crazy rich Asians ये नाम है एक इंग्लिश बेस्ट सेलर नॉवेल का का जिसे केविन क्वान ने २०१३ में लिखा था | नावेल बहुत लोकप्रिय हुआ और २०१८ में इस नॉवेळ पर हॉलीवुड फिल्म भी बनी है | फिल्म ऑस्कर के लिए भी नोमिनेट हुई है | केविन ही फिल्म के निर्माता भी हैं | कहा जा रहा है ये पहली हॉलीवुड फिल्म हैं जिसकी पूरी कास्ट एशियन है | केविन के अनुसार जब भी अमीरों की बात होती है तो हम अमेरिका के बारे में सोचते हैं , परन्तु ऐशिया और चाइना के लोग भी बहुत अमीर हैं | जिनका निवास ऐशिया में अमीरों के लिए प्रसिद्द शंघाई , टोकियो या हांगकांग नहीं , सिंगापुर है | जिसके बारे में ज्यादा बात नहीं होती | केविन खुद एक अमीर घराने से हैं और उपन्यास का अधिकतर हिस्सा सत्य पर आधारित है |
Crazy rich Asians -पुस्तक समीक्षा
यूँ तो उपन्यास एक romcom यानी कि रोमांटिक कॉमेडी है | जिसमें रिचेल चू और निक यंग की प्रेम कहानी है | जहाँ निक सिंगापुर के बेहद अमीर घराने का एकलौता वारिस है जो फिलहाल अमेरिका में पढाता है | वहीँ रिचेल अमेरिकी निवासी है जो आज़ाद ख्याल , स्वतंत्र और सामान्य घर की व्अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर है | उसके घर में वो और उसकी माँ हैं | पिता की उसके जन्म लेने से पहले मृत्यु हो गयी थी | उसकी माँ ने उसकी परवरिश एक स्वतंत्र महिला के रूप में की है | निक व् रिचेल की दोस्ती प्रेम में बदलती है | लेकिन अभी तक रिचेल को पता नहीं होता है कि निक इतना अमीर है | ये बात तब खुलती है जब निक उसे अपने एक रिश्तेदार की शादी में सिंगापुर ले जाता है | रिचेल का एक बिलकुल भिन्न दुनिया से सामना होता है | पैसे की दुनिया , मेटिरियलिस्टिक दुनिया | जहाँ पार्टी कल्चर है युवाओं में शराब , कोकेन , और अनैतिकता है , महिलाओं के लुक्स और शारीरिक बनावट से लेकर प्लास्टिक सर्जरी तक की सालाह देते लोग हैं | वहीँ दूसरी ओर घर में चायनीज माएं और बहनें है जो घर को बांधे रखने के लिए अपना जीवन लगा रहीं हैं | अपने घर के बच्चों से बेखबर उन्हें अमेरिकी सभ्यता से डर है , क्योंकि वहाँ की महिलाएं अपने कैरियर अपने वजूद को प्राथमिकता देती हैं | उनके अनुसार वो इन घरों में नहीं चल सकतीं | ऐसा ही भय निक की माँ को रिचेल के लिए भी है | उन्हें लगता है ये लड़की इतना त्याग नहीं नहीं कर पाएगी | उसको पढ़ते हुए मुझे अपने देश की माएं याद आ जाती हैं जो इस बात से आँखें मूदें रहती हैं कि एक अमेरिका उनकी नाक की नीचे उनके घर में बस चुका है , वो बस विदेशी लोगों का भय अपने मन में पाले रहती हैं |
क्योंकि ये एक कॉमेडी है इसलिए कोई गंभीर बात नहीं है जिस पर विशेष चर्चा हो | पर कुछ बातें धीरे से सोचने पर विवश कर देती हैं | जैसे की रिचेल जो उस घर में निक की माँ जैसी ही बन कर सासू माँ द्वारा स्वीकारे जाने की कोशिश करती है पर सफल नहीं होती , तो उसकी सहेली कहती है , तुम उनकी तरह मत बनो तुम अपनी तरह बनो , तुम्हारी अपनी जो ख़ास बातें हैं उन पर फोकस करो | उनकी तरह बनने की कोशिश में तुम उस घर में आखिरी रहोगी पर अपनी तरह बन कर पहली | तुम्हारी स्वीकार्यता तुम्हारे अपने गुणों की वजह से होनी चाहिए न की ओढ़े हुए गुणों की वजह से | चेतन भगत ने भी एक बार कुछ -कुछ ऐसा ही कहा था , सास पसंद नहीं करती तो …. ये पोस्ट वायरल हुई थी | ये एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि ससुराल द्वारा स्वीकृत होने के लिए लडकियाँ अपनी बहुत सी कलाएं गुण छोड़ देती है | उन्हें कार्बन कॉपी बनना होता है | माँ भी यही शिक्षा देकर भेजती है , बिटिया लोनी मिटटी रहना | पर क्या एक लड़की वास्तव में लोनी मिटटी रह सकती है या वो एक आवरण ओढती है , उस आवरण के नीचे उसकी कई मूल इच्छाएं , सपने , और जिसे आजकल कहा जाता है … पैशन , दफ़न रहता है | अभी कुछ दिन पहले की ही बात है एक महिला से बात हो रही थी , उसका कागज़ पर बनाया स्केच मुझे बहुत अच्छा लगा | तारीफ़ करते ही कहने लगी , मेरी पेंटिंग्स की सब सराहना करते थे , कुछ शादी के बाद बनायीं भी थीं पर ससुर जी को दीवाल में कील गाड़ना पसंद नहीं था , इसलिए दूसरों को दे दी | मैं सोचती रही कि दीवाल पर तो कील नहीं गड़ी पर कितनी बड़ी कील उसके दिल में गड़ी है ये किसी को अंदाजा ही नहीं था | हालानी ये बात सिर्फ बहुओं के लिए ही नहीं है हम सब को अपने गुणों की कद्र करनी चाहिए | हम किसी भी महफ़िल का हिस्सा हों हमारी पहचान हंमारे अपने गुण होते हैं न कि ओढ़े हुए गुण | कौवा और मोर वाली कहानी तो आपको याद ही होगी |
