दीपावली की बात करते ही मेरे जेहन में बचपन की दीवाली आ जाती है | वो माँ के हाथ के बनाये पकवान , वो रिश्तेदारों का आना -जाना , वो प्रसाद की प्लेटों का एक घर से दूसरे घर में जाना और साथ ही घर आँगन बालकनी में टिम-टिम करते सितारों की तरह अपनी जगमगाहट से अमावस की काली रात से लोहा लेते मिटटी के दिए | मिटटी के दिए याद आते ही एक हूक सी उठती है क्योंकि वो अब हमारा घर आँगन रोशन नहीं करते | वो जगह बिजली की झालरों ने ले ली है |
कुम्हारों को समझना होगा बदलते व्यापार का समीकरण
मिटटी के दिए का स्थान बिजली की झालरों द्वारा ले लेने के कारण अक्सर कुम्हारों की बदहाली का वास्ता देते हुए इन्हीं को ज्यादा से ज्यादा खरीदने से सम्बंधित लेख आते रहे हैं ताकि कुम्हारों के जीवन में भी कुछ रोशिनी हो सके | मैं स्वयं भी ऐसी ही एक भावनात्मक परिस्थिति से गुजरी जब मैंने “मंगतलाल की दिवाली “कविता लिखी | कविता को साइट पर पोस्ट करने के बाद आदरणीय नागेश्वरी राव जी का फोन आया | उन्होंने कविता के लिए बहुत बधाई दी साथ ही यह भी कहा आप कि कविता संवेदना के उच्च स्तर पर तो जाती है पर क्या इस संवेदना से वो जमाना वापस आ सकता है बेहतर हो कि हम कुम्हारों के लिए नए रोजगार की बात करें | साहित्य का काम नयी दिशा देना भी है | जब मैंने उनकी बात पर गौर किया तो ये बात मुझे भी सही लगी |
हमेशा से रहा है नए और पुराने के मध्य संघर्ष
सीखने होंगे व्यापर के नियम
1) ड्राइवर — टेस्ला इलेक्ट्रिक से चलने वाली कारें बाज़ार में उतार चुका है | जैसे -जैसे ये टेक्नोलोजी सस्ती होगी प्रचुर मात्र में अपनाई जायेगी | ऑटो , टैक्सी ड्राइवर की नौकरीयाँ तेजी से घटेंगी |
2)बैक जॉब्स – जैसे -जैसे ऑनलाइन बैंकिंग ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल होने लगी है जिस कारण लोगों का बैंक जाना कम हो रहा है | अत : भविष्य में बैंक क्लर्क के जॉब घटेंगे |
3)प्रिंटिंग प्रेस – आज भले ही हम अपनी किताब छपवाने की चाहते रखते हो पर भविष्य में बुक की जगह इ बुक लेंगीं क्योंकि छोटे होते घरों में इतनी किताबें रखने की जगह नहीं होगी | अभी ही मुझ जैसे पुस्तक प्रेमियों को ये सोचना पड़ता है कि जितनी किताबें मैं खरीदती हूँ उन्हें किसी पुस्तकालय को दे दूँ | दूसरी बात ये भी है जब पुस्तकें फोन पर होंगीं तो आप यात्रा में बिना भार बढाए ले जा सकते हैं | तीसरे किताबें कम छपने से पेपर की बचत होगी … हालांकि एक प्लास्टिक पेपर पर किताबें छपना शुरू हो चुकी हैं जो कम जगह भी घेरती है | अगर यहाँ भी प्रेस ऐसे किताबें छपने लगे तो उसे कुछ ज्यादा लम्बे समय तक जीवित रखा जा सकता है |
वर्कर्स – आने वाले ज़माने में में वर्कर्स की संख्या घटेगी , क्योंकि ज्यादातर काम मशीने करेंगी जो स्वचालित होंगी |
5)ट्यूशन टीचर्स – आज इतने अच्छे एप आ गए हैं जो आप के द्वारा भेजे गए सवाल को वीडियो बना कर समझाते हैं ऐसे में आने वाले भविष्य में महंगे होम ट्यूशन का भविष्य खतरे में है |
ऐसे बहुत सारे जॉब और व्यापर हैं जिनपर फिर कभी विस्तार से लिखूंगी |
टेराकोटा है बेहतर विकल्प
रही बात परम्परा की , तो वो इतनी आसानी से खत्म नहीं होने वाली , हमारी परम्परा की नींव बहुत द्रण है | मिटटी के दिए हमेशा दीपावली के पूजन में रहेंगे भले ही उनकी संख्या कम हो जाए |
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बहुत shaanadar