

अदृश्य हमसफ़र 

 यूँ तो प्रेम दुनिया का सबसे  खूबसूरत अहसास है , पर जब यह मौन रूप में होता है तो पीड़ा दायक भी होता है,  खासतौर से तब जब प्रेमी अपने प्रेम का इज़हार तब करें जब उसकी प्रेमिका 54 वर्ष की हो चुकी हो और वो खुद कैंसर से अपने जीवन की आखिरी जंग लड़ रहा हो |

वैसे ये कहानी एक प्रेम त्रिकोण है पर इसका मिजाज कुछ अलग हट के है | प्रेम की दुनिया ही अलग होती | प्रेम  में कल्पनाशीलता होती है और इस उपन्यास में भी उसी का सहारा लिया गया है |  कहानी  मुख्य रूप से तीन पात्रों के इर्द -गिर्द घूमती है … अनुराग , ममता और देविका |

अनुराग -चाँद को क्या मालूम चाहता है उसे कोई चकोर 

 जहाँ अनुराग  एक प्रतिभाशाली ब्राह्मण बच्चा है जिसे छुटपन में ही ममता के पिता गाँव से अपने घर ले आते हैं ताकि उसकी पढ़ाई में बाधा न आये | अनुराग स्वाभिमानी है वह इसके बदले में घर के बच्चों को पढ़ा देता है व् घर के काम दौड़ -दौड़ कर कर देता है | धीरे -धीरे अनुराग सबका लाडला हो जाता है | घर की लाडली बिटिया ममता को यूँ अपना सिंघासन डोलता अच्छा नहीं लगता औ वह तरह -तरह की शरारतें कर के अनुराग का नाम लगा देती है ताकि बाबा उसे खुद ही वापस गाँव भेज दें | ये पढ़ते हुए मुझे ” गीत गाता चल “फिल्म के लड़ते -झगड़ते सचिन सारिका याद आ रहे थे , पर उनकी तरह दोनों आपस में प्यार नहीं कर बैठते | यहाँ केवल एकतरफा प्यार है -अनुराग का ममता के प्रति |अनुराग ममता के प्रति पूर्णतया समर्पित है | ये उसके प्रेम की ही पराकाष्ठा  है कि ममता के प्रति इतना प्रेम होते हुए भी वो बाबा से ममता का हाथ नहीं माँगता ताकि ममता के नाम पर कोई कीचड़ न उछाले | ममता के मनोहर जी से विवाह के बाद वो उससे कभी का फैसला करता है , फिर भी  वो अदृश्य हमसफ़र की तरह हर पल ममता के साथ है उसके हर सुख में , हर दुःख में |

ममता -दिल -विल प्यार -व्यार मैं क्या जानू रे 

ममता अनुराग के प्रेम को समझ ही नहीं पाती वो बस इतना जानती है कि अनुराग उसके पलक झपकाने से पहले ही उसके हर काम को कर देता  है | ममता अनुराग को अनुराग दा कह कर संबोधित करती है , पर रिश्ते की उलझन को वो समझ नहीं पाती कि क्यों उसे हर पल अनुराग का इंतज़ार रहता है , क्यों उसकी आँखें हमेशा अनुराग दा को खोजती है , क्यों उसके बार -बार झगड़ने में भी एक अपनापन है | वो मनोहर जी की समर्पित पत्नी है , दो बच्चों की माँ है , दादी है , अपना व्यवसाय चलाती है पर अनुराग के प्रति  अपने प्रेम को समझ नहीं पाती है | शायद वो कभी भी ना समझ पाती अगर 54 साल की उम्र में देविका उसे ना  बताती | तब अचानक से वो एक चंचल अल्हड किशोरी से गंभीर प्रौढ़ा बन जाती है जो स्थितियों को संभालती है |

देविका -तुम्ही मेरे मंदिर …..तुम्ही देवता हो 

          अनुराग की पत्नी देविका एक ऐसी  पत्नी है जिसको समझना आसान नहीं है | ये जानते हुए भी कि अनुराग ममता के प्रति पूर्णतया समर्पित है उसके मन में जो भी प्रेम है वो सिर्फ और सिर्फ ममता के लिए है देविका उसकी पूजा करती है उसे हर हाल में अपने पति का साथ ही देना है | वो ना तो इस बात के लिए अपने पति से कभी झगडती है कि जब ममता ही आपके मन में थी तो आपने मुझसे विवाह क्यों किया ? या पत्नी को सिर्फ पति का साथ रहना ही नहीं उसका मन भी चाहिए होता है | उसे तो ममता से भी कोई जलन नहीं | शिकायत नहीं है ये तो समझ आता है पर जलन नहीं है ये समझना मुश्किल है | देविका वस्तुत : एक लार्जर दे न  लाइफ ” करेक्टर है , जैसा सच में मिलना मुश्किल है |