दूसरी बात जिसने प्रभावित किया वो है निक की चचेरी बहन एसट्रिड |अरब ख़रब पति एसट्रिड एक सामान्य आर्मी ऑफिसर से प्रेमविवाह करती है | वो चाहती है कि उसके पति को इस बात का अहसास भी ना हो की वो उससे कमतर है | इसलिए ना जाने कितनी कंपनियों के सी ई ओ के पद ठुकरा देती है | अपना सारा समय चैरिटी में ही बिताती है | कभी महँगी चीजों की खरीदारी भी करती है तो भी उन्हें छुपा देती है कि उसका पति उन्हें देख कर आहत ना हो | उसका प्रयास यही रहता है कि उसका पति उससे ऊपर ही रहे | हमारे देश में भी तो पत्नियां अपने पति का ईगो बचाए रखने के लिए कितना कुछ कुर्बान कर देती हैं | परन्तु जब ऐस्ट्रिड अपने पति के अनैतिक रिश्तों की खबर लगती है तो वो टूट जाती है | यहाँ एशियन पुरुषों की मानसिकता दिखाई गयी है , वो इसका दोष भी अपनी पत्नी पर डाल देता है | वो कहता है तुम महँगी खरीदारी करके मुझसे छुपाती रहीं मैं तुमसे छोटा महसूस करता रहा | मैंने एक संबंध छुपा लिया तो क्या गलत है | ये एक मानसिकता है कि पुरुष के कदम अगर डगमगाएं तो वो पत्नी को अपराध बोध से ग्रस्त करा देता है |
हमारा समाज भी तो यही करता है … क्या आप इन वाक्यों से परिचित नहीं हैं , देखो , पति को बाँध नहीं पायी , कुछ तो कमी है जो पति के कदम बहक गए | इस नॉवेल को पढ़ कर मुझे पता चला कि ये सिर्फ भारत की समस्या नहीं पूरे एशिया की समस्या है | जहाँ हर अपराध का दोषी महिला को मान लिया जाता है | हम सब देखते हैं कि ज्यादातर महिलाएं किसी ना किसी अपराधबोध से ग्रस्त रहतीं हैं | यहाँ तक की कई बार पति के अनैतिक संबंधों में जाने का अपराध बोध भी वो खुद में पाले रहती हैं | तभी तो ज्यादातर किस्सों में देखा जाता है कि पत्नियां दूसरी , तीसरी स्त्री के पास गए हुए पति को भी ” घर आया मेरा परदेशी ” की तर्ज पर माफ़ कर देती हैं | पर क्या पुरुष ऐसा कर पाते हैं ? उपन्यास में ऐस्ट्रिड का उत्तर बहुत ही अच्छा लगता है | वो अपने पति से अलग होने का फैसला करती है | चलते -चलते वो कहती है , गलती मेरी थी , मेरी कोशिश यह रही कि तुम मुझ से सदा ऊपर रहो , मैं तुम्हें “मैन लाइक ” फील कराना चाहती थी | ये मेरी ड्यूटी नहीं थी , और हम किसी को वो फील नहीं करा सकते जो वो नहीं है | ये एक बहुत ही खूबसूरत और सच्चा तंज लगा |
रिश्ते कभी भी अपने को मिटाना नहीं होते | जो भी रिश्ते केवल इस बात बात पर टिके होते हैं कि दूसरा वो सब देता रहे जो उसके साथी को पसंद है तो वो खुद के साथ धोखा कर रहा है | किसी का भी ये कर्तव्य नहीं है कि रिश्ते में वो दूसरे को वो महसूस कराये जो वो नहीं है | ये मांग सिर्फ अमीर दिखने की ही नहीं ज्यादा योग्य , विद्वान , कलाकार आदि कुछ भी दिखने की होसकती है | याद है ना … अमिताभ -जया बच्चन अभिनीत अभिमान फिल्म | हम रिश्ते में अपेक्षाएं पाल लेते हैं कि अगला हमें खुश करें | साथ में खुशी महसूस होना और खुश महसूस कराना दो अलग बातें हैं | जिस रिश्ते में ख़ुशी महसूस कराना कर्तव्य बन जाए वो असली रिश्ता नहीं है |
खैर ये तो थी उपन्यास की छोटी सी समीक्षा और उससे जुड़ा छोटा सा विचार विमर्श , लेकिन आप हल्की फुलकी रोमांटिक कॉमेडी के शौक़ीन हैं तो ये किताब पढ़ सकते हैं | अमेज़न पर किताब उपलब्द्ध है | किताब का लिंक ….
वंदना बाजपेयी
फोटो क्रेडिट -अमेज़न .कॉम
यह भी पढ़ें …
अँधेरे का मध्य बिंदु -लिव इन को आधार बना सच्चे संबंधों की पड़ताल करता उपन्यास
प्रिडिक्टेबली इरेशनल की समीक्षा -book review of predictably irrational in Hindi
करवटें मौसम की – कुछ लघु कवितायें