अदृश्य हमसफ़र की खासियत 

                      ये अलग हट के प्रेम त्रिकोण इसलिए है , क्योंकि इसमें ममता प्रेम और उसके दर्द से बिल्कुल् भी  प्रभावित नहीं है | हाँ अनुराग दा के लिए उसके पास प्रश्न हैं जो उसके मन में गहरा घाव करे हुए हैं , उसे इंतज़ार है उस समय का जब अनुराग दा उसके प्रश्नों का उत्तर दें | परन्तु प्रेम की आंच में अनुराग और देविका जल रहे हैं | ममता के प्रयासों से अन्तत : ये जलन कुछ कम होती है पर अब अनुराग के पास ज्यादा उम्र नहीं है , इसलिए कहानी सुखांत होते हुए भी मन पर दर्द की एक लकीर खींच जाती है और मन पात्रों में उलझता है कि ‘काश ये उलझन पहले ही सुलझ जाती | ‘

कहानी में जिस तरह से पात्रों को उठाया है वो बहुत  प्रभावशाली है | किसी भी नए लेखक के लिए किसी भी पात्र को भले ही वो काल्पनिक क्यों न हो विकसित करना कि उसका पूरा अक्स पाठक के सामने प्रस्तुत हो आसान नहीं है , विनय जी ने इसमें कोई चूक नहीं की है |

कहानी  में जहाँ -जहाँ दृश्यों को जोड़ा गया है वहाँ इतनी तरलता है कि पाठक को वो दृश्य जुड़े हुए नहीं लगते और वो आसानी से तादाम्य बना लेता है |

जैसी कि साहित्य का उद्देश्य होता है कि उसके माध्यम से कोई सार्थक सन्देश मिले | इस कहानी में भी कई कुरितियों  पर प्रहार किया है | जैसे विधवा को किसी शुभ काम में सम्मलित ना करने की कुरीति | परन्तु ये प्रहार इतना सौम्य है कि वो कहानी का हिस्सा ही लगता है … कहानी में ठूँसा  हुआ प्रवचन नहीं |

पूरे उपन्यास की जो खास बात है …वो है इसका प्रवाह | कहानी पानी की तरह फिसलती है , और पाठक उसमें बहता जाता है | अंत तक इसकी रोचकता बनी रहती है | कहीं भी पाठक को ऐसा नहीं लगता कि कोई दृश्य खींचा गया है | 144 पेज की कहानी पाठक एक , दो या ज्यादा से ज्यादा तीन सिटिंग में पढ़ लेता है | किसी भी नए लेखक के लिए ये गर्व का विषय है कि उसका पहला उपन्यास ही पाठक द्वारा अपने को पूरा पढवा ले |

चलते -चलते 

                                      आज प्रेम कहानियों में बहुत सारे प्रयोग हो रहे है | प्रेम एक भावना जरूर है पर उसका बहुत विस्तार है , क्योंकि प्रेम के साथ व्यक्ति का मनोविज्ञान जुड़ा है | उस तरीके से देखा जाए तो कहानी में नयापन नहीं है , हाँ  प्रस्तुतीकरण अच्छा और प्रभावशाली  है | कई जगह लगा कि लेखिका ने थोड़ी जल्दबाजी की है , मनोभावों के स्तर पर थोडा ठहराव से लिखा जाता तो कहानी में भावनाओं का सम्प्रेष्ण और अच्छे से हो पाता | इसमें कोई शक नहीं कि लार्जर देन लाइफ करेक्टर लोकप्रिय साहित्य की ओर ले जाते रहे हैं , निसंदेह ये उपन्यास भी लोगों द्वारा सराहा जाएगा |हालंकि समय की नब्ज कह रही है कि सिनेमा हो या साहित्य आज लोग उन पात्रों से ज्यादा जुड़ पा रहे हैं जो उनके आस -पास हो , एक आम इंसान  जो इंसानी बुराइयों और अच्छाइयों के साथ हो |

 लेखिका का ये पहला उपन्यास है इसलिए वो बधाई की पात्र हैं | पहले उपन्यास में उनका प्रवाह व  सम्प्रेष्ण देखते हुए भविष्य में उनसे  और बेहतर लेखन की उम्मीद है |

विनय पंवार जी को हार्दिक शुभकामनाएं

उपन्यास -अदृश्य हमसफ़र
पृष्ठ -144
कीमत -199 रूपये
प्रकाशक – कौटिल्य प्रकाशन

वंदना बाजपेयी

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1 thought on “अदृश्य हमसफ़र -अव्यक्त प्रेम की प्रभावशाली कथा”

  1. बेहद ज़ायकेदार समीक्षा मैम, वास्तव में उपन्यास पढ़ने योग्य होगा। आदरणीय विनय जी को अशेष शुभकामनाएँ💐💐💐

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